रामनाथ गोयनका (Ramnath Goenka) तीन अप्रैल 1904 को दरभंगा (बिहार) में जन्मे थे। कारोबार के गुर सीखने वह चेन्नई चले गए थे। उन्होंने फ्री प्रेस जर्नल में डिस्पैच वेंडर का काम भी किया था। 1936 में उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस की शुरुआत की। वह देश की पहली संविधान सभा के सदस्य भी थे। भारत के संविधान पर उनके भी दस्तखत हैं।
काम ही मनोरंजन, बाकी कोई शौक नहीं: रामनाथ गोयनका ने अपनी निजी जिंदगी के बारे में बात करते हुए बताया था- मुझे न तो संगीत का शौक है, न फिल्मों का और न ही किसी और तरह से मनोरंजन का। मेरा इकलौता मनोरंजन काम है। मैं हर दिन सुबह 4.30 बजे जग जाता हूं और 5 मील वॉक करता हूं और शाम को भी टहलता हूं। किसी तरह का कोई नशा नहीं करता। दोस्त भी गिने-चुने हैं, ज्यादातर सहकर्मी हैं। मेरा खानपान भी शाकाहारी और बेहद सादा है। बड़ी कारें भी पसंद नहीं हैं। मेरे पास फिएट है, जो खुद चलाता हूं। लंबी दूरी की यात्रा पर ड्राइवर भी साथ होता है। हां, अर्थशास्त्र पर केंद्रित किताबें मुझे पसंद हैं।
उनके लिए जन्मदिन भी किसी आम दिन की ही तरह होता था। 1979 में अपने जन्मदिन (3 अप्रैल) पर जब वह खुद अपनी फिएट कार चलाकर बेंगलुरु से अपने मद्रास (अब चेन्नई) स्थित घर के लिए निकले तो रास्ते में वह इंटरव्यू दे रहे थे और घर पहुंच कर भी काम में लग गए थे। बंगलुरु से मद्रास की यात्रा के बीच इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार छोटू कराड़िया को दिये एक लंबे इंटरव्यू में उन्होंने पत्रकारिता, सियासत से लेकर अपनी निजी जिंदगी से जुड़ी कई बातें साझा की थीं। यह इंटरव्यू 31 मई, 1979 के इंडिया टुडे के अंक में छपा था। तब रामनाथ गोयनका द्वारा कही गई कई बातें आज भी प्रासंगिक हैं।
आजादी की लड़ाई के सिपाही: रामनाथ गोयनका ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। जब वह छात्र थे तभी मुजफ्फरपुर में महात्मा गांधी से उनका संपर्क हुआ था। उन्होंने चंपारण आंदोलन में भाग लिया था। साल 1942 में ट्रेन और पुल को उड़ाने में भी उनकी सक्रिय भागीदारी थी। इसके लिए उनपर मुकदमा चलाया गया था। आजादी की लड़ाई में वह दक्षिण भारत में आंदोलन के प्रभारी रहे थे।
नेताओं के बस का नहीं अखबार चलाना: रामनाथ गोयनका का साफ मानना था कि अखबार चलाना नेताओं के बस की बात नहीं है। इसकी वजह वह यह मानते थे कि नेता व्यक्तिगत हित से ऊपर उठ कर सोच ही नहीं सकते, जबकि अखबार पूरे देश की चिंंता करता है। उनकी राय में अखबार सिर्फ, व्यापार का साधन नहीं बल्कि एक मिशन भी है…लोगों की जिंदगी संवारने का जरिया भी है। वह हमेशा कहा करते थे कि यदि मीडिया ने देश को प्रेरित करना छोड़ दिया तो बदलाव की बेहद कम संभावना है। वे कहते थे कि ‘मीडिया ही है जो लोगों को यह एहसास दिलाती है कि क्या-क्या बदलाव किया जा सकता है और कहां काम करना बाकी है…।’
