आम चुनाव 2024 की तारीखों की घोषणा के दिन चुनाव आयोग (EC) ने अपनी प्रेस ब्रीफिंग में एक समान अवसर ( Level Playing Field या LPF) पर जोर दिया था। सीईसी ने कहा कि चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को आदर्श आचार संहिता (MCC) वितरित की है और उनसे इसे अपने स्टार प्रचारकों को बताने का अनुरोध किया है। वहीं, हाल ही में कांग्रेस ने भी चुनाव आयोग से एलपीएफ लागू करने का अनुरोध किया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि Level Playing Field (LPF) क्या है और चुनाव और चुनाव प्रचार से इसका क्या कनेक्शन है?
समान अवसर एक निष्पक्ष प्रक्रिया पर जोर देता है। आम तौर पर लेवल प्लेइंग फील्ड निष्पक्षता के बारे में एक अवधारणा है जिसके मुताबिक, प्रत्येक उम्मीदवार के सफल होने के चांस बराबर नहीं होते हैं पर उन्हें बराबरी की प्रतिस्पर्धा का मौका मिलना चाहिए। एलपीएफ एक अभिव्यक्ति है जो खेल या युद्धों में लागू नहीं होती है। ऐसा नहीं हो सकता कि केवल दो समान टीमें ही एक-दूसरे के खिलाफ खेलें। इसी तरह, अगर एक शक्तिशाली सेना युद्ध में छोटे विपक्ष को कुचल देती है तो इसे अनुचित नहीं माना जाता है।
LPF स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी क्यों?
ऐसे में सवाल यह उठता है कि एलपीएफ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए जरूरी क्यों होना चाहिए? एक कारण यह हो सकता है कि लोकतंत्र में चुनाव न तो कोई युद्ध है और न ही कोई साधारण प्रतियोगिता। यह लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण घटना है जहां विभिन्न दल और स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित प्रतिनिधियों के सदन में प्रतिनिधित्व के लिए मतदाताओं के जनादेश को अर्जित करने के लिए एक-दूसरे के साथ होड़ करते हैं।
इस प्रतियोगिता को निष्पक्ष बनाने के लिए ऐसे में चुनाव के दौरान एलपीएफ को अनिवार्य माना जाता है। यह न तो राजनीतिक दलों के लिए है और न ही उम्मीदवारों के लिए कि वे एक-दूसरे से आगे रहने की कोशिश न करके मैदान से बाहर हो जाएं। यह ध्यान रखना रेगुलेटर की ज़िम्मेदारी है कि चुनाव के दौरान एलपीएफ का ध्यान रखा जाए खास तौर पर तब जब पार्टियां और कैंडीडेट्स वोटर्स को अपने पक्ष में प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।
सत्तारूढ़ दल को क्या मिलते हैं फायदे?
एलपीएफ के सिद्धांत के इस्तेमाल पर करीब से नजर डालने से पता चलता है कि समानता आम तौर पर उनके लिए खास है जो सत्तारूढ़ दल को विपक्षी उम्मीदवारों की तुलना में मिलता है। यह कुछ ऐसा है कि फील्ड या उम्मीदवार से फर्क नहीं पड़ता है, खेल में सबसे कमजोर टीम सबसे मजबूत टीम से मुकाबला कर सकती है। हालांकि, एक सच्चे लोकतंत्र में चुनाव एक अलग खेल है।
आम तौर पर सामान्य नागरिक व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए सामान्य कानून हैं, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से चुनाव के दौरान एक निश्चित मर्यादा का पालन करने की अपेक्षा की जाती है, जिसके लिए वे चुनाव आयोग से स्वेच्छा से सहमत होते हैं। ऐसा नहीं है कि सभी निर्धारित प्रतिबंध सख्ती से कानून में अंकित हैं। कभी-कभी यह सार्वजनिक व्यवहार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक होते हैं। चुनाव आयोग के समानता के दृष्टिकोण के चलते ही वास्तव में एमसीसी ही है जिसे चुनाव आयोग द्वारा चुनावों के दौरान लागू करने की उम्मीद की जाती है। मौजूदा माहौल में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा एलपीएफ को नजरअंदाज किए जाने से चुनाव आयोग को तथ्यों और परिस्थितियों की जांच करने की आवश्यकता है।
