लोकसभा चुनाव 2024 की सरगर्मी के बीच महंगाई बढ़ने की खबरें आई हैं। खाना खाना और घर बनाना महंगा हो गया है। चुनावी मौसम में यह सरकार के ल‍िए च‍िंता की बात है और इसल‍िए सरकार ने कई कदम भी उठाए हैं, क्‍योंक‍ि कई बार ऐसा हुआ है जब खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों के कारण सरकारों को सत्ता से बाहर होना पड़ा है।

प्याज की बढ़ती कीमतों को मुद्दा बनाकर दिल्ली की सत्ता में आई कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार भी प्याज की वजह से ही गिर गई थी। विधानसभा चुनाव 2013 से पहले प्याज की कीमतें काफी बढ़ गईं थीं। भाजपा ने प्याज की बढ़ती कीमतों को मुद्दा बनाया। जिसके बाद दिसंबर 2013 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 15 साल बाद हार गई थी।

महंगी हुई शाकाहारी थाली

गुरुवार को एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शाकाहारी थाली अब महंगी हो गई है। मार्च में थाली की कीमत 7% बढ़कर 27.3 रुपये हो गई है जबकि मार्च 2023 में यह 25.5 रुपये थी। दूसरी ओर, क्रिसिल रेटिंग एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी अवधि में मांसाहारी थाली की कीमत 59.2 रुपये से 7% कम होकर 54.9 रुपये हो गई। हालांकि, फरवरी की तुलना में ब्रॉयलर चिकन की कीमतों में 5% बढ़ोतरी के कारण मार्च में मांसाहारी थाली की कीमत 2% बढ़ गई थी।

क्‍यों महंगी हुई थाली?

क्र‍िस‍िल की रोटी चावल रेट र‍िपोर्ट के मुताब‍िक मार्च महीने में प्याज, टमाटर और आलू की कीमतें बढ़ने से शाकाहारी थाली सालाना आधार पर सात फीसदी तक महंगी हो गई। ‘क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिसिस’ ने अपनी मासिक ‘रोटी चावल दर’ रिपोर्ट में कहा कि पोल्ट्री की कीमतें घटने से पिछले महीने मांसाहारी थाली की लागत में सात फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक, आपूर्ति कम होने और कम बेस रेट के कारण प्याज का दाम सालाना आधार पर 40 फीसदी, टमाटर का दाम 36 फीसदी और आलू का दाम 22 फीसदी बढ़ने से शाकाहारी थाली महंगी हो गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, कम आपूर्ति के कारण एक साल पहले की तुलना में चावल का दाम भी 14 फीसदी और दालों की कीमतें 22 फीसदी बढ़ गई हैं। वहीं मांसाहारी थाली की कीमत एक साल पहले इस दौरान 59.2 रुपए थी जो पिछले महीने घटकर 54.9 रुपए हो गई। हालांकि, फरवरी के 54 रुपए प्रति थाली की तुलना में इसकी कीमत अब भी अधिक है। दरअसल ब्रॉयलर मुर्गे की कीमतों में 16 फीसदी की गिरावट आने से सालाना आधार पर मांसाहारी थाली की लागत घटी है। हालांकि, फरवरी की तुलना में मार्च में रमजान के महीने की शुरुआत होने और अधिक मांग से ब्रॉयलर की कीमतें पांच फीसदी बढ़ गयी है।

शाकाहारी और मांसाहारी थाली में क्या-क्या शामिल?

अब आप सोच रहे होंगे कि इन थालियों में किन-किन चीजों को शामिल किया गया है जिससे इनकी कीमत निकलकर आई है। क्रिसिल ने रिपोर्ट तैयार करते समय शाकाहारी थाली में रोटी, प्याज, टमाटर, चावल, आलू, दाल, दही और सलाद को शामिल किया है। इसका मतलब यह है कि शाकाहारी थाली में इन सारी चीजों को मिलाकर जो एक थाली की कीमत बैठी वह मार्च 2024 में 27.3 रुपए थी।

इसी तरह जो आइटम्स शाकाहारी थाली में शामिल किए गए थे, वही सारे मांसाहारी थाली में भी शामिल किए गए। फर्क बस इतना है कि इसमें चिकन (ब्रॉयलर) को जोड़ दिया गया है, जिसके चलते इसकी कीमत भी शाकाहारी थाली के मुकाबले बढ़कर 54.9 रुपए हो गई। दिल्ली के बाजार में प्रमुख खाद्य पदार्थों के रिटेल प्राइज कुछ इस प्रकार हैं।

