वंशवाद की बेल समग्र रूप से भारतीय राजनीति की एक समस्या है। परिवार की उपमा भारत की राजनीति में अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी है, जो एक अत्यंत पितृसत्तात्मक स्वरूप का अनुसरण करती है। राजनेता अपने मतदाताओं के साथ संबंधों को परिभाषित करने की रणनीति के रूप में परिवार की अवधारणा का उपयोग करते हैं। परिणामस्वरूप, प्रत्यक्ष पारिवारिक संबंध भारत में प्रचलित वंशवादी राजनीति का एकमात्र प्रकार नहीं हैं। परिवार की अवधारणा हमेशा से भारत में राजनीति में एक स्थायी और प्रमुख विशेषता रही है। कांग्रेस हमेशा से वंशवादी राजनीति के साये से घिरी रही है। उसके राजनीतिक विरोधी, खासकर भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस मुक्त भारत की मांग करती रही है। इन आरोपों का उद्देश्य कांग्रेस को एक सामंती पार्टी के रूप में पेश करना है—यानी गांधी परिवार की राजनीतिक जागीर। लेकिन हकीकत यह है कि अब भाजपा और अन्य क्षेत्रीय दल भी परिवारवाद और वंशवाद की पूरी तरह जकड़ में हैं। सरोकार की एक निगाह…

साल 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत के साथ ही, मीडिया के एक वर्ग ने वंशवादी राजनीति के अंत की घोषणा कर दी थी। 2019 के आम चुनाव शुरू होने से ठीक पहले प्रियंका गांधी के राजनीति में प्रवेश के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि वंशवादी राजनीति अभी खत्म नहीं हुई है। लेकिन, क्या वंशवादी राजनीति केवल कांग्रेस की समस्या है? पिछले कुछ वर्षों के लोकसभा के आंकड़ों से पता चलता है कि भाजपा के वंशवादी सांसदों की संख्या कांग्रेस के वंशवादी सांसदों की संख्या के करीब रही है। एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 2009 में, कांग्रेस से चुने गए सांसदों में वंशवादी राजनेता 12 फीसद थे जबकि भाजपा के लिए यह 11 फीसद था। 1999 में, कांग्रेस के लिए यह आठ फीसद और भाजपा के लिए छह फीसद था।

वैसे सच तो आज भी यही है कि कांग्रेस का राजनीतिक प्रभाव भले ही कम हो गया हो, लेकिन उसके वंशवादी विधायकों (सांसद, विधायक और विधान पार्षद) की हिस्सेदारी 33.25 फीसद है। विधायकों की संख्या लगभग तीन गुना होने के बावजूद, भाजपा का हिस्सा 18.62 फीसद है। क्षेत्रीय राजनीति में परिवारों का दबदबा है। विभिन्न दलों के 149 परिवारों में एक से ज्यादा वंशवादी विधायक हैं।

प्रमुख राजनीतिक दलों में वंशवाद, समाजवादी पार्टी सबसे आगे, AAP में सबसे कम, जानिए भाजपा-कांग्रेस का क्या है हाल

राजनीति का वंशवाद फिर चर्चा में है। बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं तो सत्तारूढ़ गठबंधन ने रामविलास पासवान के बेटे चिराग भी राज्य में मुकाम बनाना चाहते हैं। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के पिता भी जनप्रतिनिधि रहे हैं। कुनबों पर आधारित दलों के प्रमुखों ने अपनी बहू, भाभी और पत्नी तक को टिकट बांट दिए हैं। विधायकों, सांसदों, मंत्रियों और पार्टी प्रमुखों के बेटे और बेटियां, सभी पार्टी में शामिल हैं। फिर विधानसभा और संसद के लिए टिकट पा रहे हैं। राज्य दर राज्य, पार्टी दर पार्टी, यह एक प्रवृत्ति है जो पैमाने और दायरे दोनों में व्यापक हो रही है।

हालांकि, इसमें एक विरोधाभास है। भाजपा, जो केंद्र में तीसरी बार सत्ता में है, तथा जिसके राज्यों में लगातार बढ़ते प्रभाव के कारण अब उसके 2,078 विधायक हैं, उनमें से 18.62 फीसद विधायक वंशवादी हैं। इसके ठीक विपरीत कांग्रेस का हिस्सा लगभग दोगुना है। लोकसभा में कांग्रेस सांसदों की संख्या 99 है, और इसकी सत्ता सिर्फ तीन राज्यों में ही है। यहां कांग्रेस के 857 विधायक हैं। इनमें से 33.25 फीसद विधायक वंशवादी हैं। यह चलन इसके शीर्ष से ही शुरू हो गया है, जहां संसद में गांधी परिवार से तीन सांसद हैं।

