बिहार और झारखंड में राजद और झामुमो के बीच टिकट बंटवारे को लेकर तीखी बहस हो रही है। उत्तर प्रदेश में योगी और केशव की दूरी अभी साफ नहीं हुई, जबकि कांग्रेस की श्रद्धा और ओवैसी का तेलंगाना समर्थन राजनीतिक हलचल बढ़ा रहा है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल चुनावी तैयारी में जुटी है। पूरे देश में गठबंधन, टिकट और समर्थन की राजनीति गरमाई हुई है।

लपटें झारखंड तक

राष्ट्रीय जनता दल को बिहार में टिकट बंटवारे के मुद्दे पर केवल कांग्रेस से ही उलझना नहीं पड़ा है, बल्कि वाम दलों और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी तेजस्वी यादव का सिरदर्द कम नहीं बढ़ाया। झामुमो और राजद के नेताओं के बीच तो जुबानी जंग भी चल रही है। दोनों पार्टियों के प्रवक्ता परस्पर आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। झामुमो के नेता और झारखंड सरकार में मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने तो पत्रकारों के सामने राजद पर धूर्तता का आरोप भी लगा दिया। इस तरह के आरोप पर राजद खेमे का भड़कना स्वाभाविक था। कुछ दिन पहले घोषणा की गई थी कि झामुमो को भी बिहार के महागठबंधन में शामिल किया जाएगा। तभी तो राहुल गांधी और तेजस्वी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के समापन के मौके पर पटना में हुई रैली में मार्च में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी शामिल हुए थे। झामुमो को दो सीट मिलने का भरोसा था। पर, आखिरी वक्त राजद ने गच्चा दे दिया और एक भी सीट नहीं दी। नाराज होकर झामुमो ने शुरू में छह सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की बात कही थी, लेकिन बाद में पीछे हट गई। झामुमो का कहना था कि उसने झारखंड में पिछले साल राजद को छह सीट दी थी। तब, जबकि उनका एक ही विधायक था। झामुमो की शिकायत है कि यादव उसे वोट नहीं देते, भाजपा को दे देते हैं। लगता है कि बिहार की इस तनातनी का असर झारखंड में भी दिखेगा।

फिर किरकिरी

उत्तर प्रदेश में भाजपा आलाकमान ने हस्तक्षेप करके राज्य सरकार के दो बड़े नेताओं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के बीच सुलह भले करा दी हो, पर दोनों के रिश्ते सहज नहीं लगते। योगी जहां हिंदुत्व का चेहरा हैं, वहीं केशव मौर्य भाजपा का ओबीसी चेहरा ठहरे। मौर्य को मुख्यमंत्री न बन पाने का मलाल तो है ही। पिछले हफ्ते राज्य के सेवानिवृत्त मुख्य सचिव मनोज कुमार दोनों की लड़ाई में मोहरा बनते-बनते योगी की कृपा से बच पाए। राजपूत मनोज के खिलाफ केशव मौर्य के मंत्रालय ने दस करोड़ की वसूली का नोटिस जारी कर दिया था। आरोप था, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नीति के क्रियान्वयन में अनियमितता का। मामला योगी तक पहुंचना ही था। उन्होंने जारी नोटिस गुरुवार को निरस्त करा दिया। नया आदेश जारी किया सूबे के कृषि उत्पादन आयुक्त दीपक कुमार ने।

श्रद्धा पर उठ गए कई सवाल

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी अपने सहयोगी दलों के साथ पूरा जोर लगा रही है। चुनावी दंगल के बहाने ही सही, अरसे बाद पार्टी को पुराने नेताओं की याद आई है। कांग्रेस नेतृत्व पर पार्टी से जुड़े नेताओं को उपेक्षित करने का आरोप लगता रहा है। इस बार बिहार से जुड़े नेता की पुण्यतिथि पर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने अपनी श्रद्धांजलि दी। पार्टी के र्शीष नेताओं से लेकर स्थानीय नेता भी पार्टी मुख्यालय में श्रद्धांजलि देने के लिए जुटे। लेकिन, अचानक से उमड़ी इस श्रद्धा पर सवाल भी उठे कि अभी तक तो ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं किया था। यह श्रद्धांजलि कार्यक्रम सियासी समीकरण की भेंट तो चढ़ा ही, वरिष्ठों की उपेक्षा को लेकर पुराने जख्म भी हरे हो गए।

