हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही चुनावी हलचल तेज हो गयी है। राज्य में “आया राम, गया राम” की कहावत को सही साबित करते हुए वहां के दल-बदलू नेता पार्टी की परवाह किए बिना, अपने लिए जगह बनाने की तलाश में हैं। कुछ लोग जहां हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में सीट पाने में कामयाब रहे, वहीं कई अन्य नेता 1 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों पर नजर गड़ाए हुए हैं।

बुधवार को दो पार्टी हॉपर्स ने सुर्खियां बटोरीं। तोशाम विधायक किरण चौधरी, जिन्होंने जून में कांग्रेस के साथ अपना 45 साल पुराना रिश्ता खत्म कर दिया था। उन्हें भाजपा ने राज्य की खाली राज्यसभा सीट के लिए नामांकित किया था। वहीं दुष्यन्त चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के शाहबाद विधायक राम करण काला कांग्रेस में शामिल हो गए।

किरण चौधरी द्वारा भाजपा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ विधानसभा सचिवालय में अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद सैनी ने घोषणा की कि जेजेपी के दो बागी-नरवाना विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा और बरवाला विधायक जोगी राम सिहाग किरण के नामांकन का समर्थन कर रहे हैं। सुरजाखेड़ा और सिहाग दोनों के आने वाले दिनों में सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल होने की संभावना है।

नेताओं के पाला बदलने से जेजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान

नेताओं के पाला बदलने से जेजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। काला, सुरजाखेड़ा और सिहाग के भाजपा में शामिल होने के अलावा, चार अन्य बागियों – नारनौंद विधायक राम कुमार गौतम, उकलाना विधायक अनूप धनक, टोहाना विधायक देवेंद्र सिंह बबली और गुहला विधायक ईश्वर सिंह ने अभी तक अपने अगले कदम की घोषणा नहीं की है।

देवेंद्र बबली ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मैं जल्द ही अपने समर्थकों की एक बैठक आयोजित करूंगा और अपनी भविष्य की योजनाओं की घोषणा करूंगा। आज की तारीख में, मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र में लगातार काम कर रहा हूं।” हालाँकि, हालांकि राम गौतम और अनूप धनक ने किरण चौधरी की राज्यसभा उम्मीदवारी का समर्थन किया है लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या वे विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होंगे।

लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने दलबदलुओं पर किया था भरोसा

लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने दलबदलुओं पर काफी भरोसा किया था। उसके 10 में से 3 उम्मीदवार चुनाव से पहले पार्टी में शामिल हो गए थे। मार्च में भाजपा में शामिल होने के बाद उद्योगपति और पूर्व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल ने कुरुक्षेत्र से जीत हासिल की। कांग्रेस के एक अन्य पूर्व सांसद अशोक तंवर जनवरी में बीजेपी में शामिल हुए थे लेकिन सिरसा से हार गए। पूर्व निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला, जो पहले ओपी चौटाला के नेतृत्व वाले इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) में थे मार्च में भाजपा में शामिल हुए थे लेकिन हिसार से हार गए थे।

भाजपा भी दलबदल से नहीं बच सकी

सत्तारूढ़ भाजपा भी दलबदल से अछूती नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे और हिसार के पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह अप्रैल में कांग्रेस में शामिल हुए थे। बृजेंद्र हिसार लोकसभा सीट के लिए सबसे आगे थे लेकिन कांग्रेस ने जय प्रकाश को चुना जिन्होंने भाजपा के रणजीत चौटाला को हराया। अब कांग्रेस द्वारा बृजेंद्र को विधानसभा चुनाव में उतारे जाने की संभावना है।

बीजेपी को रणजीत चौटाला के विद्रोह से भी जूझना पड़ सकता है

भाजपा को रणजीत चौटाला के विद्रोह से भी जूझना पड़ सकता है। रणजीत ने एक स्वतंत्र विधायक के रूप में 2019 से भाजपा में शामिल होने तक भाजपा का समर्थन किया था और पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर और सैनी के अधीन मंत्री के रूप में कार्य किया है। मंगलवार को रंजीत ने कहा कि चाहे उन्हें बीजेपी का टिकट मिले या नहीं, वह अपनी रनिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा, “मैं चौधरी देवीलाल का बेटा हूं। अगर बीजेपी मुझे टिकट देती है तो ठीक है नहीं तो मैं रनिया से जरूर चुनाव लड़ूंगा। बीजेपी अपना खुद देख ले।”

हिसार विधानसभा सीट पर फंस सकता है पेंच

हिसार विधानसभा सीट पर भाजपा को अपने मौजूदा विधायक और हाल ही में आए विधायक के बीच संतुलन चुनना होगा। नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल भी मार्च में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं। हालांकि इस सीट का प्रतिनिधित्व 2014 से भाजपा के कमल गुप्ता कर रहे हैं लेकिन हिसार जिंदल परिवार की पारंपरिक सीट रही है। परिवार के मुखिया ओपी जिंदल ने 1991, 2000 और 2005 में यह सीट जीती थी जबकि 2014 में कमल गुप्ता से हारने से पहले 2009 में सावित्री ने यह सीट जीती थी। चूंकि अब दोनों एक ही पार्टी में हैं ऐसे में भाजपा को फैसला लेना है।

सावित्री से कड़ी प्रतिस्पर्धा की आशंका के चलते कमल गुप्ता ने हाल ही में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के प्रभारी हैं उनसे मुलाकात करने के लिए नई दिल्ली का दौरा किया।

तीन निर्दलीय विधायकों ने भाजपा से समर्थन वापस ले लिया था

इस साल मई में, तीन निर्दलीय विधायकों – दादरी से सोमबीर सांगवान, पुंडरी से रणधीर सिंह गोलेन, और नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर ने भाजपा से अपना समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की। 2019 में तीनों को भाजपा ने टिकट देने से इनकार कर दिया था लेकिन उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। इस बार उनकी नजर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए कांग्रेस से टिकट पर है। कांग्रेस के रोहतक से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में 45 से अधिक मौजूदा और पूर्व विधायक पार्टी में शामिल हुए हैं।

जैसे-जैसे नामांकन की अंतिम तिथि 12 सितंबर करीब आ रही है और पार्टियां उम्मीदवारों के नाम जारी करना शुरू कर रही हैं, दलबदलुओं की सूची और लंबी होती जाएगी।