गुजरात हाईकोर्ट ने ‘मोदी सरनेम’ मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। मोदी सरनेम से जुड़े मानहानि मामले में राहुल गांधी द्वारा दाखिल पुनर्विचार याचिका को गुजरात हाईकोर्ट के जज हेमंत एम. प्रच्‍छक ने खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है, “किसी भी तरह से ये नहीं कहा जा सकता है कि राहुल गांधी को दोषी करार दिए जाने का फैसला उनके साथ नाइंसाफी है। ये फैसला पूरी तरह से वाजिब है।”

29 अप्रैल की सुनवाई

मज‍िस्‍ट्रेट कोर्ट से सुनाई गई सजा पर रोक लगाने के ल‍िए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। शनिवार (29 अप्रैल) को राहुल गांधी की याचिका पर जज हेमंत एम. प्रच्‍छक ने सुनवाई की थी। राहुल गांधी की तरफ से कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पेश हुए। सिंघवी के करीब दो घंटे तक दलीलें रखीं।

उन्होंने याचिकाकर्ता की शिकायत पर सवाल उठाते हुए कहा था, “नरेंद्र मोदी, नीरव मोदी, ललित मोदी सबकी जाति अलग है। राहुल ने विजय माल्या और मेहुल चौकसी का भी नाम लिया था। पूर्णेश मोदी कैसे कह सकते हैं कि उनकी जाति का अपमान हुआ? गुजरात में मोढ, वणिक, राठौर, तेली कई लोग मोदी सरनेम लिखते हैं। भारत जैसा एक विविध जातियों, उप-जातियों और उप-समूहों का समूह है। आप किसी को भी इस तरह की शिकायत दर्ज करने के लिए स्थान नहीं दे सकते।”

पूर्णेश मोदी पर सवाल उठाते हुए सिंघवी ने कहा था, “शिकायतकर्ता ने खुद कहा है कि 1988 में उन्होंने अपना उपनाम बुटवाला से बदलकर मोदी करवा लिया था। वह ‘मोदी समस्त गुजरात समाज’ से जुड़े हुए हैं, जो उन्होंने खुद 1980 के दशक में बनाया था।” सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद जज हेमंत प्रच्छक ने कहा कि अब शिकायतकर्ता को अपना पक्ष रख लेने दीजिए। अगली सुनवाई 2 मई को है।

बता दें कि जस्‍ट‍िस गीता गोपी ने जब इस अपील पर सुनवाई से खुद को अलग कर ल‍िया था तब जस्‍ट‍िस प्रच्‍छक की कोर्ट में मामला भेजा गया है। ऐसा गुजरात हाईकोर्ट की वेबसाइट पर दी गई जानकारी से पता चलता है।

रह चुके हैं गुजरात और केंद्र सरकारों के वकील

जस्‍ट‍िस प्रच्‍छक गुजरात में ही जन्‍मे हैं, वहीं वकालत की है और वहीं जज बने हैंं। गुजरात हाईकोर्ट की वेबसाइट पर मौजूद उनकी प्रोफाइल के मुताब‍िक उन्‍होंने पोरबंदर के कॉलेज से 1992 में लॉ की ड‍िग्री ली और उसी साल 28 अक्‍टूबर से गुजरात हाईकोर्ट में वकालत शुरू कर दी थी।

2002 से 2007 तक वह गुजरात सरकार की ओर से एजीपी (assistant government pleader) और एपीपी (अपर लोक अभ‍ियोजक या Additional Public Prosecutor) भी रहे। 2015 से 2019 तक वह गुजरात हाईकोर्ट में केंद्र सरकार के वकील भी रहे।

अमि‍त जेठवा हत्‍याकांड में थे एडवोकेट ऑन र‍िकॉर्ड

2017 में जब जस्‍ट‍िस प्रच्‍छक वकालत करते थे तो आरटीआई कार्यकर्ता अम‍ित जेठवा की हत्‍या से जुड़े केस में जेठवा के प‍िता की ओर से ‘एडवोकेट ऑन र‍िकॉर्ड’ की भूमि‍का में थे। तब हाईकोर्ट ने इस हत्‍याकांड की दोबारा सुनवाई शुरू करने का आदेश द‍िया था। जूनागढ़ से बीजेपी के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी इस मामले में आरोपी थे। 105 गवाहों के पलट जाने के बाद इस मामले की दोबारा सुनवाई कराने की मांग की गई थी।

गुजरात हाईकोर्ट की वेबसाइट पर जस्‍ट‍िस प्रच्‍छक के बारे में दी गई जानकारी। (Screengrab)

