1950 के दशक के मध्य में जब पद्मा चिब (85) कलकत्ता से जहाज के जरिए 26 दिनों की यात्रा के बाद अपने पति के साथ जापान पहुंची, तो उन्हें अपने ससुर का एक पत्र मिला जो उस समय चंडीगढ़ में थे। इस पत्र के जरिए उन्हें दिल्ली में केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सहकारी हाउसिंग सोसाइटी बनाए जाने के बारे में बताया गया था। उनके पति अशोक सेन चिब उस समय विदेशी सेवा में थे और इसलिए सोसायटी की सदस्यता के लिए आवेदन करने के लिए पात्र थे। इसके जरिए उनको शांति पथ के करीब एक प्लॉट मिल सकता था।
चिब कहती हैं, “उस वक्त प्लॉट खरीदना हमारी प्राथमिकताओं में बिल्कुल भी नहीं था। लेकिन हमने सोचा कि भविष्य में परिवार के लिए निवेश करना एक अच्छा विचार है।” उनके पति ने फॉर्म भरा और वापस भारत भेज दिया। उसके बाद, उनके ससुर ने उस जमीन को खरीदने के लिए शुरुआती पेमेंट किया, जो अब शांति निकेतन बन गई है और जहां आज उनका घर है।
चाणक्यपुरी के एन्क्लेव के पास स्थित शांति निकेतन की कॉलोनी, कुछ सरकारी कर्मचारियों के अनुरोध पर उनकी सेवानिवृत्ति के बाद के वर्षों के लिए रियायती दर पर कुछ भूमि आवंटित करने के लिए बनाई गई थी। इसके बाद ज्यादा से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों ने यहां जमीन खरीदने में दिलचस्पी दिखाई और बाद में वहां पर जगह उपलब्ध न होने के कारण प्रोजेक्ट बसंत गांव तक चला गया, जो बाद में वसंत विहार की कॉलोनी बन गई।
शांति निकेतन के इतिहास पर रिसर्च कर रहीं चिब ने बताया कि शुरुआती विचार गृह मंत्रालय के तीन-चार अधिकारियों द्वारा प्रस्तावित था। उन्होंने बताया कि इस विचार को खासतौर पर, उन अधिकारियों का समर्थन मिला जो विभाजन के बाद दिल्ली चले गए थे और अपनी जमीन और संपत्ति गंवा चुके थे। इसके बाद, ग्रुप को केंद्र सरकार के अधिकारियों की सहकारी आवास समिति बनाने का विचार आया और शांति पथ से सटे बंजर जमीन के बड़े हिस्से की चर्चा की गई।
चिब कहती हैं, “बहुत से अधिकारी इसको लेकर खुश नहीं थे क्योंकि यह जगह शहर से काफी दूर थी। लेकिन चाणक्यपुरी के राजनयिक एन्क्लेव के रूप में विकसित होने के बाद, कई लोग यहां पर प्लॉट में निवेश करने को राजी हो गए।” उन्होंने बताया कि उस समय, यहां जमीन खरीदने में दिलचस्पी रखने वाले अधिकांश अधिकारी अपनी सेवानिवृत्ति की आयु के करीब थे और अपनी बाकी जिंदगी के लिए इनकम का जरिया तलाश रहे थे।
शांति निकेतन में सरकारी कर्मचारियों द्वारा 192 प्लॉट खरीदे गए। यहां जमीन कम होने पर सहकारी समिति का प्रोजेक्ट पास के बसंत गांव में चला गया। मिल्ली मुरगई (66), जिनके पिता ने 1960 के दशक की शुरुआत में वसंत विहार में जमीन खरीदी थी, ने कहा कि उनके पास शांति पथ के पास एक छोटी पहाड़ी पर जाने की ज्वलंत यादें हैं। उनके पिता ने दूर से इशारा करते हुए कहा था कि वह वहां पर अपना घर बनाएंगे। वसंत विहार वेलफेयर एसोसिएशन की सचिव मुरगई बताती हैं, “उस वक्त वहां एक भी पेड़ नहीं था। उस पीढ़ी के लिए घर बनाना सबसे बड़ी उपलब्धि थी।”