आदर्श आचार संहिता के प्रमुख तत्व
वहीं, आदर्श आचार संहिता (MCC) की जांच से पता चलता है कि संहिता के अंतर्गत चार प्रमुख तत्व आते हैं- उम्मीदवार, राजनीतिक दल, सत्तारूढ़ दल और ब्यूरोक्रेसी। हालांकि, सत्तारूढ़ दल और नौकरशाही सत्तारूढ़ व्यवस्था का हिस्सा हैं लेकिन संहिता उन पर भी अलग से लागू होती है। इन क़ानूनों के तहत जो मुख्य बिंदु आते हैं, वह हैं- मतभेदों को बढ़ाना या आपसी नफरत पैदा नहीं करना, विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच तनाव पैदा नहीं करना, बिना सबूतों के आरोप नहीं लगाना और व्यक्तिगत आलोचना नहीं करना।
इसके साथ ही वोट हासिल करने के लिए जातिगत या सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने की अपील नहीं करना या पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा गलत प्रथाओं का सहारा नहीं लेना भी आदर्श आचार संहिता के अंतर्गत आते हैं। संहिता में प्रावधान है कि पार्टियां और उनके कार्यकर्ता प्रतिद्वंद्वी पार्टियों की गतिविधियों में बाधा नहीं डालेंगे। उनके अभियान, बैठकों, जुलूसों और चुनाव घोषणापत्र में बाधा डालना और मतदान केंद्रों पर बाधा डालना जैसे किसी भी काम का हिस्सा नहीं बनेंगे।
सत्ताधारी पार्टी के लिए अलग सेक्शन
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि एमसीसी ने केंद्र या राज्य में सत्ता में रहने वाली पार्टी पर एक अलग सेक्शन रखा है, जिसमें उसे यह ध्यान रखने का निर्देश दिया गया है कि किसी भी शिकायत में यह सामने न आए कि उसने अपनी आधिकारिक स्थिति का उपयोग किया है। संहिता में गेस्ट हाउस, परिवहन या सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसी सरकारी सुविधाओं के उपयोग और विज्ञापन या मंजूरी देने के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग करने के अपने अधिकार के दुरुपयोग को भी कवर किया गया है। एमसीसी इससे आगे नहीं जाता है।
राज्य मशीनरी और कानूनी प्रणाली का नियमित कामकाज वर्तमान एमसीसी द्वारा किसी भी तरह से प्रतिबंधित नहीं है। यह एक विवादास्पद मुद्दा है कि क्या चुनाव आयोग के लिए अदालती सुनवाई जैसी कानून की उचित प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना वांछनीय है, या क्या कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा नियमित जांच चुनाव आयोग के निर्णय के अधीन होगी क्योंकि इससे स्थिति और अधिक अस्थिर हो सकती है। शायद जब एमसीसी का ड्राफ्ट तैयार किया गया था तब हितधारकों द्वारा राज्य एजेंसियों द्वारा अधिकार के दुरुपयोग की कल्पना भी नहीं की गई थी या इसे मार्क नहीं किया गया था। हालांकि, एमसीसी लगातार विकसित हो रहा दस्तावेज है।
किताबी नियमों पर जाए या पाक-साफ चुनाव कराने की जिम्मेदारी निभाए EC?
मौजूदा माहौल और प्रतिष्ठान द्वारा एलपीएफ को नजरअंदाज किए जाने से चुनाव आयोग को शिकायतों के लिए जिम्मेदार तथ्यों और परिस्थितियों की जांच करने की आवश्यकता है, जैसा कि उसने 2019 में किया था जब उसने राजस्व विभाग को एक सलाह जारी की थी। इसे यह निर्धारित करना चाहिए कि क्या प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयां स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रथा का उल्लंघन करती हैं।
चुनाव आयोग की सबसे बड़ी दुविधा यह होगी कि क्या वह किताब के अनुसार चले या स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की अपनी एकमात्र जिम्मेदारी को निभाए। एमसीसी और एलपीएफ उससे कहीं अधिक है, इसमें निष्पक्षता की भावना समाहित है जिसे पूरी तरह से समझने और दृढ़तापूर्वक लागू करने की जरूरत है।
(लेखक अशोक लवासा पूर्व चुनाव आयुक्त हैं)