वह यह भी मानते थे कि अखबार मालिक के ज़ेहन में किसी भी तरह का डर होना ही नहीं चाहिए। खासकर नेताओं से तो कतई डरने की जरूरत नहीं है। उन्होंने अपने अखबार में हमेशा इसका पालन भी किया। इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल और प्रेस पर प्रतिबंध लगाया था तो उन्होंने ऑप-एड पेज को खाली रख कर इसका कड़ा विरोध किया। उनका यह तरीका इमरजेंसी के विरोध का सबसे सशक्त तरीका माना गया।
इंडियन एक्सप्रेस का जन्म
हिंदी दैनिक तेज निकालने वाले लाला देशबंधु गुप्ता की ओर से उनसे संपर्क किया गया था। उनके साथ मिल कर उन्होंने चेन्नई में अंग्रेजी अखबार शुरू किया। अखबार का नाम था- The Indian News Chronicle. लाला देशबंधु गुप्ता के निधन के बाद रामनाथ गोयनका ने अंग्रेजी अखबार का नाम The Indian Express रखा।
जीते जी सर्वश्रेष्ठ अखबार निकालने की हसरत:
रामनाथ गोयनका अपने अखबार को सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहते थे और वह भी अपने हाथों से। इसके लिए वह लगातार नई पहल करते रहे। उन्होंने तब के जमाने में ढाई करोड़ खर्च कर ऑफसेट मशीन खरीदी थी। उन्होंने फाइनेंशियल एक्सप्रेस का संपादक एक विदेशी को बनाया था। इस पर सवाल उठे तो उनका साफ कहना था कि वह दुनिया के किसी कोने से अपने अखबार के लिए अच्छी प्रतिभाएं लाएंगे। उन्होंने अपने अखबार में खोजपरक रिपोर्ट (Investigative Report) की शुरुआत कराई और संकल्प लिया कि रोज एक ऐसी रिपोर्ट जरूर छपवाई जा सके।
आरएसएस समर्थक
रामनाथ गोयनका ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के बारे में बात करते हुए बताया था- मैंने अपने संपादकीय में कभी भी आरएसएस का समर्थन नहीं किया है, लेकिन आलोचना भी नहीं की। मैं व्यक्तिगत रूप से आरएसएस का समर्थन करता हूं, क्योंकि आरएसएस कार्यकर्ताओं की देशभक्ति, राष्ट्रवाद और सुव्यवस्थित कैडर मुझे अच्छा लगता है। वे लोग यह नहीं कहते कि मुसलमानों को हिंदू धर्म में परिवर्तित कर देना चाहिए।
जेपी और नाना जी देशमुख को साथ लाए: जय प्रकाश नारायण और नाना जी देशमुख को साथ लाने के बारे में बताते हुए रामनाथ गोयनका ने कहा था- जब मैंने इन दोनों को साथ ला रहा था तो जेपी ने मुझसे पूछा- रामनाथ जी, आप ये क्या कर रहे हैं? आप मुझे जनसंघ के साथ जुड़ने के लिए कह रहे हैं? इस पर मेरा जवाब था- हम उन्हें अपने हिसाब से इस्तेमाल करेंगे। अगर वे गड़बड़ करेंगे तो उनकी कान अमेठेंगे और फिर भी गलतियां जारी रखेंगे तो लात मार देंगे। मैंने बड़ी मुश्किल से जेपी को मनाया था। हालांकि, अंत में उन्होंने कहा था कि वे बहुत अच्छे लोग हैं। अपने मकसद के लिए मर-मिटने वाले। जवाहर लाल नेहरू ने आरएसएस की आलोचना क्यों की, वह वे जानें। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या के लिए वे जिम्मेदार हैं तो मैंने उनसे कहा था- इसकी तो पूरी जांच हो चुकी है और आरएसएस बेदाग निकला है।
मुस्लिमों का इस्तेमाल सिर्फ वोट के लिए: रामनाथ गोयनका ने मुस्लिमों पर बात करते हुए कहा था कि मुझे एक भी उदाहरण नहीं दिखता जिसमें हमने उनकी बेहतरी के लिए कोई ठोस कदम उठाए हों। हम उनका इस्तेमाल सिर्फ वोट के लिए करते हैं। भगवान का शुक्र है कि पाकिस्तान की हालत खराब है, वरना जिस तरह से हम मुसलमानों के साथ व्यवहार करते हैं, वे एक नई तरह की चुनौती बन सकते हैं।