भारतीय राजनीति में नायक तो बहुत हुए लेकिन लोकनायक का मुकुट जयप्रकाश नारायण के माथे सजता है। उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी से लेकर इंदिरा के आपातकाल तक के खिलाफ संघर्ष किया। जेपी का सार्वजनिक जीवन रोचक किस्से-कहानियों से भरा है। लेकिन उनका निजी जीवन द्वन्द्व, संघर्ष और अधूरे प्रेम का बिम्ब खींचते किसी क्लासिक उपन्यास सरीखा है।

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सादगी से हुई शादी : 1919 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने बाद जयप्रकाश नारायण की शादी प्रभावती से तय कर दी गई। प्रभावती के पिता ब्रजकिशोर प्रसाद बिहार के वरिष्ठ वकील और कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद की मध्यस्थता के कारण जेपी भी इससे इनकार न कर सके। 1920 में यह विवाह बिना किसी तिलक-दहेज परंपरागत तरीके से संपन्न हुआ। शादी से पहले दोनों ने एक दूसरे को देखा तक नहीं था। विवाह के वक्त जेपी की उम्र 18 और प्रभावती की उम्र 14 थी। ब्रजकिशोर प्रसाद ने तय किया था वह अपनी बेटी का गौना 4-5 साल बाद करेंगे लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही जेपी को पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना था इसलिए गौना भी जल्दी हो गया।

जेपी गए अमेरिका और प्रभावती पहुंचीं आश्रम : 16 मई 1922 को जयप्रकाश नारायण अमेरिका के लिए पटना से रवाना हुए। वह कलकत्ता से रंगून, पेनांग, सिंगापुर और हांगकांग होते हुए करीब 30 दिन बाद जापान के कोबे बंदरगाह पहुंचे। वहां से रेलगाड़ी की यात्रा कर योकोहामा और फिर जहाज से 8 अक्टूबर 1922 को सैन फ्रांसिस्को पहुंचे।

इधर जयप्रकाश के अमेरिका जाते ही प्रभावती महात्मा गांधी के साथ रहने के लिए उनके साबरमती आश्रम चली गईं। दरअसल गांधी की कोई बेटी नहीं थी। उन्होंने ब्रजकिशोर प्रसाद से अनुरोध किया कि वह प्रभावती को उनकी दत्तक पुत्री के रूप में साबरमती आश्रम में रहने भेजें। जयप्रकाश को भी इस फैसले से कोई परेशानी न थी। उनके अमेरिका प्रवास के दौरान वह गांधी के आश्रम में ही रहीं।

इस दौरान प्रभावती और गांधी के संबंध काफी प्रगाढ़ हो गए। लम्बे समय तक जयप्रकाश नारायण की अनुपस्थिति और उनके निरंतर पत्र न लिखने की आदत ने जब प्रभावती को अकेला और उदास बनाया, तब गांधी ने उन्हें संभाला और सबल दिया। यदि प्रभावती थोड़े दिन के लिए भी आश्रम से जातीं तो गांधी परेशान हो जाते। पत्रकार और लेखक सुधांशु रंजन की किताब ‘जयप्रकाश नारायण’ में गांधी के कई ऐसे पत्रों का जिक्र मिलता है, जिसका संबंध जेपी और प्रभावती के जीवन से है। प्रभावती को भेजे अपने एक पत्र में गांधी लिखते हैं, ”मैं किसी खास काम के लिए नहीं बुला रहा हूं। कोई खास बात भी नहीं कहनी है। लेकिन जिस तरह बाप अपनी बेटी को बिना कारण भी अपने पास रखना चाहता है, वही स्थिति मेरी समझो”

जेपी की वापसी और ब्रह्मचर्य झटका : सात वर्ष से कुछ अधिक समय तक अमेरिका रहकर जेपी ने पांच विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया। मां की बिगड़ी तबीयत और पैसों की तंगी के कारण जेपी सितंबर 1929 में भारत लौटे। इधर प्रभावती पर गांधी का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया। उन्होंने इस संबंध में सिर्फ एक बार जेपी को खत लिखा, जिसके जवाब में जेपी ने कहा कि वापस आने पर बात करेंगे। जाहिर है वह एक दाम्पत्य जीवन के आकांक्षी थे। प्रभावती ने इसे स्वच्छा से उठाया कदम बताया, जबकि जयप्रकाश समेत उस वक्त के ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि उन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत गांधी के प्रभाव में लिया। गांधी हमेशा इस पक्ष में तर्क देते थे कि पति पत्नी के बीच ब्रह्मचर्य का पालन होना चाहिए। वह ब्रह्मचर्य को ब्रह्म-दर्शन अर्थात ईश्वर दर्शन मानते थे।

प्रभावती के ब्रह्मचर्य के संकल्प के लिए जेपी मानसिक तौर पर तैयार नहीं थे। परिणामस्वरूप जेपी-प्रभावती का शादीशुदा जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। यह फैसला आए दिन कलह का कारण बनने लगा। जेपी प्रभावती के इस फैसले के लिए गांधी को जिम्मेदार मानते थे और उनके प्रति आक्रोशित भी हुए थे। गांधी को लिखे कई पत्रों में जेपी उनके लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। प्रभावती के फैसले पर गांधी का प्रभाव था, इस बात को खुद गांधी भी स्वीकार करते हैं। जेपी को लिखे एक पत्र में कहते हैं, ”इसमें मेरी जिम्मेदारी तो है ही। प्रभा मेरे साथ रही और मेरी बातों ने, मेरे आचार ने उस पर असर डाला। अब मैं नहीं जानता क्या करना उचित है।” जेपी के एक पत्र के जवाब में गांधी लिखते हैं, ”मेरे लिए धर्म संकट है। प्रभा मुझे अथवा आश्रम को छोड़ना नहीं चाहती। मैं उसको कैसे निकाल दूं?…”

गांधी ने दी दूसरी शादी की सलाह : जेपी इस विषय पर गांधी से 1936 तक पत्रों के माध्यम से बातचीत करते रहे। वह प्रभावती ब्रह्मचर्य के फैसले पर गांधी से लगातार बहस करते रहे। एक पत्र का जवाब देते हुए गांधी लिखते हैं, ”मेरा दृढ़ विश्वास है कि प्रभावती को मुक्ति देनी चाहिए। तुम्हे दूसरी शादी करनी चाहिए। क्या किया जाए? तुम्हारी भोगेच्छा को बलात्कार से कैसे रोका जाए। तुम तो भोगेच्छा को आवश्यक और आत्मा के लिए लाभदायी मानते हो। ऐसे में दूसरी शादी करने को मैं बुरी चीज नहीं समझता।”

गांधी इसी पत्र में आगे लिखते हैं, ”कई नवयुवक अपनी पत्नी पर बलात्कार करते हैं। कई वेश्यागमन करते हैं। कई इससे भी ज्यादा अनीति करते हैं। यहां तो प्रभावती ने कुमारी का जीवन पसंद किया है। तुम्हारी ब्रह्मचर्य की इच्छा नहीं है।… इसलिए तुम अपने लिए दूसरी स्त्री को ढूंढते हो, तो इस योजना में कहीं भी मुझको बुराई प्रतीत नहीं होती है।” गांधी का यह तर्क जेपी को बिल्कुल भी हजम न हुआ। उन्होंने गांधी के इस कथित समाधान को रूथलेस लॉजिक कहा।