केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है। इसे सरकार द्वारा आरएसएस और बीजेपी के बीच के संबंध सुधारने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, सूत्रों का कहना है कि भाजपा को आश्वासन दिया गया है कि संघ के नेता सार्वजनिक रूप से उसकी या उसके नेतृत्व की आलोचना नहीं करेंगे। भाजपा नेतृत्व ने आरएसएस नेताओं की हाल ही में पार्टी और सरकार की सार्वजनिक आलोचना पर आपत्ति जताई, जबकि संघ के नेता लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की इस टिप्पणी से नाखुश थे कि पार्टी आरएसएस की बैसाखी के ब‍िना, खुद को चलाने में सक्षम है।

भाजपा-आरएसएस में आई दूरियों को कम करने की कोशिश

मीड‍िया में ऐसी भी खबरें हैं क‍ि बैन हटाने से संघ के भीतर संदेश गया है कि यह मोदी सरकार और भाजपा की तरफ से संकेत है कि भाजपा और आरएसएस के बीच लोकसभा चुनाव के दौरान सामने आई दूरियों को कम किया जाना चाहिए। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के हवाले से ‘द ह‍िंंदू’ अखबार ल‍िखता है, “चुनावों से पहले संघ और भाजपा के बीच संवाद टूट गया था लेकिन संघ के एक वरिष्ठ सदस्य ने मध्यस्थता की, जो पहले भी दोनों के बीच समन्वय करा चुके हैं। आरएसएस की कार्यकारी समिति ने स्थिति में सुधार किया है।”

आरएसएस ने की सराहना

सरकार के इस कदम की आरएसएस ने सराहना की है। आरएसएस के प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा, “सरकार का यह फैसला सही है और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करता है। संगठन का देश और समाज की सेवा में 99 सालों का इतिहास है।” आंबेकर ने आगे कहा, “अपने राजनीतिक हितों के कारण, तत्कालीन सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक संगठन की गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया था।”

आरएसएस पर बैन

1964 में केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम और अखिल भारतीय सेवा आचरण नियम में कहा गया था कि “कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक दल या राजनीति में भाग लेने वाले किसी भी संगठन का सदस्य नहीं होगा या उससे जुड़ा नहीं होगा।”

जिसके बाद 1966 में, गृह मंत्रालय के एक सर्कुलर में कहा गया था कि सरकारी कर्मचारियों द्वारा आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी की गतिविधियों में भागीदारी या सदस्यता के संबंध में कंडक्ट रूल 5 के सब-रूल (1) के प्रावधान लागू होंगे। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

इसके अलावा, सिविल सेवाओं और सरकारी पदों पर नियुक्ति के नियमों की ब्रोशर में सांप्रदायिक संगठनों की गतिविधियों में भाग लेने के खिलाफ चेतावनी दी गई है, जिसमें कहा गया है कि जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें सरकारी नौकरी से हटाया जा सकता है।

सरकारी कर्मचारियों की राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध

जुलाई 1970 में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सरकारी कर्मचारियों की राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध दोहराया था। 1975-77 के आपातकाल के दौरान, आनंद मार्ग और सीपीआई (एमएल) मुक्ति के अलावा, आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए सर्कुलर जारी किए गए थे। इस अवधि के दौरान इनकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

अक्टूबर 1980 में, जब इंदिरा गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बनीं, सरकार ने 1966 के प्रतिबंधों को दोहराते हुए एक बार फिर सर्कुलर जारी किया और कहा, “देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सरकारी कर्मचारियों को एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण किसी भी सांप्रदायिक संगठन को किसी भी तरह का संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। इस दिशा में किसी भी तरह की अवहेलना को अनुशासनहीनता माना जाना चाहिए।’

भाजपा सरकार ने भी नहीं हटाया था प्रतिबंध

उसके बाद कई अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के हाथों में सत्ता जाने के बावजूद इसमें कोई बदलाव नहीं आया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली भाजपा सरकार ने भी यह बैन नहीं हटाया। 27 नवंबर 2014 को सत्ता में आने के छह महीने बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने कुछ खंड जोड़ने के लिए कंडक्ट रूल में संशोधन किया, जिनमें से एक में कहा गया था, “प्रत्येक सरकारी कर्मचारी हर समय राजनीतिक तटस्थता बनाए रखेगा।”

