भारत के ‘रासपुतिन’ (रूस का कुख्यात तांत्रिक) कहे जाने वाले धीरेंद्र ब्रह्मचारी का जन्म 12 फरवरी, 1924 को हुआ था। माना जाता है कि उनका जन्म बिहार के मधुबनी ज़िले में हुआ था। हालांकि वह पूरी जिंदगी खुद अपना जन्म स्थान बताने से बचते रहे।

उनका कहना था, “हम योगी कभी अपना जन्म स्थान, उम्र या पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं बताते। हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि अगर भगवाधारी संन्यासी की उत्पत्ति लोगों को पता चल जाए तो वह अपनी पवित्रता खो देता है। हम अपनी उम्र जाति और जन्म स्थान का खुलासा नहीं करते।”

नवंबर 1980 में एक इंटरव्यू के दौरान जब वरिष्ठ पत्रकार अरुण पुरी और प्रभु चावला ने उनका जन्म स्थान जानने के लिए जोर लगाया तो ब्रह्मचारी ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, “आप लोग यह जानकारी मुझसे नहीं ले सकते। मैं आपसे ज्यादा चालाक हूं। अगर आप जैसे 10 लोग भी प्रयास करें तो भी वे अपने प्रयास में सफल नहीं होंगे। लंदन में ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर भी 14 अलग-अलग देशों के पत्रकारों ने मुझसे मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पूछा लेकिन मैंने जवाब देने से इनकार कर दिया।”  

नेहरू, शास्त्री, जेपी, मोरारजी और इंदिरा को सिखाया योग

धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने 13-14 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था। उन्होंने लखनऊ के पास गोपालखेड़ा में महर्षि कार्तिकेय से योग की शिक्षा ली और फिर खुद योग सिखाने लगे। एक वक्त ऐसा जब उनसे योग सीखने वालों में जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और डॉ राजेंद्र प्रसाद शामिल हो गए। साल 1959 में खुद नेहरू ने ब्रह्मचारी के विश्वायतन योग आश्रम का उद्घाटन किया था।

इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाली कैथरीन फ़्रैंक के मुताबिक, आश्रम के लिए उन्हें शिक्षा मंत्रालय अनुदान देता था। इतना ही नहीं ब्रह्मचारी को दिल्ली के जंतर-मंतर रोड पर सरकारी बंगला भी दिया गया था।

सम्मोहक योग गुरू

धीरेंद्र ब्रह्मचारी लहराती दाढ़ी, चमकदार शरीर, भारी पलकों और सम्मोहक आंखों वाले असाधारण रूप से एक सुंदर योगी थे। ब्रह्मचारी से योग सीखने वाले इंदिरा गांधी के करीबी नटवर सिंह ने योगी की तारीफ करते हुए उन्हें करिशमाई बताया है।

नेहरू के बाद धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने इंदिरा को भी योग सिखाया था। इंदिरा गांधी की जीवनीकार कैथरीन फ़्रैंक ने अपनी किताब में लिखा है, “ब्रह्मचारी अकेले पुरुष थे जो योग सिखाने के बहाने इंदिरा गांधी के कमरे में अकेले जा सकते थे। धीरे-धीरे इंदिरा गांधी के साथ नजदीकी के कारण उन्हें भारत का रासपुतिन कहा जाने लगा था।”

भारतीय बाबाओं पर ‘GURUS’ नाम से किताब लिखने वाली भवदीप कंग ने अपनी किताब में पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह के हवाले से लिखा है, “धीरेंद्र ब्रह्मचारी एक लंबे और सुंदर बिहारी थे, जो हर सुबह बंद दरवाजों के पीछे इंदिरा के साथ एक घंटा बिताते थे। हो सकता है कि योग की शिक्षा का अंत कामसूत्र की शिक्षा के साथ हुआ हो।” हालांकि खुशवंत सिंह की बातों को कोई प्रमाण नहीं बल्कि वह खुद की अनुमान ही लगा रहे हैं।  

