देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी किताब ‘प्रणब, माई फादर – ए डॉटर रिमेम्बर्स’ में दावा किया है कि पूर्व कांग्रेसी दिग्गज 2014 की हार के बाद चिंतित थे, लेकिन चिंता का कारण सिर्फ नरेंद्र मोदी नहीं थे, बल्कि राहुल गांधी भी थे। दरअसल, चुनाव परिणाम आने के बाद राहुल गांधी, प्रणब से मिलने पहुंचे थे। राहुल गांधी की बात सुन प्रणब आश्चर्यचकित रह गए थे।

मोदी की जीत से क्यों चिंतित थे प्रणब?

किताब में प्रणब मुखर्जी की डायरी के नोट्स के साथ-साथ पिता-पुत्री के व्यक्तिगत बातचीत को भी उद्धृत किया गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव का जिक्र करते हुए शर्मिष्ठा लिखती हैं, “चुनाव नतीजे घोषित होने से पहले ही यह साफ हो गया था कि यूपीए सरकार का 10 साल का शासन खत्म हो रहा है। कांग्रेस में माहौल निराशाजनक था। चुनाव से पहले पार्टी और यूपीए के कई नेता प्रणब से मिलने पहुंचे। सभी भविष्यवाणियां भाजपा/एनडीए की जीत की ओर इशारा कर रही थीं, फिर भी किसी ने भी कांग्रेस की ऐसी हार की उम्मीद नहीं की थी। अंततः जब 16 मई, 2014 को परिणाम घोषित हुए, तो कांग्रेस केवल 44 सीटों के साथ अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गई, जबकि भाजपा ने अपने दम पर 282 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया।”

परिणाम आने के बाद प्रणब मुखर्जी ने अपनी डायरी में मोदी का जिक्र किया था, जिसके शर्मिष्ठा ने अपनी किताब में उद्धृत किया है। उस दिन प्रणब ने अपनी डायरी में लिखा, “हमें देखना होगा कि यह नया आदमी (मोदी) कैसे उभरता है। सरकार की स्थिर और आश्वस्त है, लेकिन सामाजिक एकजुटता का क्या? मैं सचमुच चिंतित हूं।”

प्रणब की राहुल से मुलाकात?

कांग्रेस की करारी हार के बाद राहुल ने प्रणब से मुलाकात की थी। शर्मिष्ठा ने लिखा है, “प्रणब को यह आश्चर्यजनक लगा कि राहुल ने पार्टी के प्रदर्शन पर बहुत अलग तरीके से, एक बाहरी व्यक्ति की तरह दूर से अपने विचार दिए, जैसे कि वह अभियान का चेहरा और पार्टी के मुख्य प्रचारक नहीं थे।”

इसके आगे प्रणब मुखर्जी, राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की तुलना करते हुए लिखते हैं, शायद कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राहुल से वह उत्साह नहीं मिला, जो बीजेपी को मोदी से मिला।

शर्मिष्ठा लिखती हैं, “कांग्रेस में अपने पूर्व सहयोगियों से उन्हें (प्रणब) जो रिपोर्टें मिलीं, वे बहुत उत्साहजनक नहीं थीं। उन्होंने कहा कि कुछ नेताओं ने राहुल के खिलाफ ‘जहर उगला’ और कई वरिष्ठ नेताओं ने शिकायत की कि राहुल उनसे नहीं मिल रहे हैं। प्रणब को लगा कि राहुल की कुछ टिप्पणियां उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाती हैं। वह राहुल की बार-बार गायब रहने वाली हरकतों से भी निराश थे।”

राहुल को लेकर प्रणब का संशय

आम चुनावों में पार्टी की करारी हार के बमुश्किल छह महीने बाद, 28 दिसंबर 2014 को पार्टी के 130वें स्थापना दिवस पर AICC में ध्वजारोहण समारोह के दौरान राहुल अनुपस्थित थे। प्रणब ने अपनी डायरी में लिखा, “राहुल AICC समारोह में मौजूद नहीं थे। मुझे कारण तो नहीं पता लेकिन ऐसी कई घटनाएं हुई हैं। चूंकि उन्हें सब कुछ इतनी आसानी से मिल जाता है, इसलिए वह इसकी कद्र नहीं करते। सोनियाजी अपने बेटे को उत्तराधिकारी बनाने पर तुली हैं लेकिन इस युवा में करिश्मा और राजनीतिक समझ की कमी समस्या पैदा कर रही है। क्या वह कांग्रेस को पुनर्जीवित कर सकते हैं? क्या वह लोगों को प्रेरित कर सकता है? मुझे नहीं पता।”

राहुल को तभी नेता मानूंगा…

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, कांग्रेस के भीतर और यहां तक कि मीडिया के कुछ वर्गों में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि पार्टी 2014 की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन करेगी और भाजपा के लिए एक मजबूत चुनौती पेश करेगी।

शर्मिष्ठा लिखती हैं, “मेरे पिता के साथ बातचीत के दौरान,उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस पार्टी 88 सीटें जीतती है तो वह राहुल गांधी के एक नेता के रूप में उभरने को स्वीकार करेंगे। इस संख्या के पीछे का कारण मुझे नहीं पता, शायद यह कांग्रेस की मौजूदा 44 सीटों को दोगुना करने की ओर इशारा था। मुझे गुस्सा आ गया और मैंने अपने पिता पर आलोचक होने का आरोप लगाया। हालांकि, दुर्भाग्य से वह सही थे। कांग्रेस सिर्फ 52 सीटें जीत सकी।”