खाद्य पदार्थ 3 मार्च को रिटेल कीमत (Rs/kg)3 अप्रैल को रिटेल कीमत (Rs/kg)दाम में बदलाव (प्रतिशत)
सोया तेल 122 131 7.4
सरसों तेल 133 1394.5
मूंगफली का तेल 1331394.5
मूंग दाल 1221252.5
मसूर दाल 85872.4
तूर (अरहर) दाल 1571570
चावल 40400
आलू 17 25 47.1

इनपुट कॉस्‍ट घटने के बावजूद कंपनियों ने बढ़ाए सीमेंट के दाम

वहीं, दूसरी ओर सीमेंट कंपनियों ने भी सीमेंट के दाम बढ़ा दिये हैं जिसके कारण घर बनाना भी महंगा हो गया है। सीमेंट की 50 किलोग्राम की बोरी के दाम 10-40 रुपये तक बढ़ा दिये गए हैं। जिसके चलते आम आदमी के लिए घर बनाना भी महंगा हो गया है। उत्तर भारत में सीमेंट के दाम 10-15 रुपये प्रति बोरी बढ़ गए हैं। मध्य भारत में यह रेट 30-40 रुपये प्रति बोरी बढ़ा है। वही, पश्चिम भारत में यह रेट 20 रुपये प्रति बोरी बढ़ा है।

हाल ही में सीमेंट बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले लौह अयस्क के दामों में 12%, कोयले के दामों में 23% की कमी आई है। वहीं, डीजल के दाम भी 2 रुपये कम हुए हैं। इसके साथ ही वित्त वर्ष 2023-24 में कंपनियों का मार्जिन भी 3% से बढ़कर 16% हो चुका है। कंपनियों की प्रति टन लागत भी 50 रुपये तक घट चुकी है। ऐसे में सीमेंट के दाम बढ़ने के कारण अप्रत्याशित हैं। चुनावी साल में इंफ्रास्ट्रक्चर के नए प्रोजेक्ट साल की अंतिम तिमाही में तीन गुना तक बढ़ चुके हैं।

महंगाई रोकने के लिए किए गए सरकार के प्रयास

केंद्र सरकार ने खाद्य पदार्थों की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए कई उपायों की घोषणा की है। जैसे एक साल के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाने, मार्च 2025 तक अधिकांश दालों और खाद्य तेलों के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति देने, इथेनॉल बनाने के लिए गन्ने के रस के डायवर्जन को रोकने जैसे कई उपाय हैं।

खाद्य पदार्थों की सस्ती कीमतों पर उपलब्धता के लिए सरकार ‘भारत’ ब्रांड के तहत पैकेज्ड गेहूं, चावल, आटा, चना दाल भी बेच रही है। दरों को कम करने के लिए दुकानदारों द्वारा गेहूं और चावल के भंडारण पर भी नजर रखी जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति प्रबंधन इस बात पर निर्भर करेगा कि रबी की फसल कैसी होती है और मौसम कैसा है। अप्रैल से जून के बीच तापमान में अत्यधिक बढ़ोत्तरी भी कीमतों को बढ़ाने में भूमिका निभा सकती है, खासकर सब्जियों और खराब होने वाले खाद्य पदार्थों की।

नारायणमूर्ति को याद आये वो 120 घंटे जब रहना पड़ा था भूखा

महंगाई कम करने की कोश‍िशों के साथ सरकार गरीबों तक खाना पहुंचाने के ल‍िए भी कदम उठा रही है। जैसे- पांच क‍िलो अनाज मुफ्त देना, स्‍कूलों में बच्‍चों को भोजन देना आद‍ि। इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने सरकार के इन कार्यक्रमों का ज‍िक्र करते हुए सरहाना की और एक न‍िजी अनुभव भी सुनाया। उन्‍होंने कहा, “आपमें से अधिकांश ने भूख का अनुभव नहीं किया है। मैंने किया है। जब मैं यूरोप में और बुल्गारिया, तत्कालीन यूगोस्लाविया और वर्तमान सर्बिया के बीच निश नामक स्थान पर हिचहाइकिंग कर रहा था तो मुझे लगातार 120 घंटों तक भूखा रहना पड़ा था।”

नारायणमूर्त‍ि ने WHO मुख्यालय में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन द्वारा आयोजित एक विशेष कार्यक्रम ‘खाद्य सुरक्षा में उपलब्धियां: सतत विकास लक्ष्यों की ओर भारत के कदम’ में अपने संबोधन के दौरान यह वाकया याद क‍िया।