किसी भी लोकतंत्र में चुनाव को सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। वो पर्व भी तभी सफल हो सकता है जब सभी ‘वैध वोटरों’ को वोटिंग का अधिकार मिले, उन्हें अपने पसंद की सरकार चुनने का मौका मिले। अब लोकतंत्र का यह पर्व सफल तभी है जब मतदाता सूचि एकदम सही रहे, पारदर्शी रही और उसमें किसी भी तरह की विसंगतियां देखने को ना मिले। चुनाव आयोग ने इसी वजह से बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया शुरू की है, इसके जरिए वो वोटर लिस्ट का गहन निरीक्षण कर रही है। लेकिन विपक्ष को इसी निरीक्षण में कई खामियां नजर आ रही हैं, साजिश की बू आ रही है और कई तरह के आरोप भी लग रहे हैं।

विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग कई नागरिकों को वोटिंग के अधिकार से दूर कर रहा है। कुछ विपक्षी दलों का दावा तो यहां तक है कि इस प्रक्रिया के जरिए उनके ‘कोर वोटरों’ को दूर किया जा रहा है। इस बीच विरोध का सबसे बड़ा मोर्चा तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने खोल रखा है।

असल में गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर एक साथ कई हमले किए। उन्होंने महाराष्ट्र चुनाव का जिक्र किया, कुछ विधानसभा चुनाव के नतीजों पर भी सवाल उठाए। यहां समझने की कोशिश करते हैं कि राहुल गांधी के अलग-अलग चुनावों को लेकर क्या दावे रहे, चुनाव आयोग का क्या जवाब आया और असल में इस पूरे विवाद के मायने क्या निकल रहे हैं।

कर्नाटक चुनाव को लेकर राहुल गांधी का दावा

लोकसभा के कर्नाटक चुनाव को लेकर राहुल गांधी ने कहा कि जितने भी इंटरनल पोल्स हुए थे, उनमें हमें 16 सीटें मिलने का अनुमान था, लेकिन कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटें ही मिल पाईं। हमने जब जांच की तो पता चला कि महादेवपुरा सीट पर एक लाख से ज़्यादा डुप्लिकेट वोटर, फ़र्जी पते और बल्क वोटर पाए गए। राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि महादेवपुरा विधानसभा सीट पर 6.5 लाख वोटों में से एक लाख से ज़्यादा वोटों की तो चोरी हुई। इसके अलावा राहुल ने जोर देकर बोला कि कर्नाटक में 11 हजार ऐसे वोटर रहे जिन्होंने अलग-अलग बूथ और अलग अलग राज्यों में भी वोटिंग की।

महाराष्ट्र चुनाव को लेकर राहुल गांधी का दावा

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों को लेकर भी राहुल गांधी ने गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि पांच महीने में चुनाव आयोग ने जितने नए वोटर जोड़ने का नाम किया, उतने नाम तो कभी पांच साल में भी नहीं जोड़े गए। नेता प्रतिपक्ष के मुताबिक नए वोटरों की संख्या महाराष्ट्र की असल आबादी से भी ज्यादा रही जो काफी हैरान करता है। राहुल का तर्क रहा कि विधानसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी की बुरी तरह हार हुई, लेकिन कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में वही गठबंधन आराम से जीत गया। नेता प्रतिपक्ष ने महाराष्ट्र को लेकर बड़ा दावा यह भी किया कि यहां विधानसभा चुनाव से पहले 40 लाख फर्जी वोटर्स जोड़े गए।

हरियाणा चुनाव को लेकर राहुल गांधी का दावा

हरियाणा के विधानसभा चुनावों को लेकर राहुल गांधी का आरोप रहा कि यहां एक लाख वोटों की चोरी हुई। उनका तर्क था कि हरियाणा में आठ ऐसी सीटें रहीं जहां हार-जीत का अंतर सिर्फ 22,779 था। एक विधानसभा क्षेत्र में एक लाख वोटों की चोरी हुई। राहुल गांधी ने तो एग्जिट पोल्स का भी हवाला देते हुए कहा कि उनमें तो दिखाया गया कि कांग्रेस को 90 में से 60 सीटें मिलेंगी, लेकिन बीजेपी ने सभी एग्जिट पोल्स को गलत साबित करते हुए आराम से बहुमत का आंकड़ा भी पार कर 48 सीटें जीत लीं।

चुनाव आयोग बिहार में SIR क्यों करवा रहा?

