Haryana Vidhan Sabha Chandigarh: अपने खाने-पीने, आधुनिक जीवन शैली, पब-रेस्तरां, शानदार सड़कों और हरियाली के लिए पहचाने जाने वाला चंडीगढ़ शहर एक बार फिर विवादों में है। यह शहर हरियाणा और पंजाब जैसे मजबूत राज्यों के बीच लंबे वक्त से विवाद की वजह बना हुआ है। पंजाब का कहना है कि चंडीगढ़ पर उसका ही हक है जबकि हरियाणा का कहना है कि चंडीगढ़ में उसकी भी हिस्सेदारी है। चंडीगढ़ में यह विवाद इसलिए शुरू हुआ है क्योंकि हरियाणा वहां विधानसभा का नया भवन बनाना चाहता है। पंजाब इसके लिए जमीन नहीं देना चाहता। चंडीगढ़ का जिक्र पंजाब के कई गानों में भी होता है।
चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी है और दोनों ही सूबों की हाई कोर्ट भी एक ही है। बताना जरूरी होगा कि हरियाणा और पंजाब दोनों ही आर्थिक रूप से सक्षम राज्य हैं। दोनों राज्यों से बड़ी संख्या में लोग विदेशों में भी हैं। चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश है।
हरियाणा में यह मांग कई बार उठ चुकी है कि उसके पास अपनी राजधानी होनी चाहिए। यहां के लोगों का कहना है कि चंडीगढ़ से उनकी भाषा, संस्कृति कुछ भी मेल नहीं खाती ऐसे में हमारे राज्य के पास अपनी राजधानी क्यों नहीं है?
किसान आंदोलन में नजदीक आए थे दोनों राज्य
पंजाब और हरियाणा के बीच चंडीगढ़ के अलावा सतलुज यमुना लिंक यानी पानी को लेकर भी लंबे वक्त से विवाद चल रहा है हालांकि किसान आंदोलन के दौरान पंजाब और हरियाणा करीब आए थे लेकिन चंडीगढ़ में हरियाणा को विधानसभा के लिए जमीन दिए जाने को लेकर फिर से विवाद शुरू हो गया है।
पंजाब सरकार के मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कहा है कि चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है और हम यहां हरियाणा को एक इंच भी जमीन नहीं देंगे। इसके जवाब में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा है कि चंडीगढ़ पर हमारा भी हक है। चंडीगढ़ को लेकर आखिर दोनों राज्यों के बीच क्या लड़ाई है, इसे आजादी के बाद से हुए घटनाक्रमों से समझना जरूरी है।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य सरकार ने चंडीगढ़ में हरियाणा की अलग विधानसभा के लिए एक भवन बनाए जाने की मांग की थी और इस संबंध में केंद्र सरकार से जमीन देने का अनुरोध किया था। इसके बाद, चंडीगढ़ प्रशासन ने रेलवे स्टेशन के पास 10 एकड़ जमीन देने का फैसला किया। इसके बदले में हरियाणा से कहा गया था कि वह पंचकूला में 12 एकड़ जमीन दे। लेकिन तब पंचकूला की जमीन के ट्रांसफर को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिली थी।
ताजा लड़ाई अब फिर से तब शुरू हुई जब 13 नवंबर को हरियाणा की सरकार ने इस बात का दावा किया कि उसे पर्यावरण से जुड़ी मंजूरी मिल गई है और अब चंडीगढ़ में हरियाणा की विधानसभा के नए भवन का निर्माण कार्य शुरू होगा। लेकिन पंजाब के सारे राजनीतिक दल, तमाम किसान यूनियन, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी इसके खिलाफ एकजुट हो गए और उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ पर सही मायने में पंजाब का ही हक है और यहां हरियाणा को जमीन नहीं दी जानी चाहिए।
बीते कुछ सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिख समुदाय से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की है। उन्होंने साहिबजादों की शहादत पर वीर बाल दिवस मनाने का ऐलान तो किया ही, कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुद्वारों में भी पहुंचे हैं लेकिन चंडीगढ़ को लेकर होने वाले इस विवाद की वजह से बीजेपी पंजाब में बैकफुट पर है।