क्षेत्रीय दलों में यह प्रवृत्ति और भी मजबूत है। राजग में, उसके सहयोगी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देसम पार्टी के 163 विधायकों में से 51 (31.28%) और जनता दल (एकी) के 81 विधायकों में से 28 (34.57%) वंशवादी हैं।

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इंडिया गठबंधन में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के 158 विधायकों में से 55 (34.81%), बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के 268 विधायकों में से 33 (12.31%) और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की द्रमुक के172 विधायकों में से 30 (17.44%) विधायक हैं। वाईएसआरसीपी के 56 विधायकों में से 15 (26.78%), वंशवादी हैं।

वेबसाइटों पर 20 सितंबर तक संशोधित किए गए आंकड़ों, चुनावी हलफनामों और चुनाव आयोग की रपट के विश्लेषण, के अनुसार जो सांसद, विधायक और विधान पार्षद शामिल हैं; उनमें परिवारों का तात्पर्य प्रत्यक्ष वंशज या विवाह से जुड़े रिश्तेदारों से है। जैसे बेटे-बेटियां, माता-पिता, भाई-बहन, ससुराल वाले, चचेरे भाई-बहन, चाचा-भतीजे।

भाजपा के पास यह तर्क देने के पर्याप्त कारण हैं कि उसके पास ज्यादा समान अवसर हैं। उसके नेता इस बात पर जोर देते हैं कि नेतृत्व वंशवादी नहीं है। हालांकि, एक प्रवृत्ति इस पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा सकती है जो हमेशा भाई-भतीजावाद और परिवारवाद के खिलाफ खड़ी रहती है। जब बात ऐसे परिवारों की आती है, जिनके एक से अधिक सदस्य वर्तमान में विधानसभाओं या संसद में हैं, तो भाजपा, जिसके पास समग्र राजनीतिक हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा है, शीर्ष क्रम पर है।

वास्तव में, तमिलनाडु से लेकर कश्मीर, महाराष्ट्र से लेकर ओड़ीशा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर तक के शीर्ष दलों में 149 परिवारों के एक से अधिक सदस्य वर्तमान में राज्य विधानसभाओं या संसद के दोनों सदनों में हैं, जिससे कुल सदस्यों की संख्या 337 हो जाती है।

कुल मिलाकर यह संख्या पांच राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और उत्तराखंड की विधानसभाओं की संयुक्त संख्या के लगभग बराबर है। इस सूची में शामिल हैं: छह केंद्रीय मंत्री, पांच केंद्रीय राज्य मंत्री, नौ मुख्यमंत्री, सात उपमुख्यमंत्री, 35 राज्य मंत्री और दो विधानसभा अध्यक्ष। इन 149 परिवारों में से 23 के विधानसभाओं या संसद में दो-दो से ज्यादा सदस्य हैं।

इन परिवारों से भाजपा 84 विधायकों के साथ शीर्ष पर है, जबकि कांग्रेस 73 विधायकों के साथ दूसरे स्थान पर है। कुल मिलाकर, इन विधायकों में पिता और पुत्रों के 49 जोड़े, पिता और पुत्रियों के 14 जोड़े, माता और पुत्रों के सात जोड़े और माता और पुत्रियों के चार जोड़े शामिल हैं। 80 भाई-बहन और 21 विवाहित जोड़े हैं। इस सूची में 26 चचेरे भाई-बहन, चाचा-भतीजों के 17 जोड़े, और दो चाची-भतीजे भी शामिल हैं।

इन 149 परिवारों में 27 ऐसे हैं जिनके सदस्य पूरी तरह से भाजपा से जुड़े हुए हैं, जबकि 23 ऐसे हैं जिनके विधायक भाजपा या अन्य दलों के हैं या फिर निर्दलीय हैं।

इसी प्रकार, 32 परिवार पूरी तरह से कांग्रेस से जुड़े हुए हैं, जिनमें से पांच अन्य दलों के साथ विधायकों को साझा कर रहे हैं। दिग्गजों में शामिल हैं: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उनके विधायक बेटे पंकज सिंह; राज्यसभा सांसद और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और उनके बेटे प्रियांक खरगे, कर्नाटक के मंत्री और विधायक; महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके बेटे श्रीकांत शिंदे, लोकसभा सांसद; और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके छोटे बेटे यतींद्र एमएलसी हैं।

सूची में शीर्ष पर आने वाले प्रसिद्ध परिवार हैं: गांधी (कांग्रेस), सिंधिया (भाजपा), नायडू (तेदेपा) और दिवंगत मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव (सपा), लालू प्रसाद (राजद), शरद पवार (राकांपा गुट), एचडी देवेगौड़ा जद (सेकु), वाईएस जगमोहन (वाईएसआरसीपी), के चंद्रशेखर राव (बीआरएस) और बीएस येदियुरप्पा (भाजपा) तथा एमके स्टालिन (द्रमुक) के परिवार।

