आबादी में बढ़ोतरी भारत के लिए हमेशा से एक समस्या नहीं रही थी। 20वीं सदी की शुरुआत में रहस्यमयी बीमारी की वजह से लाखों लोग मारे गए तो आबादी भी कम हुई। तब चिंता थी आबादी को बढ़ाने को लेकर। लेकिन 20वीं सदी के मध्य तक आते-आते ये समस्या इतनी ज्यादा विकराल हो गई कि जनसंख्या वृद्धि को लेकर भारत वैश्विक स्तर पर खासा चर्चाओं में रहा। आबादी कम करने को लेकर दुनिया के बड़े देश भारत पर दबाव बनाते रहे। 1965 में अमेरिकी राष्ट्रपति लिडॉन बी जॉनसन ने भारत को खाद्य सहायता देने से इन्कार कर दिया था। उनका कहना था कि पहले ये देश स्टेरिलाइजेशन को लेकर पॉलिसी बनाए। तभी उसे अमेरिकी की तरफ से खाद्य सहायता दी जाएगी।

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श्रीनिवासन (इंटरनेशन इंस्टीट्यूट ऑफ पापुलेशन साइंस के प्रोफेसर)) लिखते हैं कि पश्चिमी देशों को लगता था कि भारत के साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे देशों की बढ़ती आबादी उनके लिए खतरा है। 1970 के दशक में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बड़े पैमाने पर अभियान चलाया। 1976 में संसद से नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी (NPP) पारित कराई गई। उनके पुत्र संजय गांधी की देखरेख में ये मुहिम चलाई गई। सरकारी दफ्तरों में पदोन्नति या फिर नौकरी मिलने का पैमाना इस बात को रखा गय़ा कि व्यक्ति विशेष ने सरकार के नसबंदी कार्यक्रम में कितना योगदान दिया। लेकिन इनरजेंसी लागू कर पुलिस को आगे करके क्रियान्वित की गई योजना औंधे मुंह गिर पड़ी।

प्रजाक्ता आर गुप्ता लिखती हैं कि डंडे के जोर पर जनसंख्या के नियंत्रण के लिए चलाई जा रही योजना का जनता ने तीखा विरोध किया। अकेले यूपी में 240 मामले ऐसे दर्ज हुए जिनमें हिंसक विरोध हुआ। मुजफ्फरनगर में लोगों ने पुलिस दल पर पत्थर बरसाए। जवानी गोलीबारी में 25 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। इंदिरा गांधी ने 1977 में चुनाव कराए तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि इमरजेंसी के दौरान भारत ने नसबंदी, स्टेरिलाईजेशन का जो लक्ष्य हासिल किया वो कोई दूसरा देश नहीं कर पाया था। कुल मिलाकर 82.6 लाख लोगों को स्टेरिलाईज किया गया।

श्रीनिवासन लिखते हैं कि उस समय कहावत आम थी कि जबरन की गई नसबंदी ने जनसंख्या के बजाए सरकार को ही नीचे ला दिया। चुनाव के बाद दूसरी सरकार बनी और फिर जोर के बजाए सहमति से फैमिली प्लानिंग की योजना बनाई गई। डायसन लिखते हैं कि अगर इंदिरा गांधी चुनाव जीत जातीं तो ये देखना दिलचस्प होता कि वो फैमिली प्लानिंग को लेकर फिर से वही जबरिया तरीका अपनाती या नहीं? दूसरी सरकार ने इंसेंटिव के जरिए फैमिली प्लानिंग की योजना बनाई। 1979 में एक वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया। उसके बाद के दौर में केंद्र की तरफ से राज्यों ने भी जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रोग्राम बनाने शुरू किए। यूपी लॉ कमीशन ने जुलाई 2021 में एक प्रस्ताव में ये सुझाव भी दिया कि दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों को लोकल चुनाव लड़ने से रोकने के साथ पदोन्नति व सब्सिडी से वंचित किया जाए।

एक विशेषज्ञ लिखते हैं कि इमरजेंसी के दौरान नसबंदी और स्टेरिलाईजेशन की जो योजना बनाई गई वो भारत के हित में नहीं थी। हालांकि सरकारों ने उसके बाद के दौर में लगातार इस तरफ गंभीरता दिखाई और लोगों को जागरूक करके परिवार नियोजन के लिए अपील की। लेकिन बावजूद इसके भारत की जनसंख्या बढ़ती गई। यूएन की 2019 में एक रिपोर्ट से साफ समझा जा सकता है कि हालात कितने विकट हैं। य़ूएन का मानने है कि इस रफ्तार के साथ 2027 तक भारत सबसे ज्यादा आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। 21वीं में सदी के भारत सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बना रहेगा।

श्रीनिवासन का कहना है कि NPP 2000 के तहत जो लक्ष्य निर्धारित किए गए थे वो तकरीबन पूरे होने के कगार पर हैं। संतान उत्पत्ति की दर तकरीबन हर जगह पर नीचे आ रही है। तमिलनाडु की बात करें तो 2031 तक जनसंख्या वहां नीचे आनी शुरू हो जाएगी जबकि केरल ये लक्ष्य उसके तुरंत बाद हासिल कर लेगा। उनका मानना है कि अब हालात 1970 के दशक सरीखे नहीं हैं। तब भारत की आबादी 43.92 करोड़ से बढ़कर 54.82 करोड़ हो गई थी। ये बढ़ोतरी 10961 से 1971 के दौरान हुई थी। मौजूदा दौर में लोग छोटे परिवार की महत्ता को समझकर कम संतान पैदा करने पर जोर दे रहे हैं।

वह मानते हैं कि आबादी में बढ़ोतरी के बावजूद भारत को जनसंख्या नियंत्रण को लेकर नीति बनाने की जरूरत नहीं है। अगर मौजूदा समय में ऐसी कोई नीति बनाई जाती है तो ये एक समुदाय विशेष को सूट नहीं करेगी। फिलहाल संतान उत्पत्ति की दर दो है। कोई भी भारतीय परिवार दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने का इच्छुक नहीं है। उनका कहना है कि आबादी फिलहाल भारत के लिए एक फायदे का सौदा है, क्योंकि एक जगह श्रमिकों की कमी को दूसरे राज्य के लोग दूर कर देते हैं। उनका मानना है कि जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए मारगेरेट संगेर की ये बात सटीक बैठती है कि दंपत्ति अपनी इच्छा से बच्चे पैदा करें न कि वो किसी चांस से हों।