चुनाव आयोग ने हरियाणा में चुनावी तारीखों का ऐलान कर दिया है। हरियाणा में वोटिंग 1 अक्टूबर को होगी और नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे। देश की राष्ट्रीय राजधानी से सटे इस राज्य में विधानसभा की 90 सीटें हैं और राज्य में इस बार सरकार बनाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच जबरदस्त लड़ाई है। यह लड़ाई लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद और तीखी हुई है क्योंकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया है।
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हुआ नुकसान
लोकसभा चुनाव 2024 में जिस तरह का ट्रेंड देखने को मिला है, अगर विधानसभा चुनाव में भी यह ट्रेंड जारी रहा तो बीजेपी का सत्ता में वापस आने का सपना टूट सकता है।
राजनीतिक दल | विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2014 में मिली सीट | विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2019 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2024 में मिली सीट |
कांग्रेस | 15 | 1 | 31 | 0 | 5 |
बीजेपी | 47 | 7 | 40 | 10 | 5 |
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा, बीजेपी का घटा
राजनीतिक दल | लोकसभा चुनाव 2019 में मिले वोट (प्रतिशत में) | लोकसभा चुनाव 2024 में मिले वोट (प्रतिशत में) |
कांग्रेस | 28.51 | 43.67 |
बीजेपी | 58.21 | 46.11 |
हरियाणा की राजनीति में मुख्य लड़ाई अगर बीजेपी और कांग्रेस के बीच है तो राज्य स्तरीय दल भी हैं, जिनका कुछ सीटों पर असर है। इनमें इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो), बसपा और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (लोसुपा), हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा), हरियाणा जनसेवक पार्टी शामिल हैं।
बीजेपी ने हलोपा के साथ गठबंधन किया है जबकि बसपा और इनेलो साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। जेजेपी अकेले ही चुनाव मैदान में उतरी है और पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की लोसुपा कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव मैदान में है। हरियाणा जनसेवक पार्टी एक सीट महम में ही असर रखती है।
छोटे दलों को पिछले विधानसभा चुनावों में मिली सीटें
राजनीतिक दल | विधानसभा चुनाव 2009 में मिली सीट | विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट | विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट |
कांग्रेस | 40 | 15 | 31 |
बीजेपी | 4 | 47 | 40 |
इनेलो | 31 | 19 | 1 |
जेजेपी | – | – | 10 |
हजकां(बीएल) | 6 | 2 | – |
अन्य | 9 | 7 | 8 |
चुनाव के इस बेहद गर्म राजनीतिक माहौल में इस पर बात करना जरूरी है कि हरियाणा में किस पार्टी के लिए क्या चुनौतियां हैं, क्या संभावनाएं हैं, सबसे पहले बात करते हैं बीजेपी के बारे में।

विस चुनाव में भी असर दिखाएगी किसानों की नाराजगी?
बीजेपी 2014 और 2019 में हरियाणा में अपनी सरकार बन चुकी है लेकिन इस बार बीजेपी के लिए चुनौतियों के रूप में सबसे पहले किसान हैं। कृषि कानूनों के विरोध में चले किसान आंदोलन का हरियाणा में अच्छा-खासा प्रभाव रहा था और बीजेपी को वहां लोकसभा चुनाव में भी किसान राजनीति वाली बेल्ट में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। पिछली बार जीती हुई रोहतक, सोनीपत, हिसार की सीटों पर उसे हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव नतीजों में भी किसानों की नाराजगी स्पष्ट रूप से दिखाई दी है।
किसानों के साथ ही बीजेपी के सामने एक बड़ी मुश्किल जाट समुदाय की नाराजगी की खबरों को लेकर भी है। जाट समुदाय की हरियाणा में आबादी 25% तक है और इतने बड़े समुदाय की नाराजगी किसी भी राजनीतिक दल को भारी पड़ सकती है।
बीजेपी ने हरियाणा में जाट समुदाय को मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों ही पदों से दूर रखा है और उस पर यह आरोप लगता है कि वह गैर जाट कार्ड की राजनीति कर रही है। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान किसानों ने बीजेपी के लगभग सभी प्रत्याशियों का जोरदार विरोध किया था।