वास्तव में, वर्तमान विधायकों की सूची में अखिलेश के परिवार के सबसे अधिक आठ सदस्य हैं: पांच लोकसभा में, एक राज्यसभा में और दो विधायक-सभी सपा से।

फिर कर्नाटक के चार जारकीहोली बंधु भी हैं जो कई दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं: बालचंद्र और रमेश भाजपा के विधायक हैं; सतीश कांग्रेस के विधायक और राज्य मंत्री हैं। उनकी बेटी प्रियंका पार्टी की सांसद हैं, और लखन एक स्वतंत्र विधायक हैं।

पूर्वोत्तर के संगमा समुदाय का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। मेघालय के मुख्यमंत्री कानराड संगमा, जो पूर्व लोकसभा अध्यक्ष दिवंगत पीए संगमा के पुत्र हैं, की पत्नी, चाचा और बहनोई भी विधायक हैं। दो अन्य मामले भी हैं जो ऊपर सूचीबद्ध मानदंडों पर खरे नहीं उतरते, लेकिन फिर भी महत्त्वपूर्ण हैं-वर्तमान विधायक, जो वर्तमान राज्यपालों से संबंधित हैं। गोवा के राज्यपाल पुसापति अशोक गजपति राजू की बेटी पुसापति अदिति विजयलक्ष्मी गजपति राजू, विजयनगरम से तेलगू देसम विधायक हैं; और तेलंगाना के राज्यपाल जिष्णु देबबर्मन की भतीजी कृति देवी देबबर्मन, त्रिपुरा पूर्व से भाजपा की लोकसभा सांसद हैं।

कुल मिलाकर, 5,294 मौजूदा जनप्रतिनिधियों (सांसद, विधायक और विधान परिषद सदस्य) में से 989 परिवारों के 1174 वंशज हैं-दूसरे शब्दों में, वे एक राजनीतिक वंश से जुड़े हैं।

समग्र आंकड़ा देखें

भाजपा के 2,078 जन प्रतिनिधियों (सांसद, विधायक और विधान परिषद सदस्य) की सूची में 387 वंशवादी (18.62%) लोगों में से कम से कम 83 अन्य पदों पर भी हैं, जैसे मंत्री या पार्टी पदाधिकारी। भाजपा की सूची में तीन विधानसभा अध्यक्षों-महाराष्ट्र के राहुल नार्वेकर, उत्तराखंड की ऋतु खंडूरी और छत्तीसगढ़ के रमन सिंह के अलावा कई मंत्री और पदाधिकारी शामिल हैं। नार्वेकर राकांपा विधान परिषद सदस्य रामराजे नाइक-निंबालकर के दामाद हैं। खंडूरी पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की बेटी हैं और रमन सिंह के बेटे पूर्व सांसद हैं।

उदाहरण के लिए, दिल्ली में तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों-मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज की विरासत को उनके बच्चे हरीश खुराना (विधायक), प्रवेश वर्मा (विधायक और मंत्री) और बांसुरी स्वराज (सांसद) आगे बढ़ा रहे हैं।

कांग्रेस के 857 विधायकों में से 285 (33.26%) वंशवादी हैं। कांग्रेस की सूची पूरे देश में है, जहां परिवारों ने अपने क्षेत्रों में पार्टी का नाम और झंडा जीवित रखा है। उदाहरण के लिए, असम के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, हितेश्वर सैकिया और तरुण गोगोई के वंशज, गुवाहाटी और दिल्ली में पार्टी के नए चेहरे हैं। गोगोई के बेटे गौरव लोकसभा में पार्टी के उपनेता हैं और सैकिया के बेटे देवव्रत राज्य में विपक्ष के नेता हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पूर्व केंद्रीय मंत्री एस जयपाल रेड्डी के भाई के दामाद हैं।

अन्य प्रमुख कांग्रेसी वंशवादी जो वर्तमान में विधायक हैं, उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट के पुत्र सचिन पायलट (राजस्थान), पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुत्री अनुपमा रावत (उत्तराखंड), पूर्व मुख्यमंत्री अमरसिंह चौधरी के पुत्र तुषार अमरसिंह चौधरी (गुजरात), विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र सिंह हुड्डा (हरियाणा) और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह (हिमाचल) शामिल हैं।

अन्य पार्टियां मुख्य रूप से क्षेत्रीय सत्ता पर काबिज परिवारों से संचालित हैं, जैसे कि जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार, तथा बंगाल में ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक। कुल मिलाकर, विभिन्न सदनों में 1,174 राजवंशों-पूर्व और वर्तमान विधायकों के रिश्तेदारों – में कम से कम 21 केंद्रीय मंत्री, 13 मुख्यमंत्री, आठ उपमुख्यमंत्री, 129 राज्य मंत्री, चार विधानसभा अध्यक्ष और विभिन्न सदनों में अपनी पार्टियों के 18 नेता हैं।