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‘भारत रत्न’ मिलने के बाद फटी लुंगी पहन इंटरव्यू दे रहे थे बिस्मिल्लाह खां, शिष्या ने टोका तो दिया ऐसा गुरु मंत्र

Birthday Special: उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च, 1916 को बिहार के डुमरांव में हुआ था। वह अपने पिता पैगंबर खां और माता मिट्ठन बाई की दूसरी संतान थे। बिस्मिल्लाह खां के पिता भी शहनाई बजाते थे। हालांकि बिस्मिल्लाह खां के गुरु उनके मामा अली बख्श ‘विलायती’ थे।

Ustad Bismillah Khan | shehnai maestro
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर लाल किले में शहनाई बजाई थी। ( Express archive photo)

Ustad Bismillah Khan Birth Anniversary: मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां की गिनती भारत के महान संगीतकारों में होती है। वह ऐसे इकलौते कलाकार हैं, जिन्हें भारत का चारों सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिल चुका है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत रत्न से सम्मानिक किए जा चुके हैं।

फटी लुंगी क्यों पहने हैं?

बिस्मिल्लाह खां को सन् 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था। जाहिर है उस वक्त तक बिस्मिल्लाह खां की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हो गई थी। उन्हीं दिनों एक टीवी चैनल उनका इंटरव्यू करने, उनके घर पहुंचा। बिस्मिल्लाह खां जिस फटी लुंगी में बैठे थे, उसी हालत में इंटरव्यू देने लगे। इस पर उनकी शिष्या ने टोका कि उस्ताद आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, आपको तो भारत रत्न मिल चुका है, आप फटी लुंगी पहनकर इंटरव्यू क्यों दे रहे हैं? इससे क्या संदेश जाएगा?

उस्ताद ने दिया गुरु मंत्र

गांव कनेक्शन का साप्ताहिक शो ‘यतीन्द्र की डायरी’ में हिंदी के कवि, संपादक और संगीत व सिनेमा के विद्वान यतींद्र मिश्र (Yatindra Mishra) बताते हैं कि इस सवाल को सुनने के बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने अपनी शिष्या को प्यार से समझाते हुए कहा, “पगली मुझे भारत रत्न शहनाई बजाने पर मिला है, फटी हुई लुंगी से उसका क्या ताल्लुक। तू कह रही है तो लुंगी बदल लेता हूं। खुदा से हमेशा यही प्रार्थना करना कि तुम्हे वह हमेशा सच्चा सुर बख्शे। कोई फटा हुआ सुर न बख्शे। अगर खुदा ने एक गलत सुर बख्श दी तो तुम्हारी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। लुंगी का क्या है, आज फट है कल सिल जाएगी।”

राग काफ़ी बजाकर किया था आजादी का स्वागत

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर आजादी की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में शहनाई बजाई थी। उन्हें आजादी के जश्न में शामिल करने के लिए खासतौर पर मुंबई से दिल्ली लाया गया था। बिस्मिल्लाह खां ने अपने साथियों के संग राग काफ़ी बजा कर आज़ादी की उस सुबह का स्वागत किया था। आज़ादी की 25वीं सालगिरह पर भी शहनाई बजाने के लिए उन्हें लाल किला में आमंत्रित किया गया था।

जब बेगम अख़्तर की आवाज के हुए मुरीद

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बेगम अख़्तर की गायकी के बड़े मुरीद थे। दिलचस्प यह है कि बेगम अख़्तर ने अपने करियर की शुरुआत उस संगीत सम्मेलन से की थी, जिसने बिस्मिल्लाह खां को राष्ट्रीय पहचान दिलाई। 30 के दशक की बात है। बिहार में भयंकर भूकंप आया था। पीड़ितों की मदद के लिए कलकत्ता में एक संगीत सम्मेलन का आयोजन किया गया था। उस सम्मेलन में बेगम अख़्तर और बिस्मिल्लाह खां दोनों पहुंचे थे।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गर्मी की एक रात जब बिस्मिल्लाह खां नींद की आगोश में जाने के लिए जतन कर रहे थे, तभी उन्हें दूर कहीं एक आवाज सुनाई दी। आवाज इतनी सुरीली थी कि वह सुनते ही उठकर बैठ गए। बाद में पता चला कि वह आवाज बेगम अख़्तर की थी, जो ‘दीवाना बनाना है, तो दीवाना बना दे…’ गा रही थीं।

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First published on: 21-03-2023 at 13:11 IST
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