भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Dhananjaya Yeshwant Chandrachud) अक्सर युवा वकीलों को प्रोत्साहित करते रहते हैं। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली नगर निगम परिषद चुनाव के नियमों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिलचस्प बहस देखने को मिली।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ इस जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार नहीं थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। सुनवाई के दौरान भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के वकील कोर्ट रूम में मौजूद थे। सीजेआई चंद्रचूड़ ने वकील से पूछ लिया क्या कोर्ट ऑर्डर में उनकी उपस्थिति को दर्ज कर लूं?  

मुख्य न्यायाधीश ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि अगर मैं आपकी मौजूदगी को कोर्ट ऑर्डर में दर्ज कर लूंगा तो आप इसके लिए अपने मुवक्किल को चार्ज कर सकते हैं। लेकिन चुनाव आयोग के वकील ने बताया कि उन्होंने इन-इफेक्टिव सुनवाई का फीस न लेने का फैसला किया है।

अदालत ने वकील के इस भाव की सराहना की और उनकी उपस्थिति दर्ज करते हुए कहा, “हम भी वहां (बतौर वकील काम किया है) रहे हैं और जानते हैं कि ये चीजें कितनी महत्वपूर्ण हैं।”

वकील रहते चंद्रचूड़ को फीस में मिली थी साड़ी

हाल में CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने नवनियुक्त युवा वकीलों को संबोधित करते हुए बताया कि अच्छे और बुरे दोनों तरह के वकीलों से सीखने का अपना महत्व है। सीजेआई ने युवाओं को अपने करियर के शुरुआती किस्से भी सुनाए।

एक घटना का जिक्र करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि उन्होंने एक बार एक बड़े राजनेता का केस लड़ा था। मामला का फैसला राजनेता के पक्ष में आया था।

फैसले के बाद वह नेता, युवा वकील चंद्रचूड़ की सराहना करने उनके सोम विहार स्थित फ्लैट पर पहुंचा और उनकी मां को एक खूबसूरत साड़ी भेंट की। हालांकि, काफी समय तक फीस न मिलने के बाद चंद्रचूड़ को यह पता चला कि वह साड़ी ही कानूनी फीस थी। यह जानकर उन्हें बहुत निराशा हुई।

मुख्य न्यायाधीश ने युवा वकीलों के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “मैं बहुत निराश था कि एक जूनियर की सराहना कैसे नहीं की जा सकती, बाद में मुझे पता चला कि वह साड़ी ही मेरी फीस थी।”

इस घटना के अलावा, मुख्य न्यायाधीश ने एक और मामले का भी जिक्र किया जहां उन्हें केस लड़ने के लिए रुपये नहीं दिए जा रहे थे, बल्कि भविष्य में और केस दिलवाने का आश्वासन दिया जा रहा था।

सीजेआई ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि एक व्यक्ति ने मुझे अपना केस देते हुए भविष्य में अधिक मामले दिलाने का वादा किया था। लेकिन जब मैंने अपने वरिष्ठ सहयोगियों से इस बारे में बात की तो पता चला कि इसका आमतौर पर मतलब यह है कि वर्तमान मामले के लिए कोई शुल्क नहीं दिया जाएगा।

युवा वकीलों के लिए बार काउंसिल को दिया था आदेश

इस वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के बार काउंसिल से कहा था कि खुद को बतौर वकील एनरोल कराने वालों से 600 रुपये से अधिक शुल्क न लिया जाए। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने नए वकीलों से ली जाने वाली अत्यधिक नामांकन शुल्क के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था।

पीठ ने सवाल किया था कि राज्य बार काउंसिल, अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 24(1)(ई) द्वारा निर्धारित शुल्क से अधिक शुल्क कैसे ले सकती है। अधिनियम के मुताबिक राज्य बार काउंसिल का नामांकन शुल्क 600 रुपये और बार काउंसिल ऑफ इंडिया का शुल्क 150 रुपये है।