30 साल की प्रैक्‍ट‍िस के बाद बने जज

करीब, 30 साल की प्रैक्‍ट‍िस के बाद 2021 में 18 अक्‍तूबर को उन्‍हें जज बनाया गया। उनके साथ छह और जजों को शपथ दिलाई गई थी। ये भी पहले वकालत ही करते थे। उस समय कॉलेज‍ियम ने चार हाईकोर्ट के ल‍िए 16 जजों (दस वकील और छह न्‍याय‍िक अध‍िकारी) के नाम की स‍िफार‍िश की थी। इनमें से सात गुजरात के थे।

जस्‍ट‍िस प्रच्‍छक का जन्‍म 4 जून, 1965 को गुजरात के पोरबंदर (जो महात्‍मा गांधी की जन्‍मस्‍थली के रूप में दुन‍िया भर में मशहूर है) में हुआ था।

क्‍या हो सकते हैं क‍िसी सुनवाई से जज के हटने के कारण

जस्‍ट‍िस गीता गोपी की कोर्ट में जब राहुल गांधी की अपील पर तत्‍काल सुनवाई की अर्जी दाख‍िल की गई थी तो उन्‍होंने कहा था- मेरी कोर्ट में नहीं। उन्‍होंने गुजरात हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्‍य न्‍यायाधीश से इसे क‍िसी और जज की अदालत में सूचीबद्ध करने का अनुरोध क‍िया था। कानूनी जानकार बताते हैं क‍ि आम तौर पर तीन-चार कारणों से कोई जज क‍िसी मामले की सुनवाई से खुद को अलग करता है।

  1. अगर जज उस मामले से अपने को नहीं जोड़ना चाहता हो। जैसे- राहुल गांधी का मामला हाई प्रोफाइल है तो अगर कोई जज हाई प्रोफाइल केस से खुद को अलग रखना चाहता है तो वह इसकी सुनवाई से खुद को अलग कर सकता है।
  2. व‍िचारधारा के सवाल पर। यह मामला दो राजनीत‍िक पार्ट‍ियों के नेताओं से जुड़ा है। अगर इनमें से क‍िसी एक की व‍िचारधारा जज की राजनीत‍िक व‍िचारधारा से मेल खाती हो तो वह जज इस मामले से खुद को अलग रख सकता है।
  3. ह‍ितों का टकराव। अगर दो में से क‍िसी पक्ष से जज क‍िसी भी रूप में जुड़ा हो तो वह मामले से खुद को अलग कर सकता है।
  4. कई बार पुराने संबंधों की वजह से भी जज मामले से खुद को अलग रखता है। जैसे- अगर जज ने वकील रहते हुए ज‍िसका मुकदमा लड़ा हो, उसी का केस उसकी कोर्ट में आ जाए तो वह खुद को सुनवाई से अलग कर लेता है।

जस्‍ट‍िस गीता गोपी ने इस मामले की सुनवाई नहीं करने की कोई वजह नहीं बताई है। जस्‍ट‍िस गीता गोपी ने 1993 में नवसारी जिला अदालत से प्रैक्‍ट‍िस शुरू की थी। 24 नवंबर, 2008 को वह ज‍िला जज बनीं और 3 मार्च, 2020 को उन्‍हें गुजरात हाईकोर्ट का जज बनाया गया था।

केस का बैकग्राउंड

25 अप्रैल को राहुल गांधी ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। 26 अप्रैल को जस्‍ट‍िस गीता गोपी ने इसे सुनने से मना कर द‍िया था। हाईकोर्ट आने से पहले राहुल गांधी 3 अप्रैल को सेशंस कोर्ट गए थे। 20 अप्रैल को वहां उनकी अपील खार‍िज हो गई थी और ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल रखा गया।

रॉबिन मोगेरा की अदालत में राहुल गांधी को नहीं म‍िली थी राहत

सेशंस कोर्ट में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा ने फैसला सुनाया था। जज बनने से पहले मोगेरा गुजरात के नामी वकील थे, उन्होंने सीबीआई कोर्ट में अम‍ित शाह का मुकदमा भी लड़ा था। दरअसल, अमित शाह तुलसीराम प्रजापत‍ि कथ‍ित फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी थे और मोगेरा अदालत में उनकी पैरवी कर रहे थे। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

राहुल गांधी ने क्या कहा था?

सूरत की ट्रायल कोर्ट ने 23 मार्च, 2023 को राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद उनकी सांसदी खत्‍म हो गई। राहुल गांधी ने अप्रैल 2019 में कोलार (कर्नाटक) में एक भाषण में कहा था- सारे चोरों के नाम मोदी ही क्‍यों होते हैं। इस पर गुजरात के सूरत में बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने उन पर मुकदमा क‍िया था। इसी मामले में राहत के ल‍िए राहुल गांधी अब हाईकोर्ट पहुंचे हैं।