किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) की जगह अब अर्जुन राम मेघवाल कानून मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) हैं। रिजिजू अब भू विज्ञान मंत्रालय संभालेंगे। तीन बार के लोकसभा सांसद रिजिजू को जुलाई 2021 में कानून मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था। तब उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाने और कानून मंत्रालय जैसा अहम जिम्मा देने के फैसले पर तमाम लोग दंग रह गए थे।

51 वर्षीय किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई की है। हालांकि  बहुत कम उम्र में सियासत में आ गए थे। कुछ खास वकालत की प्रैक्टिस नहीं की। रविशंकर प्रसाद के बाद जब रिजीजू कानून मंत्री बने तब वह कानूनी बिरादरी के लिए लगभग एक ‘आउटसाइडर’ की तरह थे, क्योंकि उनके पूर्ववर्ती तमाम कानून मंत्री, चाहे डॉ. बीआर अंबेडकर हों, अशोक सेन हों, राम जेठमलानी, एचआर भारद्वाज या अरुण जेटली हों, सभी वकालत के पेशे से बहुत करीब से जुड़े थे।

क्यों बनाया गया था कानून मंत्री?

बीजेपी से जुड़े तमाम लोग कहते हैं कि किरण रिजिजू की लीगल सर्कल में कोई खास पकड़ या जान पहचान नहीं थी। और, शायद यही उन्‍हें कानून मंत्री बनाए जाने की वजह भी बनी थी। इसी वजह से वह अपने विचार स्वतंत्र रूप से रख पाए। उन्हें इस बात की चिंता नहीं थी कि उनके बयान से किसी ‘दोस्त’ को तकलीफ हो सकती है। चाहे कॉलेजियम से जुड़ा मामला हो या जजों की छुट्टी का, दो टूक अपनी बात रखते रहे।

तमाम लोग मानते हैं कि रिजिजू को कानून मंत्रालय सौंपा भी इसी वजह से गया था। उन्‍होंने कई ऐसे बयान द‍िए ज‍िन्‍हें न्‍यायपाल‍िका और कार्यपाल‍िका के संबंधों के ल‍िहाज से अच्‍छा नहीं माना गया और वे व‍िवादास्‍पद भी रहे। (यहां पढ़ें- किरण रिजिजू के 5 विवादित बयान)

फाइल देखने के लिए दो दिन का समय लेते थे

सूत्र बताते हैं कि रिजिजू कानून से जुड़े किसी मसले या फाइल पर कोई फैसला फौरन नहीं ले लेते थे, बल्कि 2 दिन का समय मांगते थे और कहते थे मैं आपको बताता हूं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर एडवोकेट की राय इससे जुदा है। वह कहते हैं कि रिजिजू ऐसे शख़्स नहीं थे जो खुद कोई फैसला ले सकें। वह दूसरों के आदेश का पालन किया करते थे।

33 साल की उम्र में बन गए थे MP

19 नवंबर 1971 को अरुणाचल प्रदेश के वेस्ट कामेंग जिले में जन्में रिजिजू ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से पढ़ाई की। फिर डीयू से ही वकालत की डिग्री ली। रिजिजू के पिता अरुणाचल विधानसभा के पहले प्रोटेम स्पीकर रहे। फिटनेस फ्रीक रिजिजू ने 33 साल की उम्र में साल 2004 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता था। हालांकि साल 2009 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी से बहुत नजदीकी मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा।  तब किरण रिजिजू ने कहा था कि वह बीजेपी छोड़ कांग्रेस ज्वाइन करेंगे। हालांकि 2014 का चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़े और जीते।

चीन बॉर्डर पर नजर रखने के लिए लगवाई थी स्क्रीन

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें गृह राज्य मंत्री बनाया गया था। गृह राज्य मंत्री रहते हुए रिजिजू लगातार पूर्वोत्तर भारत में बॉर्डर से लगे इलाकों का दौरा करते रहे। उन्होंने अपने दफ्तर की एक दीवार पर काफी बड़ी स्क्रीन लगवा रखी थी, जिसके जर‍िए चीन से लगी सीमाई इलाके की हर हलचल पर वह नजर रखा करते थे।

क्यों बने बीजेपी की पसंद?

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि 2014 के आसपास पार्टी पूर्वोत्तर भारत में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही थी और रिजिजू उसके खांचे में बिल्कुल फिट बैठ रहे थे। तमाम खूबियों के साथ-साथ धड़ल्ले से अच्छी हिंदी बोलते लेते थे और अपनी बात रखने में भी कोई परहेज नहीं थी।

केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर कहते हैं कि रिजिजू पूर्वोत्तर भारत में युवाओं के रोल मॉडल हैं। उन्हें इतिहास और अपने क्षेत्र की गहरी समझ है, इसीलिए लोग उन्हें पसंद करते हैं।