महिला पहलवानों के यौन शोषण का मामला बनेगा मुद्दा?
पिछले साल जब महिला पहलवानों ने भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया था तो यह हरियाणा के साथ ही देशभर में चर्चा का मुद्दा बन गया था। बीजेपी ने इस मुद्दे पर हरियाणा में जाट समुदाय की नाराजगी को देखते हुए बृजभूषण शरण सिंह को टिकट नहीं दिया था लेकिन उनकी जगह उनके बेटे को टिकट दिया और वह जीत कर सांसद बने हैं।
महिला पहलवानों के यौन शोषण का मामला सोशल मीडिया पर भी चर्चित रहा और यह हरियाणा में थोड़ा-बहुत असर जरूर कर सकता है और इससे भाजपा की सत्ता में वापसी की राह निश्चित रूप से मुश्किल हो सकती है।
टिकटों की लड़ाई में नेताओं की पसंद का रखना होगा ध्यान
बीजेपी के लिए हरियाणा में टिकटों का बंटवारा करना एक बड़ी चुनौती होगी खासकर अहीरवाल के इलाके में। क्योंकि यहां गुरुग्राम के सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह अपनी बेटी के साथ ही अपने समर्थकों को भी टिकट दिलाना चाहते हैं।
राव इंद्रजीत सिंह कैबिनेट मंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। ऐसे में बीजेपी ने राव इंद्रजीत सिंह और उनके समर्थकों को टिकट नहीं दिया तो निश्चित रूप से इससे पार्टी में बगावत हो सकती है। लेकिन अगर बीजेपी ने राव इंद्रजीत सिंह की पसंद पर कई सीटों पर टिकट दे दिया तो इससे भी अहीरवाल के इलाके में बीजेपी में बगावत हो सकती है क्योंकि पूर्व कैबिनेट मंत्री और गुरुग्राम की बादशाहपुर विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे राव नरबीर सिंह कुछ दिनों पहले ही यह खुलकर कह चुके हैं कि अगर बीजेपी ने टिकट बंटवारा ढंग से नहीं किया और जिन्हें पिछली बार टिकट दिया था उन्हें ही टिकट दिया तो दक्षिण हरियाणा में उसका सूपड़ा साफ हो जाएगा।
बीजेपी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के समर्थकों को भी नाराज करने का जोखिम नहीं उठाएगी।

सीएम के चेहरे पर नहीं है टकराव
बीजेपी के पक्ष में एक अच्छी बात यह है कि राज्य में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर बड़े नेताओं में टकराव नहीं दिखाई देता। केंद्रीय गृहमंत्री और हरियाणा में बीजेपी की चुनावी रणनीति तय करने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को ही पार्टी का चेहरा बता चुके हैं। शाह के इस एलान का किसी तरह से कोई विरोध देखने को नहीं मिला इसलिए चेहरे के मामले में बीजेपी में कांग्रेस जैसी लड़ाई नहीं है।
मोदी के चेहरे व नाम का सहारा
बीजेपी को एक बड़ी उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है। 2014 में जब बीजेपी ने पहली बार अपने दम पर हरियाणा में सरकार बनाई थी तो इसमें प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को बड़ी वजह माना गया था। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें जरूर कम हुई लेकिन फिर भी उसने 5 साल तक जेजेपी के साथ मिलकर सरकार चलाई।
लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि मोदी लहर कमजोर पड़ी है लेकिन फिर भी पार्टी को जीत की सबसे बड़ी उम्मीद प्रधानमंत्री मोदी की छवि और अमित शाह के चुनावी प्रबंधन से ही है।
लगातार तीसरी बार बनेगी भाजपा की सरकार?
बीजेपी के लिए बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्य में लगातार तीसरी बार उसकी सरकार बनेगी? भाजपा पिछले 2 महीने से पूरे हरियाणा में म्हारा हरियाणा, नॉन स्टॉप हरियाणा अभियान चला रही है। इसके तहत वह पिछले 10 साल में पार्टी के द्वारा लोगों के लिए किए गए कामों को गिना रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से जो योजनाएं हरियाणा के लिए चलाई गई हैं, उनका भी बहुत जोर-शोर से जिक्र कर रही है। इसमें सभी फसलों को एमसएसपी पर खरीदा जाना सबसे अहम है। पार्टी को उम्मीद है कि वह इन योजनाओं के दम पर चुनाव में जीत हासिल कर सकती है।
अब बात करते हैं राज्य में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की।
किसानों का विरोध: बीजेपी की चुनौती, कांग्रेस के लिए बड़ी संभावना
किसानों के कथित रूप से नाराजगी की जो बात बीजेपी के लिए मुसीबत है, वही बात कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी संभावना है। कांग्रेस को उम्मीद है कि किसानों की इस नाराजगी का उसे चुनाव में फायदा जरूर मिलेगा।
किसानों के साथ ही लोकसभा चुनाव में जाट मतदाता भी बड़ी संख्या में कांग्रेस के पक्ष में आते दिखाई दिए हैं। इस समुदाय का वोट हरियाणा की सियासत में काफी महत्वपूर्ण है और अगर यह किसी भी एक दल के पक्ष में लामबंद हुआ तो दूसरे दल की मुश्किलों में इजाफा होना तय है।
लोकसभा चुनाव के नतीजे से कांग्रेस उत्साहित है और उसका कहना है कि पार्टी चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने की ओर बढ़ रही है। निश्चित रूप से हरियाणा में कांग्रेस ने अपनी सीटें तो बढ़ाई ही हैं अपना वोट शेयर भी बढ़ाया है।

