13 अक्टूबर, 1948 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में मशहूर कव्वाल फतेह अली खान के घर बेटे का जन्म हुआ था। वह चार लड़कियों के बाद पैदा हुआ पहला लड़का था, इसलिए सभी के लिए कुछ ज्यादा ही प्रिय था। परिवार ने बच्चे का नाम परवेज़ फ़तेह अली खान रखा। बड़ी बहनें और करीबी प्यार से उसे पैजी नाम से बुलाते थे।

फतेह अली खान ने बेटा पैदा होने की खुशी में एक बड़े समारोह का आयोजन किया। समारोह में गुलाम अली खान, लाल खान और छोटे भाई सलामत और नज़ाकत अली खान जैसे कई प्रतिष्ठित संगीतकार नवजात को आशिर्वाद देने आए। Pierre Alain-Baud अपनी किताब Nusrat: The Voice of Faith में लिखते हैं कि बचपन में ही परवेज़ में मोटे होने के संकेत दिखने लगे थे।

“यह नाम तुरंत बदल दीजिए”

किताब में अहमद अकील रूबी द्वारा सुनाई एक पारिवारिक किंवदंती का जिक्र है, जिसके अनुसार, एक रोज फतेह अली खान के घर एक सूफी संत पहुंचे। फहेल अली खान की बेटी नफीस जहां के अनुसार उस सूफी संत का नाम पीर गुलाम गौस समदानी था।

पीर गुलाम गौस समदानी ने बच्चे का नाम पूछा। फतेह अली खान ने बताया कि बच्चे का नाम ‘परवेज़’ रखा गया है। यह सुनते ही सूफी संत बहुत नाराज हुए। उन्होंने कहा, “यह नाम तुरंत बदल दीजिए। क्या आप जानते हैं परवेज़ कौन था? वह फारस का राजा (King Of Persia Khusro Parvez) था, जिसने पैगंबर के भेजे खत को फाड़ दिया था।… यह शुभ संकेत नहीं है। यह किसी ऐसे व्यक्ति का नाम नहीं होना चाहिए, जो अल्लाह, पैगंबर और अली का नाम जपता हो!”

सूफी संत की बातों को सुन फतेह अली खान ने पूछा, “तो फिर हमें इसका क्या नाम रखना चाहिए?” पीर गुलाम गौस समदानी ने कहा, “नुसरत! नुसरत फतेह अली खान! जिसका मतलब होता है सफलता का मार्ग” इस तरह सूफी संगीत और कव्वाली से दुनिया को दीवाना बनाने वाले नुसरत फतेह अली खान को अपना नाम मिला।

एक इंटरव्यू में नुसरत फतेह अली खान बताया था कि उनके दो भाई और चार बहनें हैं। उनके पूर्वज अफग़ानिस्तान से जालंधर (भारत) आए थे। विभाजन के बाद उनके पिता जालंधर से जाकर फैसलाबाद में बस गए।

संगीत की दुनिया में कैसे मशहूर हुए नुसरत?

नुसरत फतेह अली के खानदान का संगीत से 600 साल पुराना नाता है। संगीत की तालीम उन्हें बचपन से ही पिता से मिलती रही। लेकिन कव्वाली की तालीम उन्होंने अपने चाचा उस्ताद सलामत अली खान से हासिल की।

पिता के देहांत (12 मार्च, 1964) के दो साल बाद अपने बड़े चाचा चिराग उस्ताद मुबारक अली खान के साथ जोड़ी की रूप में तकरीबन छह साल तक कई महफिलों में गए और नाम कमाया। 1971 में हजरत दादा गंज बख्श के सालाना उर्स के मौके पर नुसरत फतेह अली ने प्रसिद्धि हासिल की। उसके बाद वह पूरी दुनिया में पहचाने जाने लगे।