चंडीगढ़ की कहानी को समझने की कोशिश करते हैं कि चंडीगढ़ कैसे बना और यह विवाद कैसे शुरू हुआ।
लाहौर गया पाकिस्तान तो शिमला बना राजधानी
ब्रिटिश शासन के दौरान तत्कालीन पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर था। देश के बंटवारे के बाद शिमला को पंजाब की राजधानी बनाया गया क्योंकि लाहौर पाकिस्तान में चला गया था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चंडीगढ़ की कल्पना एक मॉडर्न शहर के रूप में की थी। मार्च, 1948 में चंडीगढ़ को बसाने के लिए खरड़ शहर के 22 गांवों की जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया।
चंडीगढ़ शहर का मास्टर प्लान मॉडर्न आर्किटेक्चर के जानकार ली कोर्बुसिए के द्वारा डिजायन किया गया था। चंडीगढ़ को 21 सितंबर, 1953 को पंजाब की राजधानी बनाया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उसी साल 7 अक्टूबर को इसका उद्घाटन किया था।
1966 में बना हरियाणा
1966 में जब हिंदी भाषी राज्यों के नाम पर हरियाणा का गठन किया गया तो उस वक्त चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की राजधानी घोषित कर दिया गया। चंडीगढ़ की संपत्तियों पर पंजाब और हरियाणा का हिस्सा 60:40 का है। चंडीगढ़ में बेहतर प्रशासन के लिए इस केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया और इस वजह से केंद्र सरकार ने इस पर सीधा नियंत्रण हासिल कर लिया। हालांकि तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऐलान किया था कि हरियाणा को उसकी अपनी राजधानी मिलेगी।
29 जनवरी, 1970 को केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि चंडीगढ़ को पंजाब को दे दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार को इस बात का ऐलान इसलिए करना पड़ा था क्योंकि पंजाबी सूबा आंदोलन के नेता फतेह सिंह ने धमकी दी थी कि अगर चंडीगढ़ पंजाब को ट्रांसफर नहीं किया गया तो वह खुद को आग के हवाले कर देंगे। लेकिन उस वक्त यह व्यवस्था भी की गई थी कि पंजाब के सिविल सचिवालय में दफ्तर चलाने के लिए हरियाणा को अस्थाई आवास दिए गए और पंजाब की विधानसभा में जगह भी दी गई। उस वक्त हरियाणा को बताया गया कि वह चंडीगढ़ में ऑफिस और आवास का इस्तेमाल 5 साल तक कर ले जब तक कि उसकी खुद की राजधानी ना बन जाए। केंद्र सरकार ने हरियाणा को नई राजधानी बनाने के लिए 10 करोड़ रुपये का ग्रांट और इतनी ही राशि का ऋण देने की पेशकश की।
58 साल गुजर गए नहीं निकला हल
हरियाणा बनने के 58 साल बाद भी चंडीगढ़ इन दोनों ही राज्यों की संयुक्त राजधानी बना हुआ है। पंजाब का कहना है कि चंडीगढ़ पर उसका ही हक है। इसे लेकर पंजाब की विधानसभा में सात बार प्रस्ताव पारित किया जा चुका है। सबसे ताजा प्रस्ताव 2022 में मौजूदा भगवंत मान सरकार ने पास किया था। इसे लेकर सभी राजनीतिक दलों एक साथ हैं।
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष और लुधियाना से सांसद अमरिंदर सिंह राजा वडिंग का कहना है कि केंद्र सरकार चंडीगढ़ पर पंजाब का हक कमजोर करने की कोशिश कर रही है। वहीं, शिरोमणि अकाली दल का कहना है कि पंजाब के हक पर डाका डालने की कोशिश की जा रही है। पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने कहा है कि उन्होंने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है और चंडीगढ़ पर पंजाब का ही हक जताया है। दूसरी ओर, हरियाणा सरकार का कहना है कि दोनों राज्यों के बीच चंडीगढ़ को लेकर जो समझौता हुआ है, उसे पंजाब ने लागू नहीं किया।
हरियाणा सरकार के मंत्री अनिल विज का कहना है कि चंडीगढ़ पंजाब का तभी होगा जब पंजाब “हिंदी भाषी इलाकों को हरियाणा को सौंप देगा” और “सतलुज यमुना लिंक नहर” का काम पूरा कर देगा।