रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहली बार अक्टूबर 2000 में भारत आए थे, जब वे नए-नए राष्ट्रपति बने थे और अटल बिहारी वाजपेयी भी अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में थे। उस समय हालात बिल्कुल अलग थे – पोखरण-II टेस्ट के बाद पश्चिमी देशों ने भारत पर कड़े बैन लगाए हुए थे, और सोवियत संघ टूटने के बाद रूस अपनी ताकत समेटने की कोशिश कर रहा था।

1999 के कारगिल युद्ध और IC-814 हाईजैक ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहद तनावपूर्ण बना दिया था, और पुतिन की यात्रा लाल किले पर दिसंबर 2000 में हुए हमले से कुछ ही महीने पहले हुई थी। यानी उस दौर में भारत और रूस दोनों ही अपने-अपने मोर्चों पर दबाव और चुनौतियों से घिरे थे।

पच्चीस साल बाद पुतिन एक बार फिर भारत आए हैं – इस बार 4-5 दिसंबर को होने वाली 23वीं सालाना समिट के लिए। फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यह उनका पहला भारत दौरा है। आज रूस पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, जबकि भारत पर अमेरिकी सेकेंडरी बैन और बढ़े हुए टैरिफ का असर दिख रहा है। भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और दिल्ली में लाल किले के पास धमाके की घटना ने सुरक्षा माहौल को फिर संवेदनशील बना दिया है।

Explained: रूस के एस-500 एयर डिफेंस सिस्टम से एस-400 कितना अलग? भारत खरीदने पर कर रहा विचार

इतने बदलावों के बावजूद भारत-रूस रिश्तों में एक स्थिरता बनी रही है – द्विपक्षीय साझेदारी मजबूत हुई है, और दोनों देशों ने दुनिया में अपनी भूमिका और प्रभाव को पहले से ज्यादा परिभाषित किया है। पिछले पच्चीस वर्षों में ग्लोबल और रीजनल स्तर पर कई समान स्थितियां दोहराई हैं, लेकिन भारत और रूस ने न सिर्फ अपने द्विपक्षीय संबंधों को विकसित किया है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका भी मजबूत की है। भारत ने अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के साथ सुरक्षा, रक्षा, आर्थिक और लोगों आधारित साझेदारियों पर आधारित मजबूत संबंध बनाए हैं। रूस के साथ भी उसने अपनी मजबूत रक्षा साझेदारी कायम रखी है – जो सोवियत काल की विरासत है – लेकिन साथ ही तकनीक के लिए अन्य स्रोत भी तलाशे हैं।

भारत-रूस रक्षा संबंध

समय के साथ भारत ने अपने रक्षा आयात में रूस पर निर्भरता कम की है। इसके बावजूद कई पुराने उपकरणों के लिए स्पेयर पार्ट्स और सर्विसिंग रूस से ही लेनी होती है, जिसके कारण लगभग 60% रक्षा उपकरण अब भी वहीं से जुड़े हैं। भारत ने रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा है। मॉस्को 5 में से 3 बैटरी डिलीवर कर चुका है, और अब भारत ने 5 और की मांग की है। लेकिन यूक्रेन युद्ध में व्यस्त होने के कारण रूस समय पर डिलीवरी नहीं कर पा रहा है।

यूरोपीय विश्लेषकों का कहना है कि रूस पर लगी पाबंदियों ने उसके अत्याधुनिक रक्षा उपकरण बनाने की क्षमता को धीमा कर दिया है—हालांकि मॉस्को इसे खारिज करता है।

तेल का सवाल

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से डिस्काउंट पर तेल खरीदना शुरू किया, जिससे घरेलू फ्यूल कीमतों को नियंत्रण में रखने में मदद मिली।

भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार FY 2024-25 में रिकॉर्ड 68.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। लेकिन यह व्यापार एकतरफा रहा – भारत का निर्यात सिर्फ 4.9 बिलियन डॉलर का है, जबकि रूस से आयात (मुख्यतः तेल) 63.8 बिलियन डॉलर का है। पिछले साल दोनों देशों ने 2030 तक व्यापार को 100 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा था।

अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने से नई दिल्ली मुश्किल में आ गई है। अमेरिका और यूरोप ने रूसी ऊर्जा खरीदने के लिए भारतीय तेल कंपनियों पर सेकेंडरी बैन भी लगाए हैं। इस तरह लागत का फायदा खत्म होने के कारण भारतीय कंपनियां रूस से तेल खरीद कम करेंगी, जिससे 100 बिलियन डॉलर के लक्ष्य पर सवाल उठने लगे हैं।

आगे क्या होने की संभावना है

रूस के साथ भारत के संबंधों को लेकर अमेरिका और यूरोप का दबाव बना हुआ है, इसलिए पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत पर सभी की नजर होगी। दिल्ली पुतिन की मेजबानी के लिए प्राइवेट डिनर, स्टेट बैंक्वेट, द्विपक्षीय बैठकें और CEO को संबोधित करने जैसी तैयारियां कर रहा है। उम्मीद है कि दौरे में राजकीय यात्रा जैसी शान-ओ-शौकत और औपचारिकताएं देखने को मिलेंगी।

इस साल की शुरुआत में तियानजिन में SCO शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी द्वारा पुतिन को गले लगाने और हाथ मिलाने पर पश्चिमी देशों ने हैरानी जताई थी। ऐसी ही तस्वीरें 4 और 5 दिसंबर को दिल्ली में भी देखने की उम्मीद है।

लेबर मोबिलिटी पैक्ट, यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ संभावित ट्रेड डील, S-400 और नए सुखोई एयरक्राफ्ट समेत रक्षा खरीद पर बातचीत, और रूसी बाजार में भारतीय उत्पाद – खासतौर पर फल-सब्जियों जैसे खराब होने वाले सामान तथा फार्मास्यूटिकल्स—की पहुंच बढ़ाने पर भी प्रगति की संभावना है।

बैलेंसिंग एक्ट

भारत अमेरिका और यूरोप के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करना चाहता है, क्योंकि ये टेक्नोलॉजी और पूंजी के प्रमुख स्रोत हैं और महत्वाकांक्षी भारतीयों के लिए आकर्षक गंतव्य भी। भारत दोनों के साथ ट्रेड डील पर बातचीत कर रहा है।

लेकिन लंबी अवधि की रक्षा जरूरतों के कारण रूस अब भी एक अहम रणनीतिक साझेदार है। दिल्ली, मॉस्को और बीजिंग के बीच ‘नो-लिमिट्स पार्टनरशिप’ को लेकर भी चिंतित है। भारत-चीन सीमा पर अभी भी 50,000 भारतीय सैनिक तैनात हैं, और बीजिंग भारत के लिए सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती बना हुआ है।

नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजरी बोर्ड के पूर्व चेयरमैन और रूस में भारत के पूर्व राजदूत पी. एस. राघवन ने अपनी किताब स्ट्रेटेजिक चैलेंजेस: इंडिया इन 2030 में लिखा है, “राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि रूस भारत के साथ साझा की गई सैन्य तकनीक किसी अन्य देश को ट्रांसफर नहीं करता। यह एक आश्वासन है जिसे भारत को मॉस्को द्वारा बीजिंग को दिए जाने वाले हथियारों, तकनीक और उनकी इंटेलिजेंस-शेयरिंग व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए लगातार परखते रहना चाहिए।”

इसीलिए 3488 किलोमीटर लंबी सीमा और पड़ोस में चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए भारत को पश्चिम और रूस—दोनों की जरूरत है। इस राजकीय यात्रा के दौरान पुतिन का रेड कार्पेट स्वागत उन्हें भारत के पक्ष में बनाए रखने की एक कोशिश होगी, ताकि पश्चिम के साथ भी संतुलन बना रहे।