केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है। इससे संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि केंद्र सरकार को ‘RSS जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन’ को उन संगठनों की सूची में रखने की ‘अपनी गलती’ का एहसास करने में 50 साल लग गए, जिनसे सरकारी अधिकारी जुड़े नहीं हो सकते।
अदालत इंदौर निवासी सेवानिवृत्त केंद्र सरकार के अधिकारी पुरूषोत्तम गुप्ता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने सितंबर 2023 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था और कहा था कि उन्हें आरएसएस में शामिल होने से रोकने वाले नियम उनकी इच्छाओं को पूरा करने में बाधा थे।
केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में हलफनामा देकर प्रतिबंध हटाने के अपने फैसले की जानकारी दी थी।
इससे पहले अदालत ने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि 10 महीने तक मामला पेंडिंग रखा गया था क्योंकि केंद्र सरकार ने पुरुषोत्तम गुप्ता की याचिका पर जवाब दाखिल नहीं किया था। 22 मई को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत के समक्ष उपस्थित हुए और जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा।
आरएसएस की गैर राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को रोकने के गंभीर परिणाम
अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि आरएसएस की गैर राजनीतिक गतिविधियों को भी सांप्रदायिक, धर्मनिरपेक्ष विरोधी और राष्ट्रीय हित के खिलाफ दिखाना एक ऐसा फैसला है जिसके न केवल संगठन के लिए बल्कि इसके साथ जुड़ने की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति के लिए गंभीर परिणाम होंगे। अदालत ने कहा, “मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी कार्यकारी या विधायी निर्णय को हमेशा सरकार द्वारा नागरिकों पर लगाए गए प्रतिबंधों को उचित ठहराने वाले ठोस डेटा और साक्ष्य द्वारा पेश किया जाना चाहिए।”
पीठ ने कहा, “अब जबकि केंद्र ने आरएसएस को ‘शामिल न हो सकने वाले’ संगठनों की लिस्ट से हटाने का फैसला किया है, भविष्य में ऐसी किसी लिस्ट में इसका नाम डालने से पहले गहन विचार होना चाहिए।”
आरएसएस में कई गैर राजनीतिक गतिविधियां
अदालत ने कहा कि आरएसएस में कई धार्मिक, सामाजिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य और गैर-राजनीतिक गतिविधियाँ होती हैं जिनका संघ की राजनीतिक गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है। अदालत ने कहा, ये “अराजनीतिक गतिविधियां स्वयंसेवकों द्वारा पूरी तरह से सामुदायिक सेवा के लिए की जा सकती हैं, बिना राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के।”
केंद्र सरकार ‘सब से ऊपर’ नहीं
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा, “केंद्र सरकार ‘मैं सब से ऊपर’ जैसा व्यवहार नहीं कर सकती। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए किसी भी संगठन को ‘शामिल न होने वाले’ संगठन के रूप में लिस्ट करने का फैसला तर्कों, कारण और न्याय के नियमों द्वारा होना चाहिए न कि सत्ता में बैठे लोगों की राय के अनुसार।”
फैसले के मुताबिक, “राजनीति के अलावा धार्मिक, सामाजिक, परोपकार, शैक्षिक जैसी गतिविधियों के लिए आरएसएस जैसे संगठन की स्वैच्छिक सदस्यता को इन निर्देशों के माध्यम से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा करने की जरूरत महसूस की गई थी तो उन्हें केवल कानून के माध्यम से ही किया जाना चाहिए था या कंडक्ट रूल में संशोधन के माध्यम से।”
सरकारी कर्मचारी भी अब आरएसएस से जुड़ सकेंगे
दरअसल, केंद्र ने 9 जुलाई को आरएसएस को उन राजनीतिक संगठन के रूप में हटाने की अधिसूचना जारी की थी जिसके साथ सरकारी अधिकारी जुड़े नहीं हो सकते। 10 जुलाई को केंद्र सरकार ने इस अदालत में एक हलफनामा दायर किया गया था, जिसमें आदेश के बारे में बताया गया था।
RSS पर कब लगा बैन
1964 में केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम और अखिल भारतीय सेवा आचरण नियम के मुताबिक, “कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक दल या राजनीतिक संगठन का सदस्य नहीं होगा या उससे जुड़ा नहीं होगा।”
1966 में, गृह मंत्रालय के एक सर्कुलर में कहा गया था कि सरकारी कर्मचारियों द्वारा आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी की गतिविधियों में भागीदारी या सदस्यता लेने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। साथ ही सिविल सेवाओं और सरकारी पदों पर नियुक्ति के नियमों की ब्रोशर में सांप्रदायिक संगठनों की गतिविधियों में भाग लेने के खिलाफ चेतावनी दी गई है और कहा गया है कि ऐसा करने वाले कर्मचारियों को सरकारी नौकरी से हटाया जा सकता है।