गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 की तारीखों का ऐलान हो गया है। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है। वह प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री थे। नरेंद्र मोदी सबसे लम्बे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री (2001-2014) रहे। सबसे लंबे समय तक राज्य का मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम है और निकट भविष्य में यह रिकॉर्ड टूटने के आसार नहीं हैं।
1 मई 1960 को भाषा के आधार पर गुजरात और महाराष्ट्र का विभाजन हुआ था। बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम, 1960 के तहत बना गुजरात 62 साल का हो चुका है। इस बीच कुल 17 नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं। पिछले ढाई दशक से राज्य की सत्ता पर भाजपा काबिज है। 1995 वह आखिरी साल था, जब गुजरात में कांग्रेस की सत्ता थी।
कभी कांग्रेस का गढ़ था गुजरात
90 के दशक में पैदा हुए नौजवानों को आज गुजरात भले ही भाजपा का अभेद किला मालूम होता हो। लेकिन हालात हमेशा ऐसे नहीं थे। गुजरात बनने के बाद 13 साल तक वहां कांग्रेस का शासन था। गुजरात के पहले मुख्यमंत्री डॉ॰ जीवराज नारायण मेहता कांग्रेस नेता थे। इंदिरा गांधी के आपातकाल के बाद गुजरात की राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव आना शुरू हुआ।
आपातकाल के बाद हुए चुनाव में बाबूभाई जशभाई पटेल (18 जून 1975 – 12 मार्च 1976) जनता मोर्चा की तरह मुख्यमंत्री बने। हालांकि चार महीनों के भीतर ही उनकी सरकार गिर गई और कांग्रेस के माधवसिंह सोलंकी मुख्यमंत्री बन गए। सोलंकी की सरकार गिरने के बाद फिर अलगे करीब तीन वर्ष के लिए बाबूभाई जशभाई पटेल (11 अप्रैल 1977 – 17 फरवरी 1980) को मौका मिला। इस बार वह जनता पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री बनाए गए थे। आपातकाल के बाद कांग्रेस में आयी अस्थिरता के बाद कांग्रेस ने 1980 से लेकर 1990 तक लगातार शासन किया।
गुजरात में भाजपा को सरकार बनाने का पहला मौका 1995 में मिला। केशुभाई पटेल भाजपा के पहले मुख्यमंत्री थे। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भाजपा गुजरात में इस कदर बाहरी थी कि उसे कोई कार्यालय के लिए किराए पर अपनी प्रॉपर्टी तक देने को तैयार नहीं था।

भाजपा के लिए मुश्किल था पिछला चुनाव
गुजरात में कुल 33 जिले और 182 विधानसभा सीटें हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 99, कांग्रेस को 77, एनसीपी एक और भारतीय ट्राइबल पार्टी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं निर्दलीय के खाते में तीन सीटें गई थीं।

सीटों के लिहाज से पिछला चुनाव भाजपा के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था। 1990 के बाद 2017 का चुनाव ऐसा था, जब भाजपा 100 के आंकड़े को नहीं छू पायी थी।