पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा 26 नवंबर 2008 को मुंबई में कई जगहों पर किए गये हमले में 166 लोगों की मौत हुई थी और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। उस बर्बर आतंकवादी घटना के करीब 17 साल बाद कांग्रेस नेता एवं पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम के मुंबई हमले से जुड़े बयान पर बहस छिड़ गयी है। सवाल उठ रहे हैं कि तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई क्यों नहीं की?
चिदंबरम के बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस नीत सरकार की नीयत पर सवाल उठाए हैं। बीजेपी आरोप लगा रही है कि कांग्रेस का आतंकवाद को लेकर रुख नरम था। इस पूरे विवाद को समझने की कोशिश करते हैं। जानते हैं कि पी चिदंबरम का पूरा बयान क्या है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी और सबसे बड़ी बात- 26/11 आतंकी हमले के बाद का पूरा सच क्या है?
पी. चिदंबरम ने 26/11 क्या बोला?
मनमोहन सिंह सरकार में गृह मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में मुंबई हमले के बाद की स्थितियों पर बात की। चिदंबरम ने इंटरव्यू में कहा,
“काफी चर्चा के बाद निष्कर्ष यह निकला था कि पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई नहीं की जाएगी। यह निष्कर्ष काफी हद तक MEA और IFS से प्रभावित था। यही कहा गया था कि हमें स्थिति पर सीधे प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए बल्कि कूटनीतिक तरीके अपनाने चाहिए। उस समय यही निष्कर्ष निकला था और मुझे भी यही बताया गया। लेकिन याद रखिए उस समय कई देश हमें दिल्ली आकर कह रहे थे कि युद्ध शुरू मत करो। उदाहरण के लिए उस समय की अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस दिल्ली मुझसे और प्रधानमंत्री से मिलने आई थीं। मुझे कार्यभार संभाले हुए दो से तीन दिन ही हुए थे। तब उन्होंने कहा था कि आप कृपया अपनी कोई प्रतिक्रिया ना दें। मैंने तब यह कहा था कि ये फैसला तो सरकार लेगी।”
पीएम मोदी की क्या प्रतिक्रिया थी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिदंबरम के बयान को लेकर कांग्रेस को घेरा। बुधवार को नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उद्घाटन के दौरान पीएम मोदी ने कहा, “2008 में भारत की आर्थिक राजधानी को निशाने पर लिया गया था लेकिन उस समय की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने आतंकवाद के सामने घुटने टेकने का संदेश दिया। एक कांग्रेस नेता जो भारत के गृह मंत्री भी रहे, उन्होंने खुद दावा किया कि 26/11 के बाद भारत की सेना पाकिस्तान पर हमला करने को तैयार थी, देश भी यही चाह रहा था लेकिन अगर इस कांग्रेस नेता की बात को सही मानें तो सरकार ने किसी दूसरे देश के दबाव की वजह से पाकिस्तान पर हमला नहीं किया। कांग्रेस को जवाब देना ही चाहिए कि आखिर किस अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से ऐसा फैसला हुआ। कांग्रेस की इसी कमजोरी ने आतंकियों को बढ़ावा दिया और भारत की सुरक्षा को कमजोर किया।”
पीएम मोदी के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए पी चिदंबरम ने कहा कि प्रधानमंत्री उनके बयान को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। इस मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस के बीच वाक युद्ध शुरू हो चुका है।
26/11 आतंकी हमला क्या था?
26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान से 10 आतंकी मुंबई में समुद्र के रास्ते दाखिल हुए थे। ताज महल पैलेस, ओबेरॉय ट्राइडेंट, CST स्टेशन और नरीमन हाउस जैसे हाई प्रोफाइल लोकेशन्स को निशाने पर लिया गया। सभी आतंकी लश्कर के बताए गए थे और उनकी तरफ से अंधाधुंध गोलीबारी हुई। उस गोलीबारी में 166 लोगों ने अपनी जान गंवाई और 300 से ज्यादा घायल बताए गए। 60 घंटे से भी ज्यादा लंबी चली कार्रवाई के बाद सभी हमलावरों को मौत के घाट उतारा गया था और अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा गया।

प्रणब मुखर्जी की किताब में क्या बताया गया?
प्रणब मुखर्जी की लिखी किताब The Coalition Years के पेज नंबर 117 पर 26/11 आतंकी हमले का जिक्र मिलता है। प्रणब मुखर्जी उस समय देश के विदेश मंत्री थे। मुंबई में आतंकी हमला जारी था, पाकिस्तान के तब के विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरेशी भारत दौरे पर थे। प्रणब मुखर्जी के निमंत्रण पर ही कुरेशी भारत दौरे पर आए थे। पहले दिन नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में प्रणब मुखर्जी को शाह मेहमूद कुरेशी के लिए डिनर का आयोजन करना था। लेकिन तब पाकिस्तान के विदेश मंत्री का अपने देश के हाई कमिश्नर के साथ एक कार्यक्रम पहले से ही तय था। ऐसे में उनकी तरफ से कहा गया कि वे अगले दिन चंडीगढ़ में लंच कर सकते हैं। प्रणब मुखर्जी ने इस डिमांड को मान लिया था।
अगले दिन चंडीगढ़ में एक राउंड टेबल डिस्कशन होना था, पाकिस्तान से आए खेती करने वाले किसानों के प्रतिनिधिमंडल को भी शामिल होना था। अगले दिन की तैयारी पूरी हो चुकी थी, प्रणब मुखर्जी भी उस मुलाकात के लिए उत्साहित थे। लेकिन 26 नवंबर को रात 9 बजे प्रणब मुखर्जी के स्टाफ के सदस्यों ने बताया कि मुंबई में आतंकी हमला हो गया है। उस समय प्रणब अपने ऑफिस में ही मौजूद थे, वे देर तक काम करने के आदि थे। जैसे ही यह खबर पता चली, उन्होंने तुरंत टीवी ऑन किया और वे आतंकी हमला देख स्तब्ध हो गए।
प्रणब के मुताबिक उस हमले के तुरंत बाद उन्होंने फैसला किया कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री से कोई मुलाकात नहीं होगी। उनके विदेश सचिव ने एक बयान लिखकर तैयार रखा था लेकिन चुनौती यह थी कि उस बयान को पाकिस्तान के विदेश मंत्री तक कैसे पहुंचाया जाए। असल में पाकिस्तान के विदेश मंत्री महिला पत्रकारों की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में व्यस्त थे। उस समय स्थिति को देखते हुए प्रणब मुखर्जी ने अपनी एक जानकार पत्रकार के जरिए ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री तक ये इनपुट पहुंचाया कि भारत के विदेश मंत्री उनसे तुरंत बात करना चाहते हैं।

जैसे ही वो कुरेशी फोन लाइन पर आए, प्रणब मुखर्जी ने कहा,
“मंत्री जी ऐसी स्थिति में अब भारत में आपके रहने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता है। मेरा सुझाव कि आप तुरंत ही देश छोड़ दें। मेरा आधिकारिक एयरक्राफ्ट आपको वापस ले जा सकता है लेकिन अच्छा यही रहेगा कि आप जो भी फैसला लें, वो जल्दी लें।”
प्रणब मुखर्जी से बातचीत के बाद पाकिस्तानी हाई कमिश्नर ने कहा कि पाकिस्तानी एयरफोर्स का विमान ही उन्हें वापस लेकर जाएगा।
एक तरफ पाकिस्तान के विदेश मंत्री को सुरक्षित उनके देश भेजा गया तो वहीं दूसरी तरफ कूटनीतिक तरीके से ही पड़ोसी मुल्क को घेरने की तैयारी हुई। तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी की तीन दिनों के भीतर 100 से ज्यादा देशों के विदेश मंत्री से बात हुई। सभी ने उस आतंकी हमले की निंदा की और भारत के साथ संवेदना दिखाई। प्रणब ने जानबूझकर इजरायल से तब समर्थन नहीं मांगा था, तर्क दिया गया कि उनके बात करने की वजह से 54 इस्लामिक देशों से मिलने वाला समर्थन वापस हो सकता था।
The Coalition Years किताब में प्रणब मुखर्जी ने बताया है कि वे पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार नहीं थे, वे उस विचार से सहमत नहीं थे। प्रणब ने एक बयान में कहा था,
“मुझे नहीं लगता कि विदेशी रिश्तों में रोमांटिसिज़्म का कोई स्थान है। इसी तरह, मैं देश की विदेश नीति में किसी भी प्रकार के एडवेंचरिज़्म का भी समर्थन नहीं करता हूं। वाद ही सभी समस्याओं के समाधान का एकमात्र तरीका है। दुख इस बात है कि यह प्रक्रिया पाकिस्तानी आतंकियों के हमले की वजह से बाधित हो चुकी है।”
प्रणब मुखर्जी ने एक बार नहीं कई बार इस बात पर जोर दिया कि 26/11 आतंकी हमले के बाद वे नहीं चाहते थे कि भारत की तरफ से कोई सैन्य कार्रवाई हो। वे कूटनीति के सहारे ही आगे बढ़ना चाहते थे। उस समय संसद में भी एक बयान में उन्होंने बताया था- हम उत्तेजित नहीं हैं और ना ही हमारा उत्तेजित होने का कोई इरादा है। हमें आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मुहिम छेड़नी होगी। ये कोई भारत-पाकिस्तान का मुद्दा नहीं है, यह तो ग्लोबल टेररिज्म का मुद्दा है।
मनीष तिवारी की किताब 10 Flashpoints 20 Years
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी की किताब 10 Flashpoints 20 Years वर्ष 2021 में प्रकाशित हुई। इस किताब में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर विस्तार से बात की गई है। इस किताब में 26/11 आतंकी हमले पर एक पूरा अध्याय है। मनीष तिवारी ने किताब में बताया है कि तत्कालीन कांग्रेस नीत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई क्यों नहीं की। मनीष तिवारी के अनुसार निम्न पाँच कारणों से मनमोहन सरकार ने सैन्य हमला न करने का निर्णय लिया था।
पहला कारण- अगर भारत हमला करता तो ये एक बार फिर सिर्फ ‘भारत-पाकिस्तान’ का मुद्दा बनकर रह जाता। अगर ऐसा कोई भी हमला किया जाता, मामला सीधे अंतरराष्ट्रीय हो जाता और दुनिया सीधे शांति स्थापित करने की बात करने लगती। उस स्थिति में दोनों भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू पर रखा जाता और पीड़ित और आक्रमणकारी का अंतर धूमिल हो जाता।
दूसरा कारण- भारत की तरफ से ऐसा कोई भी हमला पूरे पाकिस्तान को एकजुट कर देता, हर कोई पाकिस्तानी सेना के साथ खड़ा हो जाता। इस स्थिति में पाकिस्तान की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार कमजोर पड़ जाती।
तीसरा कारण – भारत को लग रहा था कि पाकिस्तान के खिलाफ कोई छोटी स्ट्राइक करने से ज्यादा हासिल नहीं होगा। इसके ऊपर अगर मुरीदके जैसे ठिकानों को निशाने पर लिया भी गया तो वहां पर फिर से आतंकी अपने कैंप्स को कम समय में स्थापित कर लेंगे।
चौथा कारण – आतंकियों के जितने भी कैंप हैं वो अस्पताल और स्कूलों के पास स्थित हैं, ऐसे में किसी भी स्ट्राइक में आम लोगों की जान जाने की ज्यादा संभावना है। अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान इसे भी भारत के खिलाफ मुद्दा बना सकता है।
पाँचवाँ कारण- अगर पाकिस्तान के साथ यु्द्ध छिड़ता तो भारत की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचेगा, देश एक दशक पीछे जा सकता है।

मनीष तिवारी ने किताब में यह भी बताया है कि वह मनमोहन सरकार के पाकिस्तान पर जवाबी सैन्य कार्रवाई न करने के फैसले से सहमत नहीं थे। मनीष तिवारी का मानना था कि भारत को पाकिस्तान के खिलाफ एक छोटी एयर स्ट्राइक करनी चाहिए थी औ पीओके में स्थित आतंकी संगठनों लश्कर और जैश के ठिकानों को ध्वस्त करना चाहिए था। तिवारी ने किताब में लिखा है,
“ऐसी तमाम फोन कॉल्स मौजूद थी जिससे साबित हो रहा था कि आतंकी हमले के दौरान पाकिस्तानी हैंडलर्स के साथ लगातार बात हो रही थी। ऐसे में अगर भारत हमला करता भी तो पाकिस्तान विक्टिम कार्ड नहीं खेल पाता, उसके रोने का कोई फायदा नहीं होता।”
मनीष तिवारी के अनुसार अगर भारत मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान पर छोटी एयर स्ट्राइक करता तो दुनिया को मैसेज जाता कि भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा है और उसने धैर्य दिखाते हुए कभी कड़ी कार्रवाई नहीं की। मनीष तिवारी मानते हैं कि 26/11 हमले को आधार बनाकर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकता था। तिवारी के अनुसार भारत उस समय जवाबी हमला करता तो पाकिस्तान अपना न्यूक्लियर ब्लैकमेलिंग का खेल नहीं खेल पाता। दुनिया को मैसेज जाता कि जवाबी हमला इतना बड़ा नहीं था कि पाकिस्तान सीधे परमाणु धमकी पर उतर जाए।
बराक ओबामा ने अपनी किताब में क्या बताया?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी किताब ‘A Promised Land’ के पहले पार्ट में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के साथ हुई उनकी मुलाकात का जिक्र किया है। यह मुलाकात 26/11 हमले के बाद 2010 में हुई थी। ओबामा कुछ दिनों के भारत दौरे पर आए थे जहां पर उनकी कई नेताओं से मुलाकात हुई। वे मनमोहन सिंह से तो मिले ही, उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लेकर भी अपने विचार रखे। ओबामा ने अपनी किताब में बताया कि उस मुलाकात के दौरान उन्हें मनमोहन सिंह कुछ परेशान दिखे थे। उन्होंने मुंबई आतंकी हमले के बारे में बात की थी।
इस बारे में ओबामा लिखते हैं-
26/11 हमलों के बाद मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई भी ठोक कदम उठाने से खुद को रोका था। लेकिन उनका यही संयम उन्हें राजनीतिक रूप से महंगा भी पड़ा। सिंह ने डर जताया था कि देश में जो मुस्लिम विरोधाी भावना बढ़ रही है, इससे बीजेपी को ताकत मिल रही है। ओबामा के मुताबिक तब डॉक्टर सिंह ने यहां तक कहा था कि धार्मिक और जातीय एकता की अपील किसी को भी आकर्षित कर सकती है। राजनीतिज्ञों के लिए इसे भुनाना इतना मुश्किल नहीं होता, चाहे वो भारत हो या कहीं और।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की किताब का अंश
अब ऊपर दी गई तीनों ही किताबों में एक बात स्पष्ट होती है कि 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद यूपीए की सरकार पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को तैयार नहीं थी। उसने कूटनीति को ही अपना हथियार बनाया था, उसने पाकिस्तान से ही उम्मीद की थी कि वो अपने टैंटर कैंप्स को नष्ट करे और आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करे।
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