बैंक ऑफ बड़ौदा के अर्थशास्त्रियों ने एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें मार्च 2024 में खत्म हुए वित्तीय वर्ष के दौरान देश की आर्थिक स्थिति की तस्वीर बताई गई है। रिपोर्ट में राज्यों की माली हालत का विश्लेषण किया गया है। यह विश्लेषण तीन मानकों के आधार पर किया गया है।
1. राज्य अपने दम पर कितना पैसा जुटा पा रहे हैं
2. राज्य की उत्पादक क्षमता को बढ़ाने के लिए वे कितना खर्च कर पा रहे हैं
3. राज्य बाजार से कितनी उधारी ले रहे हैं।
Fiscal Deficit: राजकोषीय घाटा
रिपोर्ट में पाया गया कि ज्यादातर राज्य अपने राजकोषीय घाटे (खर्च और आमदनी के अंतर को पाटने के लिए कर्ज ली गई रकम) को काबू में रखने में कामयाब रहे। यह उल्लेखनीय उपलब्धि है, क्योंकि राज्य अगर ज्यादा कर्ज लेते हैं तो केंद्र पर बोझ बढ़ता है और अंतत: निजी क्षेत्र को कर्ज देने के लिए पैसे की कमी झेलनी पड़ती है। अगर निवेश के लिए पैसे की कमी हो जाए तो घर, गाड़ी या कंपनी के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाता है।

रिपोर्ट में जो दूसरी अहम बात सामने आई वह पूंजीगत खर्च (कैपिटल एक्सपेंडिचर या कैपेक्स) से जुड़ी है। यह ऐसा निवेश है जो उत्पादक परिसंपततियां (सड़क, पुल आदि) खड़ी करने में खर्च किया जाता है। यह राज्यों की आर्थिक गतिविधियों को गति देती है।
दिक्कत यह है कि जब सरकारें राजकोषीय घाटे को काबू करने पर जोर देती हैं तो वे कैपेक्स में कटौती करना चाहती हैं। यह राज्य की अर्थव्यवस्था को तेज गति से आगे बढ़ाने में बाधा पैदा करती है।
उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, सिक्किम जैसे राज्य ही रहे जिन्होंने कैपेक्स की पूरी रकम खर्च की। पंजाब, छत्तीसगढ़ और नगालैंड ने 50 फीसदी से भी कम रकम खर्च की। (ऊपर की तस्वीर में टेबल देखें)

कर राजस्व
किसी राज्य सरकार का कुल कर राजस्व दो मदों से बनता है। एक तो अपना कर राजस्व (Own tax revenues OTR) और दूसरा, केंद्र सरकार के कर में हिस्सेदारी।
रिसर्च के मुताबिक राज्यों के कुल कर राजस्व में 61 फीसदी हिस्सा ओटीआर का है। ओटीआर में सबसे बड़ी हिस्सेदारी जीएसटी (32 फीसदी) की है। इसके बाद उत्पाद व बिक्री कर (22 प्रतिशत) और स्टांप व निबंधन शुल्क (7 प्रतिशत) का शेयर है।
जाहिर है, ओटीआर जितना ज्यादा होगा राज्य की स्थिति उतनी मजबूत होगी। तेलंगाना का ओटीआर सबसे ज्यादा (82 प्रतिशत) रहा। इसके बाद हरियाणा (79 फीसदी), कर्नाटक (78 प्रतिशत), महाराष्ट्र (73 प्रतिशत) और तमिलनाडु (71 फीसदी) का नंबर है।
Consumption Divide: खपत में असमानता
खपत (कंजम्पशन) से जुड़ा जो आंकड़ा रिसर्च में दिया गया है, उससे बड़ी असमानता झलकती है। नीचे की तस्वीर में जो टेबल आप देख रहे हैं, उसमें सभी 25 राज्यों का प्रति व्यक्ति जीएसटी संग्रह (Per capita GST collection) बताया गया है।

जीएसटी खपत पर आधारित टैक्स है। यानि यह कर वहां चुकाया जाता है जहां सेवा या सामान का इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर तमिलनाडु में बनी कार उत्तर प्रदेश में खरीदी जा रही है तो जीएसटी उत्तर प्रदेश में वसूला जाएगा, न कि तमिलनाडु में।
ऐसे में प्रति व्यक्ति जीएसटी कलेक्शन को राज्यवार खपत के पैटर्न के रूप में देखा जा सकता है।
उसी तरह से खपत का स्तर (Consumption Level) से लोगों की आय के स्तर (Income Level) का अनुमान लगाया जा सकता है। इस तरह दिए गए आंकड़े से राज्यों के बीच असमानता साफ देखी जा सकती है।

यह असमानता उत्तर और दक्षिण के राज्यों में भी है और पूरब व पश्चिम के राज्यों में भी। अगर आज का राजनीतिक नक्शा देखें तो भाजपा की अगुआई वाला एनडीए उन राज्यों में मजबूत है जहां खपत कम है, यानि जो राज्य गरीब हैं।
दूसरी ओर, कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन (इंडिया) अपेक्षाकृत ज्यादा खपत वाले राज्यों (दक्षिण) में मजबूत स्थिति में है। पूरब और पश्चिम के मामले में देखें तो एनडीए-इंडिया की स्थिति उलट है। इस रिसर्च से सामने आए आंकड़ों से बनती तस्वीर के मद्देनजर चुनावी नतीजों को देखने से पता चलेगा कि वोट देते वक्त लोगों ने इस मुद्दे को ध्यान में रखा या नहीं?