लोकसभा चुनाव की गहमागहमी जोरों पर है। तमाम राजनीतिक दल और निर्दलीय उम्मीदवार ज़ोर-शोर से प्रचार में जुटे हैं। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या लगातार घट रही है। 17वीं लोकसभा में चार निर्दलीय सांसद थे। पहले लोकसभा चुनाव (1951-52) में जहां 37 निर्दलीय सांसद थे। वहीं, 1991 में 10वीं लोकसभा में केवल एक स्वतंत्र सांसद को जगह मिली थी।

1996 में 11वीं लोकसभा में नौ निर्दलीय सदस्य थे जबकि 1998 और 1999 में लोकसभा में छह-छह सदस्य थे। पिछले कुछ सालों में लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या लगातार घट रही है। एक समय था जब कई दर्जन निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में जीतते थे। निर्दलीय उम्मीदवारों के भारतीय लोकतंत्र में चुनाव जीतने का रिकॉर्ड शुरुआत के कुछ चुनावों में काफी अच्छा था लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या घटती गयी।

पहले आम चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी से ज्यादा निर्दलीय सांसद

1951-52 में पहले लोकसभा चुनाव में 37 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। यह संख्या सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के सांसदों के बाद दूसरी सबसे बड़ी संख्या थी। कांग्रेस ने इस चुनाव में 364 सीटें जीतीं थीं। वहीं, चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) रही थी, जिसे 16 सीटें मिली थीं।

दूसरे ही चुनाव में निर्दलीय सांसदों की संख्या से सेट हो गया रिकॉर्ड

1957 के दूसरे चुनाव में 42 निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंचे थे। यह भारतीय आम चुनावों के इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी संख्या थी। 1962 के तीसरे लोकसभा चुनावों में 20 निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे, वहीं 1967 के चुनावों में 35 निर्दलियों को जीत हासिल हुई थी। यह संख्या 1971 में 14, 1977 के चुनावों में 9 और 1980 के चुनावों में 12 थी।

पिछले कुछ चुनावों की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 4 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी, वहीं 2014 के चुनाव में 3 निर्दलीय सांसद लोकसभा पहुंचे थे। 2009 के आम चुनावों में 9 निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी।

चुनावी वर्ष निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या
1951-5237
195742
196220
196735
197114
19779
19809
198413
198912
19911
19969
19986
19996
20045
20099
20143
20194

जब राजा-रजवाड़ों ने लड़ा निर्दलीय चुनाव

1951-52 के पहले चुनाव में कई राजवंशी भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे। इनमें से सबसे प्रभावी करणी सिंह रहे, जिन्होंने 1952 से 1971 तक बीकानेर से पांच बार चुनाव जीता था। वह बीकानेर रियासत के आखिरी महाराजा थे। भारत के रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन दो बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते थे। पहली बार 1969 के उपचुनाव में मिदनापुर (मेदिनीपुर) से जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया था। दूसरी बार 1971 के लोकसभा चुनाव में वह दोबारा त्रिवेंद्रम (तिरुवनंतपुरम) से निर्दलीय कैंडिडेट के रूप में चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे।

स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से चुने गए निर्दलीय सांसद

कुछ और प्रमुख निर्दलीय उम्मीदवारों में स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू के भाई और कवि हरिन्द्र्नाथ चट्टोपाध्याय भी थे, जो 1952 में विजयवाड़ा से निर्दलीय सांसद बने थे। बाल गंगाधर तिलक के शिष्य शिक्षाविद माधव श्रीहरि ने भी नागपुर से 1962 में चुनाव जीता था। 1962 में ही आदिवासी नेता लाल श्यामशाह लाल भगवानशाह ने महाराष्ट्र के चंदा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था, हालांकि दो साल बाद ही उन्होंने सरकार द्वारा आदिवासियों की उपेक्षा करने के विरोध में त्यागपत्र दे दिया।

1963 के उपचुनाव में बर्धमान से हिंदू महासभा के लीडर एनसी चटर्जी निर्दलीय सांसद बनकर संसद पहुंचे। वह 1967 में दोबारा चुनाव जीते। 1971 के चुनाव में उनके बेटे सोमनाथ चटर्जी ने यह सीट जीती पर सीपीआई (एम) के टिकट से। जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल ने ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट कॉन्स्टीट्यूएंसी से निर्दलीय चुनाव जीता था। वह 1962, 1967 और 1971 में जीते थे। वहीं, शिलोंग लोकसभा क्षेत्र से जॉर्ज 1984 और 1996 में निर्दलीय चुनाव जीते थे। स्वायत्त जिला लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के असम राज्य के 14 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। इस निर्वाचन क्षेत्र में तीन स्वायत्त जिले शामिल हैं, दिमा हसाओ, कार्बी आंगलोंग और पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले। यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है।

