प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों 18 जून, 2024 को वाराणसी में पीएम-क‍िसान योजनाकी 17वीं क‍िस्‍त जारी करने का ऐलान क‍िया गया। इसके ल‍िए मेहंदीगंज में भव्‍य आयोजन क‍िया गया।

प्रधानमंत्री क‍िसान सम्‍मान न‍िध‍ि से जुड़ा यह अपडेट 10 जून को तब भी चर्चा में था जब 2024 में तीसरी बार शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला। कहा गया क‍ि प्रधानमंत्री ने जो पहली फाइल साइन की, वह पीएम-क‍िसान से संबंध‍ित ही थी।

बताया गया क‍ि 9.26 करोड़ क‍िसानों के खातों में 20 हजार करोड़ रुपये की रकम डाले जाने को मंजूरी दी गई। 

कृष‍ि मंत्री श‍िवराज स‍िंंह चौहान ने 18 जून को वाराणसी में भी यह बात दोहराई और कहा क‍ि दस साल से कृष‍ि और क‍िसान कल्‍याण नरेंद्र मोदी, भाजपा और एनडीए सरकार की प्राथम‍िकता रही है। शि‍वराज ने कृष‍ि को देश की अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ और क‍िसानों को उसकी आत्‍मा बताया। लेक‍िन, सच यह है क‍ि रीढ़ बेहद कमजोर और आत्‍मा छलनी है। 

2019 से चल रही है पीएम-क‍िसान योजना

पीएम-क‍िसान योजना 2019 से चल रही है। इसके तहत क‍िसानों को साल में तीन बार दो-दो हजार रुपये उनके बैंक खाते में द‍िए जाते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही क‍िसानों को इसकी शुरुआती क‍िश्‍तें दी जा चुकी थीं। उस चुनाव में ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को 253 लोकसभा की सीटें म‍िली थीं। 303 में 253। लेक‍िन, 2024 में 253 घट कर 193 रह गईं।

क‍िसानी पर भारत की 45 फीसदी से ज्‍यादा आबादी न‍िर्भर

2024 के चुनाव में बीजेपी ने कुल 63 सीटें खोईं। इनमें से 60 ग्रामीण आबादी के दबदबे वाली सीटें हैं। 2024 के भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में क‍िसानों के ल‍िए कुछ खास और नया नहीं था। उनकी आमदनी डबल करने के पुराने वादे पर भी कोई अपडेट या उसका ज‍िक्र नहीं था। इस बीच, क‍िसान लगातार सड़कों पर उतरे और मुसीबतें झेलते रहे थे। क‍िसानी पर आज भी 45 फीसदी से ज्‍यादा आबादी न‍िर्भर है।

खेती का जीडीपी में योगदान 1.4 फीसदी

कई व‍िशेषज्ञों की नजर में यह अपने आप में एक समस्‍या है। उनका कहना है क‍ि ज‍िस क्षेत्र में 45.8 फीसदी वर्कफोर्स लगा है, उसका जीडीपी में योगदान 1.4 फीसदी ही रहता है तो यह च‍िंंताजनक है। 2023-24 में कुल जीडीपी 8.2 फीसदी की दर से बढ़ा, लेक‍िन इसमें खेती का योगदान महज 1.4 फीसदी था। 

 व‍िशेषज्ञ मानते हैं क‍ि पांच क‍िलो मुफ्त राशन या साल का छह हजार रुपये देने के बजाय जरूरत है ग्रामीण अर्थव्‍यवस्था को मजबूत करने की। कृष‍ि क्षेत्र में लगे फाज‍िल लोगों को वहां से न‍िकाल कर दूसरे प्रॉडक्‍ट‍िव काम में लगाने की। कृष‍ि में न‍िवेश बढ़ाने की। साल में एक से ज‍ितना ज्‍यादा हो सके उतना फसल लेने की। कम समय में तैयार होने वाला और ज्‍यादा मुनाफा देने वाला फसल उपजाने की। कीटनाशकों का इस्‍तेमाल कम करने की। क‍िसानों का फसल बर्बाद होने से बचाने की। उन्‍हें स्‍टोरेज की सुव‍िधा व बाजार मुहैया कराने की। 

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गांवों में लोगों की प्रत‍ि व्‍यक्‍त‍ि आय 4000 रुपये से भी कम

क‍िसानों की आय आज भी बहुत कम है। 2022-23 के आंकड़े के ह‍िसाब से गांवों में लोगों की प्रत‍ि व्‍यक्‍त‍ि आय 4000 रुपये से भी कम बताई गई है। 3773 रुपये। यह बढ़ेगी जब ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में मजबूती आएगी।क‍िसानों की आमदनी का कनेक्‍शन कृष‍ि न‍िर्यात से भी जुड़ा है। लेक‍िन, यह घट रहा है। 2022 में मोदी सरकार ने 60 अरब डॉलर के न‍िर्यात का लक्ष्‍य रखा था। 2022-23 में 53.2 अरब डॉलर का हुआ। 2023-24 में यह ग‍िर कर 48.9 अरब डॉलर ही रह गया।

2023-24 के बीच कृष‍ि न‍िर्यात दो फीसदी से भी कम

2004-05 से 2013-14 के बीच कृष‍ि न‍िर्यात की सालाना औसत दर 20 फीसदी हुआ करता था। यह आंकड़ा 2014-15 से 2023-24 के बीच दो फीसदी से भी कम (1.9) पर आ गया। गांवों में कई सरकारी योजनाएं पहुंच रही हैं। पीएम-आवास, नल-जल, शौचालय आद‍ि। पर, ग्रामीण लोगों की आय लगभग स्‍थ‍िर ही है। सरकार का जोर रेवड़ी बांटने पर है। खाद्य और खाद पर ही करीब चार खरब रुपये की सब्‍स‍िडी दी जा रही है। यह बड़ी चुनौती है।

मनरेगा के तहत दी जाने वाली औसत मजदूरी (राष्‍ट्रीय स्‍तर पर) 2023-24 में 261 रुपये थी, जो 2024-25 में 289 रुपये हुई। 28 रुपये की बढ़ोत्‍तरी।अगले महीने बजट है। इसमें सरकार इस संबंध में कुछ करती है या नहीं, इससे क‍िसानों को लेकर सरकार का नजर‍िया पता चलेगा।