बिहार की राजनीति से लगाव रखने वालें की बुद्धि प‍िछले द‍िनों वहां की राजनीति और राजनीतिज्ञों के बारे में सुन—सुन कर कुंद हो गई होगी। वही बिहार, वही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, वही जदयू, वही आरजेडी, वही भाजपा। पता नहीं, नीतीश कुमार ने किस मुहूर्त में राजनीति में कदम रखा था कि बार-बार पलटी मारने के बावजूद उनका राजनीतिक जीवन बिंदास चल रहा है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत किशोर का आंकलन है कि नीतीश कुमार अपने राजनीतिक जीवन की आखिरी पारी खेल रहे हैं। लगता तो यही है क‍ि जो स्थिति स्वयं नीतीश कुमार ने अपने लिए बना ली है, उसमें प्रशांत किशोर ने बिल्कुल सही आंकलन किया है। संभवतः नीतीश कुमार देश के पहले व्यक्ति होंगे, जिन्होंने व‍िधानसभा के एक कार्यकाल में तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली हो। वैसे, नीतीश कुमार का इस बार का शपथग्रहण कुल नौवीं बार हुआ।

लोग कहने लगे हैं कि नीतीश कुमार भाजपा की ही खुफिया टीम के सदस्य हैं और सत्तापक्ष के विचारों के अनुकूल भाजपा के लिए काम करते हैं। किसी भी गठबंधन के मुख्यमंत्री के रूप में काम करें, वह कार्य असल में भाजपा के लिए ही करते हैं। इस आरोप में कितना दम है, कितनी सच्चाई है, इसका प्रमाण देने के लिए कोई आज तैयार नहीं है, लेकिन उनकी इस बार की ‘पलटी’ उनके राजनीतिक करियर को खत्म कर देने की स्थिति को पैदा कर दिया है।

गृह मंत्री जब नीतीश कुमार से मिलेंगे, तो क्या इस बात को भूल चुके होंगे, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक मंच से कहा था कि ‘नीतीश बाबू और ललन सिंह के लिए भाजपा के दरवाजे सदा के लिए बिलकुल बंद हो गए हैं।’ इसका जवाब देते हुए नीतीश कुमार ने भी कहा था ‘मर जाऊंगा, लेकिन भाजपा में नहीं जाऊंगा।’ इस बात को बिहार ही नहीं, देश का लगभग हर वह व्यक्ति जानता है।

जिनकी थोड़ी भी रुचि राजनीति को जानने की होती है, वह सब इस सच को जानते हैं कि भाजपा की बुनियाद ही झूठ की नींव पर टिकी है, लेकिन नीतीश कुमार की तो कुछ साख थी। जिस प्रकार जेपी आंदोलन से न‍िकल कर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद सुर्खियों में आए थे, इन लोगों ने देश के इतिहास को जानबूझकर भुला दिया। अब इस समस्या का निदान कैसे हो, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।

समीक्षकों का कहना है कि भाजपा ने जिस उम्मीद से नीतीश कुमार को एक बार फ‍िर अपने साथ ल‍िया है, वह पूरी होगी, इसमें संदेह है। समीक्षक तो यह भी चुनौती देते हैं कि यदि भाजपा को नीतीश कुमार की छवि इतनी साफ लगती है, तो आगामी लोकसभा चुनाव में उनको अपना चेहरा बनाकर चुनाव लड़े, फिर उन्हें नीतीश कुमार की छवि का सच समझ में आ जाएगा।

यह सच है कि नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल सराहनीय रहा था और बिहार ने विकास यात्रा की मजबूत शुरुआत की थी। लेकिन धीरे— धीरे मामला खराब होता गया। अब बिहार की जनता पर निर्भर है कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में नीतीश के ताजा दल-बदल को क‍िस रूप में लेती है और क्‍या फैसला सुनाती है!

Nishikant Thakur
निशिकांत ठाकुर

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। यहां व्‍यक्‍त व‍िचार उनके न‍िजी हैं।)