Bandhavgarh Tiger Reserve Elephant Deaths: मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 10 हाथियों की मौत को लेकर हड़कंप मचा हुआ है। इस खबर को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चा है और लोगों ने कई भावुक प्रतिक्रियाएं भी दी हैं। इस खबर को लेकर चर्चा इसलिए बहुत ज्यादा है क्योंकि मारे गए हाथियों के पेट में बहुत सारा कोदो बाजरा मिला है। यह 13 हाथियों का झुंड था जिसमें से 10 हाथियों की मौत हो गई। हाथियों की मौत से गुस्साए उनके साथियों ने दो लोगों को मार डाला और एक शख्स को घायल कर दिया।

हाथियों की मौत के बाद ढेर सारे सवाल खड़े हो रहे हैं। जैसे- आखिर कोदो बाजरा खाने से हाथियों की मौत कैसे हो गई, कोदो बाजरा क्या है, कोदो बाजरा जहरीला क्यों हो जाता है, कोदो के जहरीले होने के मामले पहले कब आए थे और किसान इस फसल को क्यों उगाते हैं?

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने बताया है कि हाथियों की मौत कोदो बाजरा में मिले माइकोटॉक्सिंस की वजह से हुई है।

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कोदो बाजरा क्या है?

कोदो बाजरा का अंग्रेजी नाम पसपालम स्क्रोबिकुलैटम है। इसे भारत में कोदरा और वरगु के नाम से भी जाना जाता है। इस फसल को भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाईलैंड और पश्चिमी अफ्रीका में उगाया जाता है।

एमपी में उगाया जाता है कोदो बाजरा

2020 में सामने आए एक रिसर्च पेपर के मुताबिक कोदो बाजरा की पैदावार भारत में ही हुई है और मध्य प्रदेश इसके सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। कोदो बाजरा को खराब मिट्टी पर उगाया जाता है। मध्य प्रदेश के अलावा इसकी खेती गुजरात, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में कुछ हिस्सों में की जाती है।

आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि कोदो बाजरा की मदद से इडली, डोसा, पापड़, चकली दलिया और रोटियां बनाई जाती हैं।

कोदो में होते हैं कैंसर को रोकने वाले गुण

अब सवाल यह है कि किसान इस फसल को क्यों उगाते हैं? भारत में आदिवासी समूहों और कई जगहों पर गरीब लोगों का यह मुख्य खाना है। रिसचर्स कहते हैं कि यह एक कठोर फसल है। रिसचर्स के मुताबिक, कोदो बाजरा में विटामिन और खनिज अच्छी-खासी मात्रा में होते हैं और ऐसा भी दावा है कि यह ग्लूटेन फ्री होता है, पचाने में आसान होता है और एंटीऑक्सीडेंट का एक अच्छा सोर्स है। रिसचर्स का तो यहां तक कहना है कि इसमें कैंसर को रोकने वाले गुण भी हो सकते हैं।

2019 में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में कहा गया था कि बाजरा के बीज में फाइबर की मौजूदगी इंसान की सेहत के लिए अच्छी है क्योंकि यह आपके मेटाबॉलिक और डाइजेशन की प्रक्रिया को प्रभावित करती है।

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पहले कब आए थे कोदो के जहरीले होने के मामले?

4 मार्च, 1922 को कोदो बाजरा के जहरीले होने के चार मामले सामने आए थे। इसकी वजह से कुछ लोग बेहोश हो गए थे। उन्होंने कई घंटे तक उल्टियां की थी और उन्हें ठंड भी लग रही थी। मरीजों का कहना था कि उन्होंने कोदो आटे से बनी हुई रोटी खाई थी। खाने के बाद उन्हें उल्टी होने लगी और वे बेहोश हो गए। इससे पहले कोदो आटे की रोटी खाने से एक कुत्ते की तबीयत खराब हो गई थी। 1983 के एक रिसर्च पेपर ‘Diversity in Kodo Millet’ में बताया गया था कि कोदो बाजरा खाने से हाथियों की मौत हुई थी।

एक बहुत जरूरी सवाल यह भी कि आखिर कोदो बाजरा जहरीला क्यों हो जाता है?

जर्नल ऑफ साइंटिफिक एंड टेक्निकल रिसर्च में 2023 में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के मुताबिक कोदो बाजरा को मुख्य रूप से सूखे और अर्ध शुष्क इलाकों में उगाया जाता है। रिसर्च पेपर में कहा गया था कि बाजरा में बैक्टीरिया और वायरल के बाद फंगल इन्फेक्शन होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है और यह फंगल इन्फेक्शन अनाज और चारे की पैदावार पर खराब असर डालता है।

रिसर्च पेपर में आगे कहा गया था कि एर्गोट एक फंगल एंडोफाइट है जो बाजरे की बालियों में उगता है और ऐसा ज्यादातर कोदो बाजरे में होता है।

इस रिसर्च पेपर के मुताबिक, सीपीए (साइक्लोपियाज़ोनिक एसिड) कोदो बाजरा के बीजों से जुड़े प्रमुख माइकोटॉक्सिन में से एक है और यही कोदो के जहरीले होने की वजह बनता है। कोदो बाजरा के पकने और काटे जाने के दौरान अगर बारिश हो जाती है तो इसमें फंगल इंफेक्शन हो जाता है और इस वजह से यह अनाज जहरीला हो जाता है और इसे उत्तरी भारत में ‘मातवना कोडू’ या ‘माटोना कोडो’ के रूप में जाना जाता है।” एक बार फंगल इन्फेक्शन होने पर माइकोटॉक्सिन वाला चारा या खाना पूरी तरह खराब हो जाता है।

पशुओं पर इसका क्या असर होता है?

कोदो के जहरीला होने के बाद अगर कोई जानवर इसे खा लेता है तो उसे उल्टी आना, चक्कर आना, बेहोश हो जाना, हाथ-पैरों का कांपना आदि की शिकायत होती है। रिसर्च से पता चला है कि इससे जानवरों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारियां हो सकती हैं। मारे गए हाथियों का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने भी यही वजह बताई है।

रिसचर्स का कहना है कि माइकोटॉक्सिन को कम करने के लिए किसानों को खेती में अच्छी कृषि पद्धतियों को अपनाना चाहिए।