सीएम के चेहरे पर रार
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चल रही लड़ाई है। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और पार्टी के सबसे बड़े चेहरे हैं लेकिन इस बार उनके विरोध में सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा, राज्यसभा के सांसद रणदीप सुरजेवाला और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह खड़े हैं।
हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष उदयभान सिंह भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक माने जाते हैं। कांग्रेस ने बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई को देखते हुए ही मुख्यमंत्री के चेहरे का ऐलान नहीं किया है।
टिकटों का बंटवारा करना होगा मुश्किल
बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई और सियासी महत्वाकांक्षाओं की वजह से कांग्रेस को टिकट बंटवारे में भी मुसीबत उठानी पड़ सकती है क्योंकि कुमारी सैलजा के प्रभाव वाले इलाकों हिसार, सिरसा और रणदीप सुरजेवाला और चौधरी बीरेंद्र सिंह के प्रभाव वाले इलाकों जींद, कैथल के इलाकों में कांग्रेस के लिए टिकट बंटवारा मुश्किल हो सकता है।
कुमारी सैलजा हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष रही हैं इसलिए राज्य में उनके समर्थकों की अच्छी संख्या है। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व गुटबाजी पर विराम लगाने की पूरी कोशिश कर रहा है लेकिन अभी तक उसे इसमें कामयाबी नहीं मिली है।
नेताओं की यह लड़ाई कांग्रेस की सत्ता में वापसी में मुसीबत बन सकती है।
कुछ और सवाल…
जेजेपी फिर से बन पाएगी किंगमेकर?
पहली ही बार में 2019 के विधानसभा चुनाव में 10 सीटें जीतने वाली जेजेपी के लिए यह एक बहुत बड़ी कामयाबी थी लेकिन किसान आंदोलन के दौरान पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को किसानों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था।
किसान चाहते थे कि दुष्यंत बीजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ दें लेकिन दुष्यंत ने गठबंधन नहीं तोड़ा और इस वजह से राज्य में किसान उनसे नाराज दिखाई देते हैं। लोकसभा चुनाव में इसका असर भी दिखाई दिया जब पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई और जेजेपी को एक प्रतिशत से भी कम वोट मिले।
जेजेपी के सामने मुश्किल यह भी है कि उसके 10 में से 6 विधायक बगावत कर चुके हैं और लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद बड़ी संख्या में पार्टी के कार्यकर्ता, नेता, पदाधिकारी पार्टी छोड़ चुके हैं। ऐसे में जेजेपी एक बार फिर हरियाणा की राजनीति में किंग मेकर बन पाएगी, यह एक बड़ा सवाल है।

इनेलो और बसपा को कितनी कामयाबी मिलेगी?
इनेलो में टूट होने से पहले यह एक बड़ी राजनीतिक ताकत हुआ करती थी और 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन पिछले चुनाव में पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली थी। इस बार इनेलो ने फिर से ताकत लगाई है और वह बसपा के साथ गठबंधन करते हुए चुनाव लड़ रही है।
पार्टी के सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला कार्यकर्ताओं के बीच जा रहे हैं और उनके बेटे अभय चौटाला ने किसान आंदोलन के दौरान किसानों के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था। इनेलो को उम्मीद है कि किसान उसका साथ जरूर देंगे।
अगर दलित मतदाताओं का साथ इनेलो-बसपा गठबंधन को मिलता है तो कुछ सीटों पर इस गठबंधन को जीत मिल सकती है।