आम आदमी पार्टी (AAP) की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि आखिर दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) मंत्री परिषद से सलाह- मशविरा बिना कैसे कोई फैसला ले सकते हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस पीएम नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच AAP सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें LG द्वारा एमसीडी में 10 सदस्यों के नामांकन को चुनौती दी गई थी।

आखिर LG कैसे ले सकते हैं फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजी, मंत्री परिषद की सलाह और सुझाव के बिना कोई फैसला कैसे ले सकते हैं? यह तो (एमसीडी में 10 सदस्यों का नामांकन) मंत्री परिषद से सलाह और सुझाव के बाद ही किया जाना चाहिए था।

LG ने क्या जवाब दिया?

कोर्ट में सुनवाई के दौरान एलजी की तरफ से पेश एडिशनल सॉलीसीटर जनरल संजय जैन ने दलील दी कि एलजी को 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में शक्ति दी गई है। इसके लिए जीएनसीटीडी अधिनियम के सेक्शन 44 में संशोधन भी किया गया था। हालांकि वह संशोधन भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उन्होंने जवाब दाखिल करने की मोहलत मांगी। कोर्ट ने 10 दिनों का समय दिया है।

सिंघवी बोले- यह चुनी गई सरकार का अपमान

दिल्ली सरकार की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि मंत्री परिषद से सलाह बगैर सदस्यों की नियुक्ति लोकतंत्र का अपमान है। एक पार्टी बहुमत से जीत कर आई और उसे पलटने की कोशिश हो रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि एलजी के इस कदम से दिल्ली सरकार के अधिकारियों का हौसला बढ़ा। वे फाइलें दिल्ली सरकार के साथ साझा किए बिना सीधे उपराज्यपाल के कार्यालय में भेज रहे हैं।

ऐसे तो हमें बार-बार कोर्ट आना पड़ेगा

सिंघवी ने कहा कि अगर चीजें इसी तरह चलती रहीं तो हमें बार-बार कोर्ट आना पड़ेगा। सिंघवी ने कहा कि दिल्ली सरकार के अधिकारियों के खिलाफ भी सख्ती की जानी चाहिए। आपको बता दें कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने एलजी द्वारा नियुक्त 10 सदस्य की नियुक्ति को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

क्या है GNCT एक्ट?

सुप्रीम कोर्ट में एलजी ने जिस जीएनसीटी अधिनियम (Government of National Capital Territory Act) का जिक्र किया है, उसे साल 1991 में पारित किया गया था। साल 1991 में संविधान में 69वें संशोधन के जरिए दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान किया गया और इसे राष्ट्रीय राजधानी के रूप में नामित करते हुए इसके प्रशासक को उपराज्यपाल यानी एलजी के रूप में नामित किया गया था। 1991 के अधिनियम में ही दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार की प्रक्रिया और उसके कामकाज के बारे में जिक्र है।

2021 में जीएनसीटी एक्ट में किया गया था संशोधन

2 साल पहले 2021 में दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 पारित किया गया था। इस अधिनियम में दिल्ली की एनसीटी सरकार में कई बदलाव किए गए। इस अधिनियम का उद्देश्य दिल्ली की निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल की जिम्मेदारियों को और पारदर्शी और परिभाषित करना था। अधिनियम में दिल्ली विधानसभा की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एलजी को कई मामले में अधिक शक्तियां दी गई थीं।

क्या कहता है सेक्शन 44 जिसका हवाला दे रहे हैं LG?

दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम में मुख्य तौर पर 1991 के अधिनियम के 4 सेक्शन में बदलाव किए गए- जो सेक्शन 21, सेक्शन 24, सेक्शन 33 और सेक्शन 44 हैं। एलजी ने सुप्रीम कोर्ट में जिस सेक्शन 44 का हवाला दिया, संशोधन अधिनियम में उसमें एक अतिरिक्त खंड जोड़ा गया है।

इस खंड में कहा गया है कि सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए किसी भी कार्यकारी कार्रवाई से पहले सभी मामलों पर एलजी की राय अनिवार्य है। इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार या कैबिनेट को किसी फैसले को लागू करने से पहले एलजी की राय लेनी होगी।