लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बीच हिमाचल प्रदेश से भी कांग्रेस के लिए राहत भरी खबर है। यहां कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही है। हिमाचल प्रदेश में लोकसभा सीटों के साथ ही विधानसभा की 6 सीटों पर भी उपचुनाव हुआ था। यह उपचुनाव इस साल फरवरी में कांग्रेस के विधायकों की बगावत की वजह से कराना पड़ा था।
हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकार बचाने के लिए इन 6 सीटों में से कांग्रेस को कम से कम एक सीट पर जीत हासिल करना जरूरी था। लेकिन कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत हासिल की है।
हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे सुखविंदर सिंह सुक्खू को निश्चित तौर पर उपचुनाव के नतीजों से सुकून मिला है तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए नतीजे मिले-जुले रहे हैं। क्योंकि हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार सीटों पर भले ही भाजपा ने जीत हासिल की है लेकिन राज्य में सरकार बनाने का बीजेपी का सपना पूरा नहीं हो सका है।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए बड़ी लड़ाई लोकसभा की चार सीटों को जीतने के बजाय अपनी सरकार को बचाने की थी और कांग्रेस के प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व ने इसके लिए पूरा जोर लगा दिया था। जिन सीटों पर उपचुनाव हुआ उनके नाम सुजानपुर, धर्मशाला, बड़सर, लाहौल-स्पीति, गगरेट और कुटलेहड़ हैं। हालांकि हिमाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए अच्छे नहीं रहे और उसे सभी चार लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है।

जीत के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने बहाया पसीना
हिमाचल जैसे चार लोकसभा सीटों वाले छोटे राज्य में चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने लगातार चुनाव प्रचार किया। कांग्रेस नेतृत्व जानता था कि अगर विधानसभा चुनाव में वह सभी 6 सीटें हार जाता है तो उसके लिए अपनी सरकार बचाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में पार्टी ने पूरा जोर लगाया और उसे इसका फायदा भी मिला।
बीजेपी ने भी इस उपचुनाव में सभी 6 सीटों को जीतने का लक्ष्य बनाकर मेहनत की थी। अगर वह सभी 6 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती तो वह राज्य में सरकार बनाने के करीब पहुंच जाती। हालांकि तब उसे एक और सीट की जरूरत होती।
दिसंबर, 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में 68 सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को 40 सीटों पर जबकि भाजपा को 25 सीटों पर जीत मिली थी। तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने बाजी मारी थी।

क्यों कराना पड़ा था उपचुनाव ?
फरवरी महीने में जब हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट के लिए चुनाव हुआ था तो कांग्रेस के छह विधायकों ने पार्टी से बगावत कर दी थी। इस बगावत की वजह से हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार गिरते-गिरते बची थी।
स्पीकर ने इन सभी 6 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था। इसके बाद विधानसभा की सदस्य संख्या 62 रह गई थी। साथ ही कांग्रेस के पास भी 34 विधायक रह गए थे। 62 सदस्यों वाली विधानसभा में इसके लिए बहुमत का जरूरी आंकड़ा 32 है। 34 विधायक होने की वजह से कांग्रेस को खतरा नहीं था।
लेकिन अगर ऐसा हो जाता कि इन सभी 6 सीटों पर कांग्रेस हार जाती तो उसके पास 34 विधायक ही रह जाते और विधानसभा की सदस्य संख्या के लिहाज से सरकार में बने रहने के लिए 35 विधायकों का समर्थन जरूरी है। ऐसे राजनीतिक हालात में कांग्रेस की सरकार गिर जाती। लेकिन अब सुक्खू सरकार पर से यह खतरा टल गया है।

रंग लाई सीएम सुक्खू की मेहनत
हिमाचल प्रदेश में लोकसभा और इन उपचुनाव को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। इसलिए इन नेताओं ने भी कांग्रेस की जीत के लिए लगातार काम किया। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जनता से यही कहते रहे कि बीजेपी ने जनता के द्वारा चुनी गई उनकी सरकार को गिराने की साजिश रचकर देव भूमि का अपमान किया है।
इस दौरान वह लोगों से अपनी सरकार को बचाने की अपील भी करते रहे। शायद उनकी अपील काम आई और अब हिमाचल प्रदेश में उनकी सरकार अपना बचा हुआ कार्यकाल पूरा कर सकेगी।
बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो चुनावी रैलियां की ही, पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर भी इन विधानसभा सीटों पर जीत दिलाने के लिए दौड़ भाग करते रहे।