लोकसभा चुनाव 2024 के बीच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किए गए अरविंंद केजरीवाल को एक अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। यानि वह चुनाव प्रचार से दूर रहेंगे। उनकी तरह आम आदमी पार्टी और दूसरी पार्टियों के कई बड़े नेता भी इस समय जेल में हैं और चुनाव से दूर हैं। सत्ताधारी भाजपा जहां लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए धुआंधार प्रचार कर रही है, वहीं विपक्षी दल दूसरी समस्याओं से जूझते नजर आ रहा है। कोई अपने नेता को बचाने में जुटा है, तो किसी के सामने पार्टी को टूटने से बचाने की चुनौती है और कोई खाता फ्रीज कर दिए जाने के चलते कानूनी लड़ाई में उलझी है।
विपक्षी दल और उनके नेता लगातार केंद्रीय जांच एजेंसियों के रडार में आ रहे हैं। कांग्रेस, आप समेत अन्य दलों का आरोप है कि मोदी सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों की मदद से चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।
विपक्षी पार्टियों के अलावा अब तीन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने कहा है कि हाल के दिनों में जिस तरह से IT (Income Tax) और ED (Enforcement Directorate) ने विपक्षी दलों और उनके नेताओं पर कार्रवाई की है, वह चुनाव में गैर-बराबरी पैदा कर रहा है। यानि, सभी पार्टियों के लिए चुनावी मैदान एक-सा सपाट नहीं है।
तीन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने द इंडियन एक्सप्रेस की दामिनी नाथ से बात की है। एसवाई कुरैशी के अलावा दो मुख्य चुनाव आयुक्तों ने नाम न छापने का आग्रह किया है।
कांग्रेस अपने पैसे बचाने की लड़ाई में उलझी
शनिवार (30 मार्च) को कांग्रेस ने बताया कि उन्हें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से 2014-2015 और 2016-2017 के लिए एक नोटिस मिला। नोटिस में 1,745 करोड़ रुपये टैक्स जमा करने को कहा गया है। इसके पहले 1994-1995 और 2017-2018 के लिए नोटिस आया था। ताजा और पुराने नोटिस की रकम को मिला दें तो आईटी विभाग ने कुल 3,567 करोड़ रुपये टैक्स मांगा है। इसके अलावा आईटी विभाग ने पुराने बकाये की पूर्ति के लिए कांग्रेस के अकाउंट से 135 करोड़ रुपये निकाल लिया है।
कांग्रेस को IT के नोटिस पर क्या बोले मुख्य चुनाव आयुक्त?
चुनाव आयोग (EC) के पूर्व प्रमुखों के अनुसार, इस तरह की कार्रवाइयों को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है और चुनाव आयोग को कम से कम एजेंसियों से मिलकर यह पता लगाना चाहिए कि आईटी विभाग टैक्स की अपनी डिमांड को चुनाव खत्म होने तक क्यों नहीं टाल सकता।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एसवाई कुरैशी ने द इंडियन एक्सप्रेस की दामिनी नाथ को बताया, “मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि चुनाव आयोग निश्चित रूप से इसे रोक सकता है क्योंकि यह समान अवसर को प्रभावित कर रहा है। चुनाव आयोग के भीतर, हमने हमेशा इस सिद्धांत का पालन किया कि चुनाव के दौरान उन कार्रवाइयों को टाल दिया जाए, जिन्हें टाला जा सकता है। यह पूछा जाना चाहिए क्या चुनाव भर के लिए ऐसी चीजों को स्थगित करने से कोई अपूरणीय क्षति होती है? इस मामले में कोई अपूरणीय क्षति नहीं है। यह तीन महीने के बाद किया जा सकता है।”
एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, उन्होंने कहा: “आयोग में हमारे समय के दौरान ऐसी स्थितियां कभी उत्पन्न नहीं हुईं, इसलिए कोई उदाहरण देना मुश्किल है कि आयोग ने कब कदम उठाया। हालांकि, आदर्श आचार संहिता का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान अवसर सुनिश्चित हो। यदि चुनाव प्रचार के दौरान टैक्स एजेंसियां प्रमुख विपक्षी दल को नोटिस जारी करती रहती हैं, उनके खाते फ्रीज कर देती हैं और यहां तक कि उसमें से पैसे भी काट लेती हैं, तो आयोग को CBDT (Central Board of Direct Taxes) से ठोस कारण पूछना चाहिए कि चुनाव के बाद तक इंतजार क्यों नहीं किया जा सकता? यह आयोग और सीबीडीटी के बीच एक बैठक के माध्यम से किया जा सकता है।”
नेताओं के खिलाफ कार्रवाई पर क्या बोले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त?
हाल के महीनों में ईडी ने अलग-अलग मामलों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ भी कार्रवाई की है, तलाशी ली है, समन जारी किए हैं और गिरफ्तारियां की हैं। सबसे प्रमुख गिरफ्तारी पिछले हफ्ते दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और इस महीने की शुरुआत में दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में बीआरएस नेता के कविता की थी।
पूर्व सीईसी ने कहा कि जब ईडी नेताओं को ऐसे समय में पूछताछ के लिए बुलाती है, जब उन्हें चुनाव प्रचार में शामिल होना चाहिए, तो इससे भी लेवल प्लेइंग फील्ड को खतरा होता है। पूर्व सीईसी ने कहा, “आयोग राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में आड़े नहीं आ सकता, लेकिन अगर ऐसा कोई मामला नहीं है तो क्या आईटी विभाग और ईडी दो महीने तक इंतजार नहीं कर सकते।”
एक तीसरे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, उन्होंने कहा: “यह एक पेचीदा मामला है और मैं समझ सकता हूं कि चुनाव आयोग के लिए इससे निपटना कितना मुश्किल होगा। लेकिन तथ्य यह है कि जब किसी राजनीतिक दल की धन तक पहुंच बंद हो जाती है तो आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वह चुनाव लड़ेगा? क्या इससे समान अवसर पर प्रभाव नहीं पड़ता? इस मैच में एक अंपायर के रूप में, चुनाव आयोग मूक नहीं रह सकता है और उसे केंद्रीय एजेंसियों के साथ परामर्श या बैठक के माध्यम से हल निकालना होगा ताकि उन्हें छापे और खातों को फ्रीज करने और टैक्स की मांग जैसी कार्रवाइयों को स्थगित करने के लिए राजी किया जा सके।”
विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियों पर केंद्रीय मंत्री ने क्या कहा?
द इंडियन एक्सप्रेस के आइडिया एक्सचेंज कार्यक्रम में शामिल हुए भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने चुनाव से ठीक पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल में डाले जाने के सवाल पर कहा कि “हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है। हमने उन्हें जेल में नहीं डाला।”
जब एक्सप्रेस की शुभांगी खापरे ने पीयूष गोयल से केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, “उसमें हमारी भूमिका कहां है? कानून लोगों को उनके गलत कामों के लिए पकड़ रहा है। जब वे ये कदम उठा रहे थे तो उन्हें परिणामों के बारे में सोचना चाहिए था। हमारे पास भारत में एक मजबूत न्यायपालिका, एक मजबूत प्रणाली है जो हर किसी के अधिकारों की रक्षा करती है। आप आम आदमी पार्टी के एक नेता की बात कर रहे हैं लेकिन उनके कई साथी लंबे समय से जेल में हैं।”
विपक्षी दल बार-बार यह कह रहे हैं कि मोदी सरकार जांच एजेंसियों के माध्यम से उन पर हमला कर रही है। विपक्ष के इस आरोप पर पीयूष गोयल का कहना है कि “कोई उनकी (विपक्ष) बातों से प्रभावित नहीं होने वाला है। लोग इस बात से खुश हैं कि मोदी सख्त हैं और गलत काम करने वालों पर कार्रवाई कर रहे हैं। ध्यान रखें कि अगर कोई पीएम खड़ा होकर कहे कि मैं असहाय हूं और भ्रष्टाचार जीवन का हिस्सा है तो आम आदमी को यह पसंद नहीं आता। याद कीजिए 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कैसे कहा था कि सरकार द्वारा खर्च किए गए प्रत्येक रुपये में से केवल 15 पैसे ही लाभार्थी तक पहुंचते हैं और शेष बिचौलियों के पास चले जाते हैं? वह मजबूरी है। लोग समस्याओं का समाधान करने वाले नेता को पसंद करते हैं।”
मोदी सरकार के आठ साल में ED के 95% मामलों में निशाने पर रहे विपक्षी नेता
सितंबर 2022 में प्रकाशित The Indian Express की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि मोदी सरकार में UPA शासन की तुलना में राजनेताओं के खिलाफ ED मामलों में चार गुना वृद्धि हो चुकी है।
एक्सप्रेस ने वह रिपोर्ट न्यायालय के रिकॉर्ड, एजेंसी विवरण और ED द्वारा पूछताछ के लिए ले जाए गए, हिरासत में लिए गए, गिरफ्तार किए गए, छापा मारे गए राजनेताओं की रिपोर्ट के अध्ययन पर आधारित है।

उसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि 2014 और 2022 के बीच 121 प्रमुख राजनेताओं पर ED जांच हुई थी, जिनमें से 115 विपक्षी नेता थे यानी 95% मामलों में ED के निशाने पर विपक्षी नेता रहे।
विपक्षी दल | कांग्रेस | टीएमसी | एनसीपी | शिवसेना | डीएमके | बीजेडी | आरजेडी | बीएसपी | एसपी | टीडीपी | आप | आईएनएलडी | वाईएसआरसीपी | सीपीएम | एनसी | पीडीपी | आईएनडी | एआईडीएमके | एमएनएस | एसबीएसपी | टीआरएस |
नेताओं की संख्या | 24 | 19 | 11 | 8 | 6 | 6 | 5 | 5 | 5 | 5 | 3 | 3 | 3 | 2 | 2 | 2 | 2 | 1 | 1 | 1 | 1 |
यह UPA शासन (2004 से 2014) में हुई ED की कार्रवाई से विपरीत है। UPA शासन में एजेंसी द्वारा कुल 26 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई थी, जिनमें से 14 विपक्षी नेता थे यानी आधे से अधिक (54%)। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)

जब आइडिया एक्सचेंज पर पीयूष गोयल से पूछा गया कि भाजपा जब से सत्ता में आई है तब ED ने 95 प्रतिशत केस विपक्षी नेताओं के खिलाफ फाइल किया है, तो केंद्रीय मंत्री ने रिपोर्ट पर ही सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा, “बस इसलिए कि यह आपकी रिपोर्ट है, इससे इसकी विश्वसनीयता नहीं बढ़ जाती। आपका यह अंदाजा हो सकता है। मुझे ऐसे किसी तथ्य या आंकड़े की जानकारी नहीं है। आपकी धारणा से यह तय नहीं होगा कि सरकार या जांच एजेंसियां कैसे काम करेंगी।”
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का विश्लेषण करते हुए द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने लिखा है
भाजपा केजरीवाल समेत आप के बड़े नेताओं की गिरफ्तारी का लाभ उठाकर आम आदमी पार्टी में नेतृत्व शून्यता उजागर करना चाहती है ताकि विपक्ष के हमले से लाचार होकर पार्टी कोई रणनीति न बना सके और टूट जाए।

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