समर्थन का संकट

असदुद्दीन ओवैसी के राजनीतिक कदम का समीकरण अक्सर दूसरे दलों पर भारी पड़ता है। वे जहां दोस्ती का भाव दिखाते हैं, वहां भी उन्हें दुश्मन की तरह आंका जाता है। खास कर विपक्ष को वे उलझा देते हैं। फिलहाल ओवैसी ने तेलंगाना में कांग्रेस को दुविधा में डाल दिया है। तेलंगाना की दुविधा का असर पड़ना बिहार में है। राज्य की सिकंदराबाद लोकसभा में आने वाली विधानसभा सीट जुबली हिल्स के उपचुनाव में एआइएमआइएम ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है। अलबत्ता कांग्रेस के समर्थन का एलान किया है। इस सीट पर उपचुनाव की नौबत 2023 में विजयी हुए बीआरएस के गोपीनाथ के निधन के कारण आई है। यह बीआरएस का दुर्ग मानी जाती है। उपचुनाव में मुख्य मुकाबला बीआरएस, कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों के बीच है। खुद ओवैसी हैदराबाद से ही लोकसभा सदस्य हैं। ओवैसी ने तंज भी कसा है कि कांग्रेस भले उन्हें अछूत मानती हो पर वे धर्मनिरपेक्ष सोच के कारण जुबली हिल्स में उसका समर्थन कर रहे हैं। इस समर्थन ने कांग्रेस की दुविधा बढ़ा दी है। पार्टी जानबूझ कर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही। वह विरोध कर नहीं सकती और समर्थन के लिए आभार जताएगी तो बिहार में गलत संदेश जाएगा। जहां महागठबंधन ओवैसी को भाजपा की ‘ब टीम’ बताता है। विमर्श बदल न जाए, इसी कारण 243 में पांच सीट की ओवैसी की मांग भी ठुकरा दी महागठबंधन ने। 2020 के चुनाव में ओवैसी ने विपक्ष का खेल बिगाड़ा था।

चुनावी चौकसी

दीदी बखूबी जानती हैं कि पश्चिम बंगाल में एसआइआर (विशेष पुनरीक्षण अभियान) को रोकना आसान नहीं होगा। आयोग ने तैयारी कर ली है। उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। बिहार की तरह ही आयोग को हर सूबे में यह काम तीन महीने में पूरा करना है। तभी तो तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने अपने कार्यकर्ताओं को धरातल पर उतरने और मतदाता सूची घर-घर ले जाकर ये जांच करने को कहा है कि तृणमूल समर्थकों के नाम सूची में हैं या नहीं। बूथ स्तर के एजंटकी नियुक्ति भी शुरू कर दी है। उनके कार्यकर्ता घर-घर जाकर देखेंगे कि उनके समर्थकों के पास जरूरी दस्तावेज हैं या नहीं। आधार के अलावा आयोग ने बिहार में जिन 11 दस्तावेजों का एलान किया था, उनमें से कोई एक सबके पास हो, यह तय करेंगे तृणमूल के कार्यकर्ता। खबर तो यह भी आ रही है कि तृणमूल कार्यकर्ता और नेता बीएलओ को धमकी दे रहे हैं। घबरा कर कुछ बीएलओ पीछे हटने लगे हैं। कई बीएलओ को चुनाव आयोग द्वारा नोटिस भेजने से इसकी पुष्टि होती है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अगले साल है।