टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS), मुंबई ने छात्र संगठन प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम (PSF) पर अपने परिसर में प्रतिबंध लगा दिया है। इंस्टीट्यूट ने छात्र संगठन पर छात्रों को गुमराह करने और संस्थान को बदनाम करने का आरोप लगाया है।
TISS का यह आदेश किसी भी छात्र या फ़ैकल्टी को पीएसएफ का समर्थन करने या उससे जुड़ने से रोकता है। साथ ही इसका उल्लंघन करने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी देता है। पर सवाल यह उठता है कि TISS ने PSF पर प्रतिबंध क्यों लगाया और यह कदम छात्रों को कैसे पसंद आया?
PSF क्या है?
PSF एक स्टूडेंट ग्रुप है जो वामपंथी संगठन, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के अंडर संचालित होता है। पीएसएफ 2012 से TISS के परिसर में सक्रिय है। इसने छात्र निकाय चुनावों में भाग लिया है। पीएसएफ ने टीआईएसएस परिसर में विभिन्न मुद्दों पर छात्र सभाओं और हस्ताक्षर अभियानों के आयोजन का भी बीड़ा उठाया है। पीएसएफ के नेतृत्व में एक प्रमुख कार्यक्रम, वार्षिक भगत सिंह मेमोरियल व्याख्यान प्रशासन द्वाराआवश्यक अनुमति नहीं देने के कारण पिछले दो सालों में आयोजित नहीं किया जा सका।
TISS के रजिस्ट्रार प्रोफेसर अनिल सुतार द्वारा जारी PSF पर प्रतिबंध लगाने वाले आदेश में इसे परिसर में “अनधिकृत और अवैध मंच” बताया गया है। आदेश में कहा गया है, “यह समूह ऐसी गतिविधियों में संलग्न रहा है जो संस्थान के कार्यों में बाधा डालती है, संस्थान को बदनाम करती है, समुदाय के सदस्यों को अपमानित करती है और छात्रों और संकाय के बीच विभाजन पैदा करती है।”
आदेश में आगे लिखा है, “यह देखा गया है कि यह समूह छात्रों को उनकी शैक्षणिक गतिविधियों और परिसर में सौहार्दपूर्ण जीवन से गुमराह, विचलित और भटका रहा है। इसमें कहा गया है कि TISS समुदाय के सभी सदस्यों के लिए एक शांतिपूर्ण और समावेशी वातावरण बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और यह सुनिश्चित करना कि परिसर सकारात्मक जुड़ाव और शैक्षणिक विकास का स्थान बने रहें।”
पीएसएफ से जुड़े विवाद क्या हैं?
पिछले दो सालों से पीएसएफ TISS के प्रशासन के साथ कई बार विवादों में रहा है। पिछले साल जनवरी में इसने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री इंडिया: द मोदी क्वेश्चन की स्क्रीनिंग में सक्रिय रूप से भाग लिया था जो विवादों में रही।
मार्च 2023 में, पीएसएफ ने भगत सिंह मेमोरियल व्याख्यान के लिए प्रशासन की अनुमति से इनकार करने पर संस्थान के निदेशक के बंगले के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। जहां मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर और तत्कालीन जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष आइशी घोष भी छात्रों को संबोधित करने के लिए शामिल थे।
प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव के लिए पीएसएफ अक्सर प्रशासन से भिड़ता रहा है
प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव के लिए पीएसएफ अक्सर प्रशासन से भिड़ता रहा है और मांग करता रहा है कि इसे सामान्य स्नातक प्रवेश परीक्षा के बजाय संस्थान की अपनी प्रवेश परीक्षा के माध्यम से जारी रखा जाए। कुछ अन्य मुद्दे जिन पर PSF और TISS आमने-सामने हैं, उनमें अपर्याप्त छात्रावास सुविधाएं और छात्रों को फीस के भुगतान में आने वाली कठिनाइयां शामिल हैं।
पीएसएफ भी उन छह छात्र संगठनों में से एक था, जिन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए लागू आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए स्क्रीनिंग, विरोध प्रदर्शन और अन्य गतिविधियों पर रोक लगाने वाले प्रशासन के परिपत्र के खिलाफ अप्रैल में एक संयुक्त बयान जारी किया था। उसी महीने, पीएसएफ से संबद्ध एक पीएचडी छात्र को खराब आचरण और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए दो साल के लिए निलंबित कर दिया गया था।
जून 2024 में TISS ने 100 से अधिक फ़ैकल्टी मेंबर्स के कॉन्टरैक्ट को खत्म करने का निर्णय लिया था जिसे बाद में वापस ले लिया गया था, जिसका PSF ने विरोध किया था।
प्रतिबंध पर छात्रों की प्रतिक्रिया
पीएसएफ़ ने कहा कि वह प्रतिबंध के आदेश को चुनौती देगा हालांकि, संगठन इस मुद्दे पर काफी हद तक चुप्पी साधे हुए है। हालाँकि, पांच अन्य छात्र संगठनों – आदिवासी छात्र मंच, अंबेडकरवादी छात्र संघ, बिरादरी आंदोलन, मुस्लिम छात्र मंच और पूर्वोत्तर छात्र मंच – ने मंगलवार को एक संयुक्त बयान जारी किया जिसमें उन्होंने TISS के छात्र-विरोधी फैसले की निंदा की और आह्वान किया।
छात्रों ने एक छात्र संगठन के खिलाफ प्रशासन की कार्रवाई पर भी सवाल उठाया है। छात्रों का आरोप है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पीएसएफ छात्रों के मुद्दों के बारे में मुखर रहा है जबकि अन्य छात्र संगठन प्रशासन के साथ बातचीत कर रहे हैं।