ब्रह्मचारी की पैरवी करने पिता के पास पहुंच गई थीं इंदिरा

सरकार में धीरेंद्र ब्रह्मचारी का ऐसा प्रभाव था कि मंत्री और नौकशाह भी उनसे नहीं उलझते थे। 1963 में धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने तत्कालीन शिक्षा मंत्री केएल श्रीमाली से अनुरोध किया था कि उनके योग केंद्र का अनुदान रिन्यू कर दिया जाए। इस पर मंत्री ने योग गुरु से पिछले साल दिए गए अनुदान की ऑडिट रिपोर्ट मांगी। ब्रह्मचारी ने ऑडिट रिपोर्ट नहीं दी, उल्टा यह बात इंदिरा गांधी ने नेहरू तक पहुंचा दी। नेहरू ने मंत्री से बात की। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हालांकि कुछ समय बाद ही केएल श्रीमाली ने त्यागपत्र दे दिया। कुछ लोगों ने माना कि ऐसा कामराज योजना की वजह से हुआ और कुछ ने माना कि उन्हें मंत्रिमंडल से निकाल दिया गया।  

अनुभवी वकील और लेखक जनक राज जय ने 1950 और 60 के दशक में प्रधानमंत्री कार्यालय में काम किया था। भवदीप कंग ने अपनी किताब में 1963 की इस घटना को जय के हवाले से लिखा है।

जनक राज जय के मुताबिक, जब नेहरू ने शिक्षा मंत्री से बात की तो श्रीमाली ने स्पष्ट किया कि उन्होंने अनुदान नहीं रोका है, बल्कि नियमों के तहत पिछले वर्ष की ऑडिट रिपोर्ट की मांगी है। एक बार ये सबमिट हो जाने पर, वह अनुदान रिन्यू कर देंगे। नेहरू ने यह बात अपनी बेटी को बताई, लेकिन वह संतुष्ट नहीं हुई।

जय को याद है कि योग शिक्षक के लिए इंदिरा की पैरवी से नेहरू चिढ़ गए थे। उन्होंने कहा था, “क्या मुझे उसे (श्रीमाली को) खिड़की से बाहर फेंक देना चाहिए? यह आदमी (ब्रह्मचारी) ऑडिट रिपोर्ट क्यों नहीं जमा कर सकता?”

जनक राज जय एक और ऐसा ही मामला याद करते हैं, जब इंदिरा ने ब्रह्मचारी का सरकारी आवास में बनाए रखने के लिए तत्कालीन आवास मंत्री मेहर चंद खन्ना को पत्र लिखा था। मंत्री ने विधिवत जवाब देते हुए स्पष्ट रूप से बताया कि चूंकि सरकार में उनकी (धीरेंद्र ब्रह्मचारी) कोई आधिकारिक स्थिति नहीं है, इसलिए वह अपने पिता से सीधे उन्हें लिखने या फोन करने को कह सकती हैं। उस स्थिति में वह स्वामी को सरकारी आवास में रहने दे सकते हैं।

हालांकि इंदिरा ने पिता से फोन नहीं करवाया। उन्होंने जय को एक पर्ची भेजी, जिसमें लिखा था, “स्वामीजी को सामान पैक करके जाने के लिए कहो। मैं तंग आ गई हूं”

इंदिरा के नाम का गलत इस्तेमाल

अल्पकालिक मोहभंग के बाद धीरेंद्र ब्रह्मचारी फिर पीएम आवास में नजर आने लगे। मई 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद उनका प्रभाव और अधिक मजबूत हो गया। सत्तर के दशक की शुरुआत में ब्रह्मचारी ने बिना रोक टोक पीएम आवास आने लगे। आपातकाल के दौरान इसमें बदलाव आया… जब उन्होंने कथित तौर पर व्यवसायियों और अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए इंदिरा के नाम का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।