भारत को ‘दुनिया का दवाखाना’ कहा जाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने 27.85 अरब डालर का ड्रग और फार्मा उत्पाद निर्यात किया था। इसके अलावा वैश्विक फार्मा सप्लाई चेन में भारत की हिस्सेदारी 20 फीसद से ज्यादा है। अमेरिका भारत में निर्मित जेनेरिक दवाइयों का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। यूएन कामट्रेड डेटाबेस आफ ग्लोबल ट्रेड स्टैटिस्टिक्स के अनुसार, पिछले साल भारत ने 9 अरब डालर के फार्मा उत्पाद का अमेरिका में निर्यात किया था।

भारत के कुल दवाइयों के निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 31.35 फीसद है। अमेरिका में जितनी जेनेरिक दवाइयों का इस्तेमाल होता है, उनमें से 47 फीसद भारत से आयात होती हैं। जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों की सस्ती होती हैं और दुनिया भर में सस्ती होने के कारण लोग इनका ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रांडेड या पेटेंटेड फार्मा उत्पादों पर एक अक्तूबर से 100 फीसद शुल्क लगाने की घोषणा की है। आइए जानते हैं इसका भारत पर क्या असर होगा।

ट्रंप की घोषणा में विरोधाभास

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआइ) के निदेशक अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि ट्रंप की घोषणा में विरोधाभास ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयों को लेकर है। जेनेरिक दवाइयां ब्रांड नेम से भी बेची जाती हैं, जैसे क्रोसिन अगर क्रोसिन को ब्रांडेड आयात के तौर पर लिया जाएगा तो शुल्क लगेगा। कई भारतीय कंपनियां अमेरिका में ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयां बेचती हैं। भारत की कुल जेनेरिक दवाइयों में ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयों की भी अच्छी खासी हिस्सेदारी है।

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उन्होंने कहा कि अमेरिकी कानून के मुताबिक, ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयों को भी यहां पेटेंटेड दवाई के रूप में देखा जाता है। अमेरिका के कई बड़े फार्मा विशेषज्ञों की राय है कि यहां ब्रांडेड जेनेरिक जैसी अवधारणा नहीं है बल्कि सब पेटेंटेड हैं। अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि भारत का ज्यादातर निर्यात जेनेरिक दवाइयों का है। इनमें जो ब्रांडेड जेनेरिक हैं, उन पर असर पड़ सकता है। भारत में ब्रांडेड जेनेरिक खूब बन रही हैं और मुझे लगता है कि लंबी अवधि के लिए यह अच्छी बात है। ट्रंप जेनेरिक दवाइयों को शुल्क के दायरे से बाहर कब तक रखते हैं, इस पर अभी कुछ भी कहना मुश्किल है।

अमेरिका भारत की कंपनियों पर ज्यादा निर्भर

विशेषज्ञों के मुताबिक, गर्भनिरोधक गोलियों के मामले में अमेरिका भारत की कंपनियों पर ज्यादा निर्भर है लेकिन बाकी दवाइयों में भी लगभग यही स्थिति है। उच्च रक्तचाप और अवसाद के इलाज में भी जो दवाइयां लिखी जाती हैं, उनका 50 फीसद से ज्यादा हिस्सा भारत की जेनेरिक दवा बनाने वाली कंपनियां ही मुहैया कराती हैं। ट्रंप द्वारा भारत के फार्मा उत्पादों पर शुल्क लगाने से अमेरिकी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी मुश्किलें खड़ी होंगी। दवाइयां महंगी हो सकती हैं और इससे इलाज महंगा होगा। फार्मा डेटा प्रोवाइडर आइक्यूवीआइए के अनुसार, भारतीय कंपनियों की सस्ती दवाइयों के कारण अमेरिकी स्वास्थ्य देख रेख प्रणाली ने 2022 में करीब 220 अरब डालर की बचत की थी। यह बचत 2012 से 2022 के दशक में कुल 1.3 ट्रिलियन डालर की है। डाक्टरों की ओर से लिखी गई 10 में से चार दवाइयों की पर्ची पर भारतीय कंपनियों की बनाई दवाइयां थीं।

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भारत पर पड़ेगा असर

इंडियन फार्मास्यूटिकल्स अलायंस के मुताबिक, अमेरिका द्वारा दवाओं पर 100 फीसद शुल्क लागू करने का असर सिर्फ पेटेंट और ब्रांडेड दवाइयों पर ही पड़ेगा और जेनेरिक दवाओं पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा। ग्लोबल ट्रेड एंड रिसर्च इनिशिएटिव के फाउंडर अजय श्रीवास्तव के अनुसार, भारतीय जेनेरिक दवाओं का निर्यात भले ही ज्यादातर अप्रभावित रहे, लेकिन यूरोपीय देशों, खासकर आयरलैंड, स्विट्जरलैंड और जर्मनी पर शुल्क का गहरा असर पड़ सकता है। बताते चलें कि भारत, अमेरिका को बड़ी मात्रा में दवाइयां निर्यात करता है। हालांकि, ये व्यापार मुख्य रूप से ब्रांडेड उत्पादों के बजाय जेनेरिक दवाओं पर केंद्रित है।

उठ रहे सवाल

ट्रंप ने कहा है कि जो कंपनियां अमेरिका में प्लांट लगाकर दवाई का उत्पादन कर रही हैं, उन पर यह शुल्क नहीं लगेगा। शुल्क के दायरे से वे कंपनियां भी बाहर रहेंगी, जिन्होंने अमेरिका में अपना प्लांट बनाना शुरू कर दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या ट्रंप भारत की एक अहम शक्ति पर चोट करने की तैयारी कर रहे हैं? क्या ट्रंप का यह फैसला भारत के ‘दुनिया का दवाखाना’ बनने के लक्ष्य को रोक सकता है?

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अमेरिका को क्या होगा नुकसान

ट्रंप के इस फैसले से आम अमेरिकी भी प्रभावित होंगे। भारी-भरकम शुल्क लगाए जाने की वजह से दवा कंपनियां अपना बोझ कम करेंगी और कीमतें बढ़ाकर ग्राहकों पर बोझ डाल देंगी। जिससे अमेरिका में बिकने वाली आयातित दवाइयां महंगी हो जाएंगी और आम लोगों को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।

इस मसले पर अंतरराष्ट्रीय मामलों की विशेषज्ञ, इंद्राणी बागची ने बताया कि ट्रंप का शुल्क एक तरीकेसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ नीति और ट्रंप के ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के बीच का टकराव भी है। ट्रंप चाहते हैं कि भारत की दवा कंपनियां अमेरिका में प्लांट लगाएं और वहीं दवाई बनाएं, लेकिन भारत में जितना सस्ता श्रम है, क्या अमेरिका में उतना सस्ता मिल पाएगा।

ट्रंप के निशाने पर है भारत

इस मामले पर अजय श्रीवास्तव जो जीटीआरआइ के निदेशक है, उन्होंने कहा है कि ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के समर्थकों को खुश करने के लिए ट्रंप कुछ भी कर सकते हैं। चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को रास्ते पर ला दिया लेकिन अब उनके निशाने पर भारत है। भारत का ज्यादातर निर्यात जेनेरिक दवाइयों का है। इनमें जो ब्रांडेड जेनेरिक हैं, उन पर असर पड़ सकता है। भारत में ब्रांडेड जेनेरिक खूब बन रही हैं।