1960 के दशक के अंतिम सालों में कांग्रेस के एकछत्र राज को चुनौती मिली थी, लेकिन इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारतीय राजनीति पर अपना प्रभुत्व फिर से कायम किया। 90 के दशक में कांग्रेस को फिर से चुनौती मिली।
इस दौर में कांग्रेस के दबदबे के खात्मे के साथ बहुदलीय शासन प्रणाली का युग शुरू हुआ। इस बदलाव के साथ केंद्र में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ और क्षेत्रीय पार्टियों ने गठबंधन सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस बदलाव का असर ये रहा कि 1989 के बाद से लोकसभा के चुनावों में कभी भी किसी एक पार्टी को 2014 तक पूर्ण बहुमत नहीं मिला।
1989 के बाद केंद्र की सरकार:
प्रधानमंत्री | गठबंधन/सरकार में शामिल दल | अवधि |
वी.पी. सिंह | राष्ट्रीय मोर्चा, वाम मोर्चा और भाजपा का समर्थन | दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 |
चंद्रशेखर | राष्ट्रीय मोर्चा का एक तबका समाजवादी जनता पार्टी के नेतृत्व में, कांग्रेस का समर्थन | नवंबर 1990 से जून 1991 |
पी.वी. नरसिंह राव | कांग्रेस, AIDMK तथा कुछ अन्य दलों का समर्थन | जून 1991 से मई 1996 |
अटल बिहारी वाजपेयी | भाजपा: अल्पमत सरकार | मई 1996 से जून 1996 |
एच.डी. देवगौड़ा | कांग्रेस के समर्थन पर संयुक्त मोर्चा की सरकार | जून 1996 से अप्रैल 1997 |
इंद्रकुमार गुजराल | कांग्रेस के समर्थन पर संयुक्त मोर्चा की सरकार | अप्रैल 1997 से मार्च 1998 |
अटल बिहारी वाजपेयी | भाजपा, NDA | मार्च 1998 से अक्टूबर 1999 अक्टूबर 1999 से मई 2004 |
मनमोहन सिंह | कांग्रेस, UPA | मई 2004 से मई 2014 |
नरेंद्र मोदी | भाजपा, NDA | मई 2014 से मई 2019 |
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। उसे 303 सीटों पर जीत मिली थी। 543 सदस्यों वाली लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 272 है।
तमिलनाडु में गठबंधन सरकारों का इतिहास
दो मुख्य द्रविड़ पार्टियों (DMK और AIADMK) की मातृभूमि होने के बावजूद तमिलनाडु गठबंधन की राजनीति का मैदान रहा है। 1977 के बाद से, जब AIADMK एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरी, दोनों में से कोई भी दल लोकसभा चुनाव में केवल एक बार अकेले चुनाव लड़ा है।
ऐसा तब हुआ जब 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता की अध्यक्षता वाली अन्नाद्रमुक ने पुदुचेरी सहित 40 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे। अन्य सभी अवसरों पर दोनों पार्टियों ने छोटी पार्टियों के साथ समझौता किया। इस बार भी स्थिति अलग नहीं है। हालांकि, जो नई बात है वह यह है कि भाजपा एक ऐसे मोर्चे का नेतृत्व कर रही है जिसमें पीएमके, तमिल मनीला कांग्रेस, टीएमसी (एम) और एएमएमके शामिल हैं।
जब सीपीएम और मुस्लिम लीग ने मिलकर लड़ा चुनाव
1952 के बाद से लोकसभा चुनावों पर नजर डालने से पता चलता है कि पहले तीन चुनाव 1952, 1957 और 1962 में आम तौर पर चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं थे। कांग्रेस प्रमुख शक्ति थी। 1954-1962 के दौरान मुख्यमंत्री रहे के. कामराज के नेतृत्व में पार्टी को किसी गठबंधन की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। लेकिन सी. राजगोपालाचारी या राजाजी सहित उनके विरोधियों ने गठबंधन के महत्व को महसूस किया।
1967 के चुनाव में DMK के नेतृत्व वाला मोर्चा विपक्षी एकता का पहला मानक बना। इसमें राजाजी की स्वतंत्र पार्टी के अलावा सीपीआई(एम) और मुस्लिम लीग भी शामिल थी।
1969 में कांग्रेस में विभाजन ने कामराज को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर किया; दो साल बाद उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के साथ एक समझौता किया। उस समय, कांग्रेस के दूसरे समूह, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सी. सुब्रमण्यम और आरवी स्वामीनाथन शामिल थे, उन्होंने डीएमके और सीपीआई से हाथ मिला लिया।
अक्टूबर 1975 में कामराज के निधन ने कांग्रेस नेतृत्व को एक स्पष्ट संदेश भेजा: राज्य में चुनावी सफलता के लिए द्रविड़ पार्टियों में से किसी एक के साथ गठबंधन अनिवार्य है। पिछले 50 वर्षों में इस मानदंड का केवल दो बार उल्लंघन किया गया: 1998 में जब जयललिता ने कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को प्राथमिकता दी और 2014 में जब डीएमके नेता एम. करुणानिधि ने कांग्रेस के साथ कोई समझौता नहीं करने का फैसला किया।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन) के नामकरण की कहानी विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

इस बार तमिलनाडु में त्रिकोणीय मुकाबला फिर भी भाजपा को राहत क्यों नहीं?
लोकसभा चुनावों में तमिलनाडु के भीतर मुख्य रूप से DMK और AIADMK के बीच मुकाबला रहा है। 1996 के बाद से 2014 तक हुए सभी लोकसभा चुनाव में दोनों राजनीतिक दलों को 20 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलता रहा है। हालांकि साल 2016 में AIADMK सुप्रीमो जयललिता के निधन के बाद पार्टी के प्रदर्शन खराब हुआ है। पिछले चुनाव में AIADMK को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी। दूसरी तरफ इसी दौरान भाजपा लगातार बढ़ रही है।
साल 2009 में भाजपा तमिलनाडु की कुल जितनी सीटों पर लड़ी थी, उन सीटों पर उसे कुल 5.7 प्रतिशत वोट मिले थे। लेकिन पिछले दो आम चुनावों में इस आंकड़े में बड़ा परिवर्तन हुआ है। 2014 और 2019 में कंटेस्टेड सीट सीट पर भाजपा को वोट शेयर क्रमश: 23.92 प्रतिशत और 28.52 प्रतिशत था। भाजपा इस चुनाव में के. अन्नामलाई के नेतृत्व में लंबी छलांग लगाने की तैयारी में है।

तमिलनाडु में वोटर्स को क्या ऑफर कर रही है भाजपा?
तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष और कोयंबटूर से पार्टी के उम्मीदवार के. अन्नामलाई ने अपने संसदीय क्षेत्र के लिए घोषणा पत्र जारी किया है। घोषणा पत्र जारी करने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए अन्नामलाई ने कहा कि पार्टी “500 दिनों में 100 आश्वासन” पूरा करने का काम करेगी।
कुछ अन्य वादों में नवोदय विद्यालयों की स्थापना और नोय्याल और कौसिका नदियों से संबंधित मुद्दों का समाधान शामिल है। उन्होंने शहर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की इकाइयां स्थापित करने भी का आश्वासन दिया। पूरे तमिलनाडु मे भाजपा किस नाम पर वोट मांग रही है, यह जानने के लिए फोटो पर क्लिक करें:
