नरेंद्र मोदी भारत के 14वें प्रधानमंत्री हैं। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे। पहले से 14वें तक की गिनती में कार्यकारी प्रधानमंत्री को नहीं गिना जाता है। गिनती सिर्फ पूर्णकालिक प्रधानमंत्रियों की होती है, भले ही उनका कार्यकाल अल्पकालिक रहा हो।

आजादी के बाद से अब तक दो बार देश की कमान कार्यकारी प्रधानमंत्री के हाथों में रही है। दोनों बार यह जिम्मेदारी गांधीवादी कांग्रेसी नेता गुजलारीलाल नंदा के कंधों पर आयी।

पहली बार कार्यकारी प्रधानमंत्री की जरूरत 1964 में नेहरू की मौत के बाद पड़ी। दूसरी बार 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की अचानक हुई मौत के बाद नंदा को पद संभालना पड़ा। यह संयोग ही है कि वह दोनों बार मात्र 13-13 दिन के लिए ही इस पद पर रहे। इसके अलावा नंदा ने गृह मंत्रालय समेत कई अहम मंत्रालयों की भी जिम्मेदारी संभाली।

गांधी ने गुजरात में बसाया

गुजलारीलाल नंदा का जन्म 4 जुलाई, 1898 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) के बडोकी गोसाईं कस्बे में हुआ था। ग्रजुएशन की पढ़ाई बाद नंदा मुंबई आ गए। साल 1921 में उनकी मुलाकात मोहनदास करमचंद गांधी से हुई। उन्होंने नंदा से गुजरात में बसने का अग्रह किया। गांधी के कहने पर नंदा गुजरात में बस गए।

बाद में वह असहयोग आंदोलन समेत स्वतंत्रता संग्राम की विभिन्न गांधीवादी मूवमेंट में शामिल रहे। इस दौरान वह मजदूर आंदोलन से भी जुड़े रहे। आजादी के पहले बॉम्बे सरकार में वह श्रम व गृह निर्माण मंत्री (1932-1939) भी रहे। आजादी के बाद उन्होंने नेहरू कैबिनेट में कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली।

इंदिरा की जीत के बाद राजनीति से लिया सन्यास

बाद में जिस तरीके से सियासी घटनाक्रम बदला, उससे गुलजारीलाल नंदा खिन्न हो गए। खासकर 1971 के चुनाव में जब इंदिरा गांधी ने बहुमत प्राप्त किया तो नंदा ने राजनीति छोड़ने का ऐलान कर दिया। कहा कि उन्हें इस दौर की राजनीति पसंद नहीं आती। सियासत को अलविदा कहने के बाद गुलजारीलाल नंदा समाज और धर्म की सेवा में लग गए। ‘नवजीवन संघ’ व ‘मानव धर्म मिशन’ में काम करने लगे। दोनों संगठनों की नींव उन्होंने ही रखी थी। 

बस से जाते थे घर

गुलजारीलाल नंदा बेहद ईमानदार और सिद्धांतवादी शख्स थे। जब उन्होंने राजनीति छोड़ी तो स्थिति ऐसी बन गई कि आजीविका का कोई साधन नहीं बचा और तमाम कठिनाई का सामना करना पड़ा। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में लिखते हैं कि गुलजारीलाल नंदा को अक्सर दिल्ली के कनॉट प्लेस में बस स्टॉप पर बस का इंतजार करते देखा जाता था। वह बस से ही नई दिल्ली से फ्रेंड्स कॉलोनी स्थित अपने किराए के घर आया जाया करते थे। 

मकान मालिक ने खाली करा लिया था घर

किदवई लिखते हैं कि गुलजारीलाल नंदा की आर्थिक हालत इतनी खराब हो गई थी कि एक बार किराया न देने के चलते मकान मालिक ने उसे घर खाली करा लिया था। इसके बाद वे अहमदाबाद में अपनी बेटी के पास चले गए और जैसे-तैसे समय काटते रहे। गुलजारीलाल नंदा के बाद फिर कभी किसी को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया।