‘गेस्ट हाउस कांड’ देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की एक अति महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना मानी जाती है। उस घटना के बाद से मायावती (बसपा) और मुलायम सिंह यादव (सपा) में कड़वाहट बढ़ गई थी।
‘गेस्ट हाउस कांड’ की कहानी को, ‘जितने मुंह उतनी बात’ नामक मुहावरे का सटीक उदाहरण भी माना जा सकता है। करीब तीन दशक में 2 जून, 1995 को हुए उस कथित कांड को कई रपटों, किताबों और दस्तावेजों में समेटने की कोशिश हुई।
अब पूर्व आईपीएस अधिकारी ओपी सिंह ने अपने संस्मरण Crime, Grime and Gumption — Case Files of an IPS Office में भी गेस्ट हाउस कांड के बारे में लिखा है। ओपी सिंह को उस कांड का एक किरदार भी माना जा सकता है। तब वह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एसएसपी के रूप में कार्यकर थे। आइए गेस्ट हाउस कांड के ओपी सिंह वर्जन के बारे में जानते हैं।
भाजपा को रोकने के लिए बने गठबंधन में कैसे ‘पिस’ गए ओपी सिंह
बाबरी विध्वंस (6 दिसंबर, 1992) के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन किया। 1993 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 256 और बसपा ने 164 सीटों पर चुनाव लड़ा। सपा को 109 और बसपा को 67 सीटों पर जीत मिली। सपा-बसपा गठबंधन से मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। हालांकि बसपा सरकार में शामिल नहीं हुई थी। विभिन्न मुद्दों को लेकर गठबंधन में जल्द ही दरार आने लगी।
जैसे गैंगस्टर महेंद्र फौजी का एनकाउंटर। बसपा ने इस एनकाउंटर का विरोध किया था। तब ओपी सिंह बुलंदशहर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) हुआ करते थे और एनकाउंटर उन्हीं के नेतृत्व में हुआ था। गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले महेंद्र फौजी का गिरोह पश्चिमी यूपी में एक्टिव था। गिरोह पुलिस के लिए एक चुनौती साबित हो रही थी। अप्रैल 1994 में फौजी पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया। सिंह लिखते हैं, फौजी की मौत ने उनके लिए एक “नई मुसीबत” पैदा कर दी।
वह लिखते हैं, “मैंने बस अपना कर्तव्य निभाया था, एक अपराधी को अपराध करने से रोकना और भय के तहत जी रहे लाखों लोगों को सहायता प्रदान करना… गुर्जर समुदाय ने बसपा को अपना समर्थन दिया था। पार्टी ने दावा किया कि महेंद्र फौजी की हत्या से समीकरण बिगड़ गया है।”
सिंह कहते हैं कि तत्कालीन बसपा अध्यक्ष कांशीराम और सचिव मायावती ने उनके निलंबन की मांग की और एनकाउंटर पर संदेह जताया। सिंह आगे लिखते हैं, “गठबंधन सरकार पर भारी दबाव के बावजूद सीएम ने मांग मानने से इनकार कर दिया। बसपा उस साल हस्तिनापुर उपचुनाव हार गई और हार का कारण फौजी के एनकाउंटर के बाद गुर्जरों का पार्टी छोड़ना बताया गया।”
जब मुलायम सिंह यादव ने ओपी सिंह से कहा- मेरी सरकार गिर जाएगी
इन सबके बीच मुलायम यादव ने ओपी सिंह को अहम पोस्टिंग दे दी। मई 1994 में सिंह लखनऊ के एसएसपी बन गये, जिससे गठबंधन सहयोगियों के बीच तनाव बढ़ गया। उसी वर्ष, बुलंदशहर के एक ठाकुर बहुल गांव में चार दलितों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। पीड़ित कथित तौर पर अपराध करने के इरादे से गांव गए थे। सिंह के मुताबिक, इस घटना का इस्तेमाल उनपर दबाव बनाने के लिए किया गया।
10 जून 1994 को एक संवाददाता सम्मेलन में कांशीराम और मायावती ने सिंह के निलंबन की मांग की। पूर्व पुलिसकर्मी लिखते हैं, “मैं कभी कांशीराम और मायावती से भी नहीं मिला था, फिर भी मुझे दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक झगड़े में घसीटा गया।” दो हफ्ते बाद मुलायम सिंह यादव ने कुंभ मेला एसएसपी के रूप में ओपी सिंह के ट्रांसफर की खबर देने के लिए उनसे मुलाकात की।
सिंह लिखते हैं, “सीएम ने खेद व्यक्त करते हुए कहा- एसएसपी साहब, अगर मैंने आपका तबादला नहीं किया तो बसपा समर्थन वापस ले लेगी और मेरी सरकार गिर जाएगी। यह कवायद करनी हो होगी।”
गेस्ट हाउस कांड और ओपी सिंह
1 जून, 1995 को तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा को पत्र देकर बसपा ने गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस लिया। इस बीच मुलायम सरकार ने लखनऊ के कई प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों का तबादला किया और ओपी सिंह को लखनऊ का वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बना दिया। तब ओपी सिंह और मायावती के बीच तनाव की खूब चर्चा थी।
2 जून 1995 को सिंह ने कार्यभार संभाला और उसी दिन गेस्ट हाउस कांड हो गया। उस दिन दोपहर करीब दो बजे पुलिस विभाग को मीरा बाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस में गड़बड़ी की शिकायत मिली। सिंह ने सर्किल ऑफिसर, हजरतगंज को आदेश दिया और एक टीम को गेस्ट हाउस भेजा गया। बाद में उन्हें बताया गया कि वहां सब कुछ सामान्य है।
कुछ घंटों बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट राजीव खेर के साथ बैठक के दौरान, सिंह को प्रमुख सचिव (गृह) और डीजीपी से गेस्ट हाउस में मौजूद “गैरकानूनी तत्वों” के बारे में एक संदेश मिला। सिंह लिखते हैं, “गेस्ट हाउस से कुछ लोगों ने शिकायत की कि बसपा विधायकों का अपहरण किया जा रहा है।”
सिंह को याद है कि मायावती सुइट नंबर एक और दो में ठहरी थीं और उन्होंने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि ये सुइट्स “दोगुने सुरक्षित” रहें।
सिंह लिखते हैं, “आखिरकार, यह स्पष्ट हो गया कि बसपा द्वारा समर्थन वापस लेने से विकट स्थिति पैदा हुई थी। जब मायावती अपने विधायकों को दूसरी तरफ जाने से बचाने की कोशिश कर रही थीं, तो सपा दावा कर रही थी कि कुछ बसपा विधायक मुलायम सिंह यादव के साथ जाना चाहते थे। लेकिन उनके नेताओं ने उन्हें बंद कर रखा था।”
उस रोज गेस्ट हाउस के बाहर भारी संख्या में पत्रकार मौजूद थे, क्योंकि अंदर मायावती के नेतृत्व में बसपा विधायकों की मीटिंग चल रही थी। पत्रकार बसपा के अगले कदम की योजना जानना चाहते थे क्योंकि वह सरकार से समर्थन वापस ले चुकी थी। वहां पत्रकारों की भीड़ में वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान भी थे। कुछ साल पहले उन्होंने अपना आंखों देखा हाल बीबीसी को बताया था, जिसके मुताबिक, सपा के लोग पहले गेस्ट हाउस के बाहर जुट गए। कुछ देर बाद अंदर घुस गए और बसपा के विधायकों के साथ मारपीट शुरू कर दी। मायावती कुछ लोगों के साथ भागकर एक कमरे में घुस गईं और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया गया। लेकिन बाहर से दरवाजे को लगातार पीटा जा रहा था। शरत प्रधान के मुताबिक, बसपा नेताओं ने मदद के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को फोन किया लेकिन तब किसी ने फोन नहीं उठाया।
अजय बोस द्वारा लिखी मायावती की जीवनी ‘बहनजी’ में बताया गया है कि सपा कार्यकर्ता मायावती के खिलाफ जातिवादी नारे लगा रहे थे। उन्होंने न सिर्फ बसपा विधायकों को पीटा बल्कि पांच विधायकों को अगवा कर मुख्यमंत्री आवास पर भी ले गए।
मायावती को आग लगाने की कोशिश?
अपनी किताब में ओपी सिंह 2 जून 1995 की रात की एक घटना के बारे में लिखते हैं। सिंह कहते हैं, “चारों ओर कहानियाँ और अफवाह फैल गईं। इसका नमूना: उसी दिन रात करीब 10 बजे स्टेट गेस्ट हाउस का दौरा करने वाले संभागीय आयुक्त ने इंटरकॉम पर मायावती से बात की। मायावती ने चाय पीने की इच्छा जताई। गेस्ट हाउस के प्रभारी संपदा अधिकारी ने अफसोस जताया कि रसोई में कोई रसोई गैस सिलेंडर नहीं था। पास के एक आवास से सिलेंडर की व्यवस्था की गई। सिलेंडर को रसोई की ओर ले जाते देखने और उसके कारण होने वाली आवाज के कारण यह अफवाह फैल गई कि मायावती को आग लगाने की कोशिश की गई थी।”
अगले दिन सिंह को मायावती द्वारा राज्यपाल को लिखे गए पत्र की एक प्रति मिली। ओपी सिंह के मुताबिक, पत्र ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया कि एसपी नेता गैरकानूनी तरीके से गेस्ट हाउस में घुसे, बसपा सदस्यों पर हमला किया और कुछ विधायकों को भी अपने साथ ले गए।
सिंह लिखते हैं, “एक पुलिस अधिकारी के रूप में मैं फिर से दो राजनीतिक दलों के बीच फंस गया था।” उस रात करीब 9 बजे राज्यपाल ने मुलायम सरकार को बर्खास्त कर दिया और मायावती को नए सीएम के रूप में शपथ दिलाई गई। सिंह को निलंबित कर दिया गया और गेस्ट हाउस की घटनाओं से जुड़े दो मामले उन पर लगाए गए। सरकार ने 150 दिनों के बाद उन्हें बहाल कर दिया और उनके खिलाफ सभी मामले और जांच वापस ले ली गईं।