केंद्रीय कानून मंत्रालय ने चुनाव आयोग के जम्मू-कश्मीर से जुड़े एक अहम प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। इस प्रस्ताव में चुनाव आयोग ने केंद्र शासित प्रदेश की चार राज्य सभा सीटों के कार्यकाल को अलग-अलग करने की मांग की थी। मौजूदा वक्त में इन सभी सीटों का कार्यकाल एक साथ खत्म हो रहा है और ये सभी सीटें पिछले साढ़े चार साल से खाली हैं।
सूत्रों के मुताबिक, कानून मंत्रालय ने 22 अगस्त को चुनाव आयोग से कहा है कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत राष्ट्रपति की ओर से इस तरह का आदेश जारी किया जा सके।
संविधान के अनुच्छेद 83 के मुताबिक, राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है। इसमें से एक तिहाई सदस्य हर 2 साल में रिटायर हो जाते हैं। इसके तहत चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संबंध में राष्ट्रपति के आदेश की मांग की थी जिससे जम्मू-कश्मीर की राज्यसभा सीटों के कार्यकाल की व्यवस्था इस तरह हो कि इनमें से हर 2 साल में एक-तिहाई सीटें खाली हो जाएं।
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राष्ट्रपति शासन लगने की वजह से हुआ ऐसा
जम्मू-कश्मीर में कई बार राष्ट्रपति शासन लगने की वजह से पिछले 30 सालों में यहां की चार राज्यसभा सीटों के कार्यकाल एक साथ हो गए हैं। पंजाब और दिल्ली में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। पंजाब में राज्यसभा की सात और दिल्ली में तीन सीटें हैं।
जम्मू-कश्मीर की चार राज्य सभा सीटों का कार्यकाल फरवरी, 2021 में खत्म हो गया था। तब जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू था। पिछले साल यहां अक्टूबर में विधानसभा के चुनाव हुए थे लेकिन अभी भी राज्यसभा की चारों सीटें खाली हैं और इस वजह से 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में जम्मू-कश्मीर राज्यसभा की ओर से कोई भागीदारी नहीं होगी।
2022 में जब राष्ट्रपति का चुनाव हुआ था तब भी जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा में कोई सांसद नहीं था। जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें हैं।
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Representation of the People Act, 1951 की धारा 154 के तहत राष्ट्रपति ने अब तक केवल दो बार ऐसे आदेश जारी किए हैं जिससे राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल इस तरह निर्धारित हो कि इनमें से एक तिहाई सदस्य हर दो साल में रिटायर हो जाएं। 1952 में ऐसा पहली बार किया गया था और दूसरी बार 1956 में।
1952 में पहली बार राज्यसभा का चुनाव हुआ था और 1956 में संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 लागू होने के बाद।
क्या कहती है धारा 154?
धारा 154 में कहा गया है, “राज्यसभा के पहली बार गठन के बाद राष्ट्रपति चुनाव आयोग से विचार-विमर्श करके ऐसे प्रावधान करेंगे कि कुछ सदस्यों का कार्यकाल कम किया जा सके जिससे हर दो साल में एक-तिहाई सदस्य रिटायर हो सकें।” धारा यह भी कहती है कि 1956 के संशोधन के बाद राष्ट्रपति को आदेश जारी कर राज्यसभा के सदस्यों के कार्यकाल को इस तरह निर्धारित करना होगा कि 2 अप्रैल 1958 से हर दो साल में एक-तिहाई सदस्य रिटायर हो जाएं।
सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर के मामले में भी इसी तरह का आदेश देने का अनुरोध किया था लेकिन कानून मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा सिर्फ पहली बार जब राज्यसभा का गठन हुआ था तब और उसके बाद संविधान संशोधन के तहत ही ऐसा किया जा सकता है।
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