उत्‍तर प्रदेश के उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने गाज‍ियाबाद लोकसभा सीट से बीजेपी उम्‍मीदवार अतुल गर्ग के ल‍िए वोट मांगते हुए कहा क‍ि डबल इंजन सरकार से व‍िकास की बयार आएगी। बता दें क‍ि गाज‍ियाबाद में अभी ‘ट्र‍िपल इंजन सरकार’ चल रही है। केंद्र और राज्‍य में तो बीजेपी सरकार है ही, गाज‍ियाबाद के लोकसभा सांसद वीके स‍िंह भाजपा के हैं, व‍िधायक अतुल गर्ग भाजपा के हैं और मेयर सुनीता दयाल भी भाजपा की ही हैं।

उधर, गाजियाबाद के ही एक वोटर इंद्र राज स‍िंह (गांव अर्थला) की आपबीती जान‍िए। “राम मंद‍िर बन गया है…पर हमारे घर के पास के हनुमान मंद‍िर का क्‍या?” इंद्र राज ने यह बात इंड‍ियन एक्‍सप्रेस की ल‍िज मैथ्‍यू से बातचीत में कही। उन्‍होंने ज‍िस हुनमान मंदि‍र का ज‍िक्र क‍िया, वह उसकी संचालन सम‍ित‍ि के प्रमुख हैं। इस मंद‍िर का न‍िर्माण गाज‍ियाबाद नगर प्राध‍िकार की ओर से जमीन पर अपना हक जताने की वजह से रुका हुआ है।

इंद्र राज बताते हैं, “हम सबके पास गए। क‍िसी ने मदद तो नहीं ही की, सही बर्ताव तक नहीं क‍िया। यह समस्‍या तब आती ही है जब एमपी, एमएलए, मेयर सब एक ही पार्टी के हों और व‍िपक्ष एकदम कमजोर हो। ये नेता घमंडी हो गए हैं। इन्‍हें यकीन है क‍ि व‍िपक्ष है ही नहीं तो सत्‍ता में वही बने रहेंगे। यह स्‍थ‍ित‍ि ठीक नहीं है।”

गाज‍ियाबाद से सटे मेरठ में भी ल‍िज मैथ्‍यू को लोगों में कुछ इसी तरह की भावना देखने को म‍िली। मेरठ में एक न‍िजी विश्वविद्यालय से बी.टेक फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रहे दीपांश ने कहा, ‘जब सत्‍ताधारी पार्टी जीत को लेकर बेपरवाह हो जाती है तो उसे जवाबदेह ठहराना मुश्‍क‍िल हो जाता है।’

मण‍िपुर का उदाहरण

ह‍िंसाग्रस्‍त मण‍िपुर का उदाहरण भी सामने है। राज्‍य में भाजपा की सरकार है। इसका असर यह देखने को म‍िला क‍ि हिंसा पर काबू पाने में नाकाम रहने के बावजूद राज्‍य सरकार पर केंद्र की ओर से कोई एक्‍शन नहीं हुआ। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री एन. बीरेन स‍िंह ने इंड‍ियान एक्‍सप्रेस से इंटरव्‍यू में कहा था, ‘केंद्र सरकार का मुझमें और राज्‍य सरकार में पूरा भरोसा है। अगर ऐसा नहीं होता तो केंद्र दूसरे व‍िकल्‍पों पर व‍िचार करता।’

सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्‍त, 2023 को मण‍िपुर के बारे में ट‍िप्‍पणी करते हुए कहा था क‍ि राज्‍य में सरकार का तंत्र पूरी तरह फेल हो चुका है और कानून-व्‍यवस्‍था नाम की कोई चीज नहीं बची है।

इंड‍ियन एक्‍सप्रेस की एक रिपोर्ट कहती है क‍ि 2014 से 2022 के बीच ज‍िन 121 बड़े नेता जांच एजेंस‍ियों के श‍िकंजे में आए उनमें से 115 व‍िपक्षी पार्ट‍ियों के थे। 2004 से 2014 के बीच ऐसे नेताओं की संख्‍या 26 थी और इनमें से 14 (54 प्रत‍िशत) व‍िपक्ष के थे।