आरएसएस से संबंधित पत्रिका ऑर्गनाइजर के ताजा अंक में प्रकाशित एक लेख में लोकसभा चुनाव परिणामों को अति आत्मविश्वासी भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को आईना दिखाने जैसा बताया गया है। आर्टिकल में यह भी कहा गया है कि नेता सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करने में व्यस्त थे और जमीन पर नहीं उतरे। लेख के मुताबिक, नेता अपनी दुनिया में खुश थे और जमीन से उठ रही आवाज़ें नहीं सुन रहे थे।
भाजपा के रवैये को लेकर संघ के भीतर खलबली
आरएसएस सदस्य रतन शारदा द्वारा लिखा गए लेख में संगठन के प्रति भाजपा के रवैये को लेकर संघ के भीतर खलबली साफ दिखाई दे रही है। शारदा ने लेख में कहा है, ”यह झूठा अहंकार कि केवल भाजपा नेता ही वास्तविक राजनीति समझते हैं और आरएसएस वाले गांव के मूर्ख हैं, हास्यास्पद है।”
शारदा ने अपने आर्टिकल में कहा है, “आरएसएस बीजेपी की क्षेत्रीय ताकत नहीं है। दरअसल, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के पास अपने कार्यकर्ता हैं। मतदाताओं तक पहुंचना, पार्टी के एजेंडे को समझाना और वोटर कार्ड वितरित करना जैसे नियमित चुनावी काम इनकी जिम्मेदारी है।”

बीजेपी नेताओं ने जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया- आरएसएस मेंबर
चुनाव नतीजों का दोष बीजेपी पर मढ़ते हुए लेख में कहा गया है, ”2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वास वाले बीजेपी कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रियलिटी चेक के रूप में आए हैं। उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी का 400+ का नाराभाजपा के लिए एक लक्ष्य था और विपक्ष के लिए एक चुनौती थी। लक्ष्य मैदान पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं। चूंकि, वे अपनी दुनिया में खुश थे, मोदीजी की आभा से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे, वे ज़मीन पर आवाज़ें नहीं सुन रहे थे।”
शारदा ने सुझाव दिया है कि नए जमाने के सोशल मीडिया और सेल्फी से चलने वाले कार्यकर्ताओं द्वारा पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का भाजपा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। शारदा ने लिखा है, “अगर बीजेपी के कार्यकर्ता आरएसएस तक नहीं पहुंचे हैं तो उन्हें जवाब देना होगा कि उन्होंने क्यों सोचा कि इसकी आवश्यकता नहीं है।”
‘भाजपा सांसद और मंत्री लोगों की पहुंच से बाहर’
लेखक ने भाजपा सांसदों और मंत्रियों की पहुंच से बाहर हो जाने की भी आलोचना की है। शारदा ने कहा, “वर्षों से किसी भी भाजपा या आरएसएस कार्यकर्ता और आम नागरिक की सबसे बड़ी शिकायत स्थानीय सांसद या विधायक से मिलने में कठिनाई या यहां तक कि असंभवता रही है, मंत्रियों को तो छोड़ ही दें। उनकी समस्याओं के प्रति असंवेदनशीलता एक और आयाम है। बीजेपी के चुने हुए सांसद और मंत्री हमेशा ‘व्यस्त’ क्यों रहते हैं? वे कभी अपने निर्वाचन क्षेत्रों में क्यों नहीं दिखते? संदेशों का जवाब देना इतना कठिन क्यों है?”

‘मोदी मैजिक की कुछ सीमाएं’
लेख में यह भी सुझाव दिया गया है कि मोदी मैजिक की कुछ सीमाएं हैं। लेखक ने कहा, यह विचार कि मोदीजी सभी 543 सीटों पर लड़ रहे हैं इसकी भी कुछ सीमाएं है। यह विचार तब आत्मघाती हो गया जब उम्मीदवार बदले गए, स्थानीय नेताओं की कीमत पर थोपे गए और दलबदलुओं को अधिक महत्व दिया गया। देर से आने वालों को समायोजित करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाले सांसदों की भी बलि देना दुखद है।”
सर्वसम्मति हमारी परंपरा- मोहन भागवत
इससे पहले चुनाव के नतीजों पर बात करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा था कि एक सच्चे सेवक में अहंकार नहीं होता है और वह दूसरों को कोई चोट पहुंचाए बिना काम करता है।

नागपुर में आरएसएस कार्यकर्ताओं के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के बाद आरएसएस नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा था, ” चुनाव लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं और चूंकि इसमें दो पक्ष होते हैं इसलिए प्रतिस्पर्धा होती है। इसकी वजह से दूसरे को हराने की प्रवृत्ति होती है और ऐसा ही होना भी चाहिए। लेकिन वहां भी मर्यादा महत्वपूर्ण है। झूठ हीं बोलना चाहिए। लोग चुने गए हैं, वे संसद में बैठेंगे और आम सहमति से देश चलाएंगे। सर्वसम्मति हमारी परंपरा है।”
भाजपा में विरोध के स्वर
चुनाव परिणाम सामने आने के बाद बीजेपी के बीच उम्मीदवारों के चयन, नेताओं के बर्ताव और केंद्रीय नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर आवाजें उठने लगी हैं। असम में एक विधायक ने सार्वजनिक रूप से जोरहाट की सीट कांग्रेस के हाथों खोने को लेकर कहा कि यह मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा के अहंकारी बर्ताव की वजह से हुआ है। पश्चिम बंगाल में दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों और एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष की हार और पार्टी द्वारा 2019 की तुलना में छह सीटें कम जीतने के बाद राज्य के कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया और चुनाव प्रबंधन को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।