बिहार चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने SIR प्रक्रिया को काफी जरूरी माना है। लगातार कहा जा रहा है कि आखिरी बार राज्य में इतनी व्यापक प्रक्रिया 2003 में हुई थी। इस बार चुनाव आयोग ने एक फॉर्म तैयार किया है, जो भी मतदाता एक जनवरी, 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल थे, उन्हें बस Enumeration Form यानी गणना पत्र भरना होगा, उनसे कोई सबूत नहीं मांगा जाएगा। लेकिन जो लोग एक जुलाई 1987 से लेकर दो दिसंबर 2004 के बीच पैदा हुए, उन्हें जरूर अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान और अपने माता-पिता में से किसी एक की जन्मतिथि और जन्मस्थान का सबूत देना अनिवार्य रहने वाला है। चुनाव आयोग की सबसे बड़ी दलील है कि इस एक प्रक्रिया के जरिए मतदाता सूची से अवैध प्रवासियों को अलग कर दिया जाएगा।

SIR पर कैसे फंस गए राहुल गांधी?

अब एक बार के लिए अगर मान लिया जाए कि राहुल गांधी जितने भी आरोप लगाए, वो सभी सही हैं तो इसका सीधा मतलब है कि चुनाव आयोग को बड़े स्तर पर बदलाव करना पड़ेगा। उसे फर्जी वोटरों को अलग करना होगा, डुप्लीकेट वोटरों को भी मतदाता सूची से बाहर निकालना होगा, इसके अलावा भी कई और बदलाव करने पड़ेंगे। अब इस समय जो SIR की प्रक्रिया बिहार में चल रही है, वहां तो चुनाव आयोग यही करने की कोशिश कर रहा है? चुनाव आयोग तो खुद कह रहा है कि चुनाव से पहले इन सभी विसंगतियों को दूर करना जरूरी है। आखिर फिर राहुल गांधी किस बात का विरोध कर रहे हैं, उन्हें क्या SIR का समर्थन नहीं करना चाहिए? SIR तो उनकी उन शिकायतों को दूर नहीं करता जिसे लेकर वे लगातार विरोध कर रहे हैं?

यहां एक और बात समझने की कोशिश करते हैं, राहुल गांधी ने काफी प्रमुखता से फेक एड्रेस का मुद्दा उठाया है। उन्होंने बेंगलुरु की सेंट्रल सीट का मुद्दा उठा दावा भी किया कि वहां तो 40 हजार ऐसे वोटर्स मिले जिनके एड्रेस ही गलत थे। राहुल का मानना साफ था कि फेक वोटरों के दम पर भी चुनाव जीते जा सकते हैं। अब यहां बिहार को लेकर दैनिक भास्कर की भी एक रिपोर्ट समझना जरूरी है। उसमें कहा गया है कि कम से कम बिहार के 37 जिले ऐसे रहे हैं जहां पर आबादी से ज्यादा तो आधार कार्ड निकले हैं। इसका सीधा मतलब है कि अगर चुनाव आयोग सिर्फ आधार कार्ड को ही किसी चुनाव में वोटर बनने का क्राइटेरिया मान लेगा तो उस स्थिति में कई सारे फर्जी वोटर भी जुड़ जाएंगे। इसी वजह से तो चुनाव आयोग ने भी आधार को पहचान पत्र मानने से मना कर दिया है। अब अगर राहुल गांधी खुद फर्जी वोटरों का मुद्दा दूसरे चुनावों में उठा रहे हैं, उस स्थिति में तो उन्हें यहां खुलकर चुनाव आयोग का समर्थन करना चाहिए जिससे यह समस्या दूर हो सके।

SIR पर विपक्ष की रणनीति फेल हो रही?

अब इंडिया गठबंधन SIR के दम पर दिखाने की कोशिश कर रहा है कि चुनाव आयोग कैसे पूरी तरह बीजेपी के साथ मिल चुका है, बताने का प्रयास तो ये भी है कि कई लोगों को वोटिंग के अधिकार से ही दूर किया जा रहा है। अब विपक्ष इस नेरेटिव को इसलिए गढ़ रहा है क्योंकि वो जानता है कि जनता पर इसका प्रभाव पड़ता है। लोकसभा चुनाव कोई भूला नहीं है जब ‘संविधान बचाओ’ के एक नारे ने बीजेपी को बहुमत से दूर कर दिया था, उसे अपने सहयोगी दलों के सहारे सरकार का गठन करना पड़ा। अब ऐसा ही एक प्रयास बिहार चुनाव में भी देखने को मिल रहा है, लेकिन फर्क इतना है कि यहां चुनाव आयोग तमाम विपक्षी पार्टियों के आरोपों का अपने तथ्यों के साथ जवाब दे रही है, इसके ऊपर राहुल गांधी को भी लगातार चैलेंज किया जा रहा है। ऐसे में विश्वनीयता की इस लड़ाई में विपक्ष अब बीजेपी नहीं सीधे चुनाव आयोग से मुकाबला कर रहा है।