देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अक्सर भाजपा के निशाने पर रहते हैं। तमाम अन्य आरोपों के अलावा उनपर फिजूलखर्ची की भी तोहमत मढ़े जाते है। लेकिन हाल ही में भाजपा के वैचारिक स्त्रोत आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया है कि नेहरू के रसोई का बजट इतना टाइट रहता था कि दो-चार लोगों को खाने पर बुलाने से पहले भी प्रधानमंत्री को सोचना पड़ता था।
रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति’ विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में शामिल हुए आरएसएस पदाधिकारी कृष्ण गोपाल ने विषय बात रखते हुए जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से जुड़ा एक किस्सा सुनाया।
न्योता देकर सोच में पड़ गए नेहरू
आरएसएस पदाधिकारी याद करते हैं, “एक बार, जब एक बाल कलाकार ने एक फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, तो नेहरू ने उस बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया। पीएम ने बच्चे को अपने घर पर नाश्ते के लिए आमंत्रित किया। मौका देखकर फिल्म के निर्देशक केए अब्बास ने प्रधानमंत्री नेहरू से पूछ लिया कि क्या वह नाश्ते के लिए पूरी टीम के साथ प्रधानमंत्री आवास पर ला सकते हैं। इस पर नेहरू का जवाब था- इंदिरा गांधी से पूछना होगा।”
गोपाल आगे बताते हैं, “तब इंदिरा गांधी ही अपने पिता की रसोई संभालती थीं। फिल्म की पूरी टीम को नाश्ते पर बुलाना है या नहीं, इस पर फैसला लेने में इंदिरा गांधी को थोड़ा समय लगा। आखिरकार वह पूरी टीम को नाश्ते पर बुलाने के लिए राजी हो गईं। लेकिन फिल्म निर्देशक अब्बास को यह जानना था कि आखिर इस प्रतिक्रिया में इतनी देरी क्यों हुई।”
बहुत कम है पिता का वेतन
आरएसएस पदाधिकारी कृष्ण गोपाल की मानें तो इंदिरा गांधी ने अब्बास की उत्सुकता का जवाब शिकायती लहजे में देते हुए कहा था, मेरे पिता कभी-कभी कई मेहमानों को घर पर बुला लेते हैं। उनका वेतन कम है, बावजूद इसके वह रसोई के खर्चों का ध्यान नहीं रखते। गोपाल ने इस किस्से को उदाहरण के तौर पर यह समझाने के लिए सुनाया कि भारतीय संस्कृति में परिवार को बांधे रखने में रसोई का कितना महत्व है।
नेहरू की ऑफिसियल होस्टेस थीं इदिरा गांधी
मई 1964 में नेहरू की मृत्यु तक इंदिरा गांधी अपने पिता जवाहरलाल नेहरू की ऑफिसियल होस्टेस थीं। आमतौर पर इंदिरा गांधी ही वह पहली इंसान होती थीं, जिनपर सुबह सबसे पहले प्रधानमंत्री की नजर पड़ती। वह उनके विदेशी दौरों पर भी उनके साथ रहतीं। हालांकि भारत में यात्राओं के दौरान ऐसा हमेशा नहीं होता था। इतिहासकार रामचंद्र गुहा लिखते है कि जहां इंदिरा गांधी अपने पिता से प्यार करती और उनका आदर करती थीं। वहीं कई बार वह उनके विचारों से असहमत भी होती थीं।
इंदिरा गांधी को अपने पिता से सबसे मुख्य शिकायत यह थी कि वह बहुत नरम व्यक्ति हैं। वह अपने अधिकारों का पर्याप्त इस्तेमाल नहीं करते। इंदिरा ने 1949 में नेहरू को व्यंग्यात्मक ढंग से लिखा था, “आप बहुत सी चीजें बर्दाश्त करते हैं… हर किसी को यह कहते हुए सुनकर दिल दुखता है कि आपके ध्यान में कुछ भी लाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि आप चीजों को सही करने के लिए कुछ नहीं करते।”