सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार (15 मार्च) को शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) बनाम शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) मामले की सुनवाई हुई। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने एकनाथ शिंदे ग्रुप से पूछा कि आखिर रातों-रात ऐसा क्या हो गया कि तीन साल से खुशी-खुशी चल रहा गठबंधन टूट गया। सीजेआई ने यह सवाल एकनाथ शिंदे ग्रुप के MVA (महाविकास अघाड़ी) से अलग होने कारणों को जानने के लिए पूछा।

सीजेआई ने यह सवाल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के सामने भी उठाया। उन्होंने पूछा कि तीन साथ एक साथ रहने वाले लोगों के बीच अचनाक ऐसा क्या हो गया कि वे रातों-रात अलग हो गए? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “इसका जवाब देना मेरा काम नहीं है। यह एक राजनीतिक बहस है।” सीजेआई ने तुरंत कहा, “आपको खुद से यह सवाल पूछना चाहिए।”

राज्यपाल पर भी उठे सवाल

सीजेआई ने राज्यपाल पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि आप तीन साल से क्या कर रहे थे? राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है? क्या फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए पर्याप्त आधार था?

बेंच ने आगे कहा, “आप सिर्फ इसलिए विश्वास मत के लिए नहीं बुला सकते क्योंकि किसी पार्टी के भीतर मतभेद है। पार्टी के भीतर मतभेद फ्लोर टेस्ट बुलाने का आधार नहीं हो सकता। आप विश्वास मत नहीं मांग सकते। नया नेता चुनने के लिए फ्लोर टेस्ट का होना आवश्यक नहीं है। पार्टी का मुखिया कोई और बन सकता है। राज्यपाल का वहां कोई काम नहीं, जब तक कि गठबंधन के पास संख्या पर्याप्त है। ये सब पार्टी के अंदरुनी अनुशासन के मामले हैं। इनमें राज्यपाल के दखल की जरूरत नहीं है।

कोर्ट ने आगे पूछा, “किस बात ने राज्यपाल को आश्वस्त किया कि सरकार सदन का विश्वास खो चुकी है। राज्यपाल को इन सभी 34 विधायकों को शिवसेना का हिस्सा मानना चाहिए। राज्यपाल के सामने यह फैक्ट था कि 34 विधायक शिवसेना का हिस्सा हैं। अगर ऐसा है तो राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट क्यों बुलाया। इसका एक ठोस कारण बताना चाहिए।”

SG से शायराना अंदाज में बहस

शिंदे गुट के अचानक एमवीए से निकलने पर संदेह व्यक्त करते हुए सीजेआई ने कहा कि अगर चुनाव होने के एक महीने बाद यह होता तो बात अलग है। तीन साल आप साथ रहते हैं और अचानक एक दिन 34 लोगों का ग्रुप कहता है कि असंतोष है।

इसके बाद सीजेआई और एसजी मेहता के बीच शायराना अंदाज में बहस हुई। मेहता ने कहा, ऐसी स्थिति के लिए उर्दू में एक बहुत अच्छी पंक्ति हैं, “मैं चुप रहा तो और गलतफहमियां बढ़ीं… वो भी सुना है उसने जो मैंने कहा नहीं।”

जवाब में सीजेआई ने कहा, जिसे आप “वो भी सुना उसने जो मैंने कहा नहीं” कहते हैं, उसे ही कानून की भाषा में हम Reading Between The Lines कहते हैं।

बगावत से लेकर पार्टी का नाम और निशान छिनने तक

पिछले साल जब महाराष्ट्र में एमवीए की सरकार थी। उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री थे। उसी दौरान शिवसेना में फूट पड़ी। एकनाथ शिंदे ने कई अन्य विधायकों के साथ बगावत कर दी। कई दिनों के घटनाक्रम के बाद तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया। कोश्यारी का कहना है था कि उनसे देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि मौजूदा सरकार बहुमत खो चुकी है, इसलिए फ्लोर टेस्ट कराया जाना चाहिए। इसके अलावा उन्हें मीडिया रिपोर्ट्स और सात निर्दलीय विधायकों के पत्र का भी जिक्र किया।

उद्धव के नेतृत्व वाली शिवसेना फ्लोर टेस्ट के आदेश पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उद्धव ठाकरे का इस्तीफा हुआ। फ्लोर टेस्ट का परिणाम शिंदे गुट और भाजपा के पक्ष में गया। बाद में उद्धव ठाकरे से शिवसेना का नाम और पार्टी का सिंबल तीर-कमान भी छिन गया। इसी साल फरवरी में चुनाव आयोग ने पार्टी का नाम ‘शिवसेना ‘और पार्टी का चुनाव चिह्न ‘तीर-कमान’ एकनाथ शिंदे गुट को सौंप दिया।