हिंदूवादी से लेकर वामपंथी नेताओं तक ने लड़ा निर्दलीय चुनाव

हिंदू महासभा लीडर दिग्विजयनाथ गोरखपुर से 1967 में निर्दलीय चुनाव जीते थे। 1962 के लोकसभा चुनाव में होमी दाजी निर्दलीय चुनाव जीते थे। वही फारसी समुदाय से थे और एक कम्युनिस्ट नेता थे। कानपुर सीट से 1957 से 1971 तक चार बार एसएम बनर्जी निर्दलीय चुनाव जीते थे। धनबाद से मार्क्सिस्ट कोऑर्डिनेशन कमेटी के फाउंडर एके रॉय 1977 में निर्दलीय चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। वहीं, बॉम्बे साउथ सेंट्रल सीट से ट्रेड यूनियनिस्ट दत्ता सामंत 1984 में निर्दलीय चुनाव जीते थे। श्रीनगर से भी 1971 में आइना के संपादक शमीम अहमद शमीम निर्दलीय चुनाव जीते थे।

Lok Sabha 2024
बाएं से- गैंगस्टर छोटा राजन और ट्रेड यूनियन नेता दत्ता सामंत

इस सीट पर 1977 के बाद से लगातार निर्दलीय, 2009 बना अपवाद

10वीं लोकसभा (1991) में कोकराझार (असम) निवासी सत्येन्द्र नाथ ब्रोमो चौधरी इकलौते लोकसभा सांसद थे। 1998 से 2004 तक संसुमा खुंगगुर बिस्वमुथियारी कोकराझार के स्वतंत्र सांसद थे लेकिन 2009 में बोडो पीपुल्स फ्रंट का प्रतिनिधित्व किया। 2014 और 2019 में कोकराझार के मतदाताओं ने नबा कुमार सरानिया को निर्दलीय के रूप में चुना। कोकराझार, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र है, जहां 2009 को छोड़कर 1977 से लगातार निर्दलीय लोग लोकसभा के लिए चुने गए हैं।

2019 में जीतने वाले निर्दलीय

2019 के लोकसभा चुनाव में अमरावती से निर्दलीय उम्मीदवार नवनीत कौर राणा चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं। बाद में उन पर फर्जी कास्ट सर्टिफिकेट के इस्तेमाल का आरोप लगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट के ऑर्डर को दरकिनार करते हुए उनका एससी दर्जा बरकरार रखा, जिससे अब उनके अमरावती से चुनाव लड़ने का रास्ता साफ है। यह सीट एससी उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। हालांकि, नवनीत ने बाद में बीजेपी जॉइन कर ली और अब वह अमरावती से 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार हैं।

2019 के चुनाव में नबा कुमार सारनिया और नवनीत राणा के अलावा मांड्या (कर्नाटक) से सांसद सुमालता अंबरीश और दादर-नागर हवेली से मोहनभाई देलकर चुनाव जीतने वाले दो अन्य निर्दलीय उम्मीदवार थे। सुमालता अंबरीश के हालांकि, इस चुनाव में लड़ने की संभावना कम है क्योंकि पिछली बार उन्होंने भाजपा के सहयोग पर चुनाव लड़ा था और इस बार पार्टी ने यह सीट जनता दल (सेक्युलर) को दे दी है।

1996 में सबसे ज्यादा प्रत्याशियों की जमानत हुई थी जब्त

अगर चुनाव में खड़े होने वाले उन उम्मीदवारों की बात की जाए जिनकी जमानत जब्त हो गयी थी तो यह संख्या 1996 में सबसे ज्यादा थी। 1996 में 13, 952 उम्मीदवार चुनाव में खड़े हुए थे जिनमें से 12, 688 की जमानत जब्त हो गयी थी। पिछले तीन लोकसभा चुनावों की बात करें तो 2009 के लोकसभा चुनाव लड़ने वालों की संख्या 8070 थी, जिनमें से 6829 की जमानत जब्त हो गयी थी। वहीं 2014 के चुनावों में यह संख्या क्रमशः 8251 और 7005 थी। 2019 के आम चुनावों में 8053 उम्मीदवार मैदान में थे और 6923 की जमानत जब्त हो गयी थी।

पिछले चुनाव में 65 लाख वोटर्स ने नोटा का बटन दबाया था

इसी तरह अगर चुनाव में किसी भी प्रत्याशी को न चुनकर NOTA का बटन दबाने वाले उम्मीदवारों की बात की जाए तो 2019 के लोकसभा चुनावों में, 1.06 प्रतिशत मतदाताओं ने NOTA का बटन दबाया था। यह आंकड़ा 2014 के लोकसभा चुनावों के 1.08 प्रतिशत से कम था। इस चुनाव में सबसे अधिक असम और बिहार में 2.08% लोगों ने NOTA का बटन दबाया था, वहीं सिक्किम में सबसे कम 0.65% लोगों ने NOTA को चुना था।

वहीं, 2014 के आम चुनावों में लगभग 60 लाख मतदाताओं ने NOTA विकल्प चुना था। देश के 59,97,054 मतदाताओं ने EVM पर नोटा बटन दबाया, जो डाले गए कुल वोटों के 1.1 प्रतिशत के बराबर था। NOTA दबाने वाले मतदाताओं का अधिकतम प्रतिशत पुडुचेरी में था, जहां कुल वोटों का 3 प्रतिशत नोटा था। विस्तार से पढ़ने के लिए क्लिक करें: