भारत से अलग खालिस्तान की मांग आज भी आए दिन यदा-कदा उठती रहती है। खालिस्तान यानी खालसाओं का देश। इस मांग का जिक्र आते ही बंदूक और स्टेनगन-धारियों से घिरे एक कथित ‘संत’ का चेहरा सामने आता है, जो भिंडरांवाले के नाम से चर्चित हुआ। हालांकि खालिस्तान की मांग भिंडरांवाले से बहुत पहले की है। लेकिन खालिस्तानी के लिए सबसे अधिक खूनी संघर्ष भिंडरांवाले के नेतृत्व में हुआ।

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भिंडरांवाले की वजह से ही अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में टैंक घुसा और उसका बदला इंदिरा गांधी की हत्या कर लिया गया। यानी भिंडरांवाला के कारण सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को हुआ, नेहरू-गांधी परिवार को हुआ। लेकिन क्या आपको पता है कि भिंडरांवाले को शुरुआती राजनीतिक और आर्थिक संरक्षण देने का काम भी कांग्रेस ने ही किया था।

जब भिंडरांवाले से मिले संजय गांधी – भारत की राजनीति में भिंडरांवाले का कद इंदिरा के आपातकाल के बाद बढ़ता है। दरअसल आपातकाल के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को देशव्यापी हार का सामना करना पड़ा था। पंजाब में कांग्रेसी जैल सिंह की सत्ता को हटाकर अकाली और जनता पार्टी ने सरकार बनाई थी। कांग्रेस की पंजाब में वापसी के लिए इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी को एक खुरापात सूझी।

उन्होंने राज्य में अकाली को कमजोर करने के लिए कथित ‘सन्तों’ को आगे बढ़ाने की युक्ति निकाली। जैल सिंह और संजय गांधी को पंजाब के चर्चित पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों की तरकीब याद थी, उन्होंने मास्टर तारा सिंह को टक्कर देने के लिए संत फतेह सिंह को खड़ा किया था। संजय इस आजमाए तरीके से पंजाब में एक बार फिर सेंध लगाना चाहते थे।

इसी योजना को अंजाम देने के लिए कांग्रेस नेता जैल सिंह और दरबार सिंह ने भिंडरांवाले को संजय गांधी से मिलाया। पहली ही मुलाकात में संजय को भिंडरांवाले का अक्खड़पन और तीखा तेवर पसंद आ गया। उन्हें अकाली दल को टक्कर देने के लिए माकूल प्यादा मिल गया था।

भिंडरांवाले को पैसा देती थी कांग्रेस – भविष्य की भयावहता से बेखबर कांग्रेस पंजाब में अकाली दल को कमजोर करने के लिए भिंडरांवाले को बढ़ाती रही। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी आत्मकथा में संजय गांधी के दोस्त, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से हुई बातचीत का जिक्र करते हैं। भिंडरांवाले को आर्थिक मदद देने की बात स्वीकार करते हुए कमलनाथ बताते हैं कि, ”हम कभी-कभी उन्हें पैसा भी देते रहते थे। हमने कल्पना भी नहीं की थी कि वे आतंकवाद की राह पर चल निकलेंगे।”