हम सरकार से कोई मांग नहीं करने जा रहे- भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को इस दौरान सवालों का सामना करना पड़ा कि क्या वह संघ की गतिविधियों में शामिल होने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध हटाने की मांग करने जा रहे हैं। जिस पर 1 दिसंबर 2014 को हरिद्वार में एक बैठक में भागवत ने कहा था, “हम सरकार से कोई मांग नहीं करने जा रहे। हम अपना काम कर रहे हैं। हमारा काम ऐसे किसी अवरोध से नहीं रुकता।”

आरएसएस ने नहीं की मांग

एक तरफ जहां इस बैन को हटाने पर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है, वहीं संघ के सूत्रों ने इस पर आरएसएस की ओर से किसी भी मांग से इनकार किया है। आरएसएस नेताओं ने कहा कि हाल के वर्षों में किसी भी बैठक में यह मुद्दा नहीं उठा है।

BJP-RSS के संबंधों में आई खटास?

दरअसल, इस लोकसभा चुनाव में आरएसएस ने भाजपा की वैसी मदद नहीं की थी जैसा वह पहले करता आया था। जिसके बाद से यह संदेह जताया जा रहा है कि बीजेपी और आरएसएस के संबंधों में खटास आ गयी है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के कुछ बयानों और आरएसएस से जुड़ी पत्र‍िकाओं में छपी बातों ने इन अफवाहों को और हवा दे दी।

मोहन भागवत के बयानों को माना गया नरेंद्र मोदी पर निशाना

चुनाव के नतीजे आने के कुछ ही द‍िन बाद संघ प्रमुख ने कहा था कि एक सच्चे सेवक में अहंकार नहीं होता और वह गरिमा बनाए रखते हुए लोगों की सेवा करता है। उन्होंने यह भी कहा था क‍ि इस चुनाव में दोनों तरफ से मर्यादा तोड़ी गई।

हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आत्म-विकास के क्रम में एक मनुष्य ‘सुपरमैन’, फिर ‘देवता’ और ‘भगवान’ बनना चाहता है और ‘विश्वरूप’ की आकांक्षा कर सकता है, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि आगे क्या होगा। उनके इस बयान को पीएम मोदी से जोड़कर देखा गया।

रतन शारदा ने कहा- RSS को हल्के में लिया गया

आरएसएस के एक नेता रतन शारदा ने भी कहा था क‍ि बीजेपी के सांसद तक जनता के ल‍िए आसानी से उपलब्‍ध नहीं हैं। शारदा ने कहा था कि आरएसएस के कैडर को अहमियत नहीं दी गई और इसे हल्के में लिया गया। एक न्यूज चैनल को दिये गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “मध्य प्रदेश में संघ से जुड़े एक व्यक्ति ने उनसे कहा कि उनकी बात नहीं सुनी जाती है। भाजपा अपनी पसंद के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारती है क्योंकि बीजेपी को लगता है कि झक मार के जिता ही देंगे। आरएसएस इस तरह के बर्ताव को पसंद नहीं करता है।”

आरएसएस से संबंधित पत्रिका में भाजपा विरोधी लेख

आरएसएस से संबंधित पत्रिका ऑर्गनाइजर में प्रकाशित एक लेख में लोकसभा चुनाव परिणामों को अति आत्मविश्वासी भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को आईना द‍िखाने जैसा बताया गया था। आर्टिकल में कहा गया था कि नेता सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करने में व्यस्त थे और जमीन पर नहीं उतरे। भाजपा नेता अपनी दुनिया में खुश थे और जमीन से उठ रही आवाज़ें नहीं सुन रहे थे।

भाजपा उस स्‍थ‍ित‍ि में नहीं क‍ि आरएसएस का हाथ पकड़ कर चले- जेपी नड्डा

वहीं, चुनाव के दौरान भाजपा अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था क‍ि अब भाजपा उस स्‍थ‍ित‍ि में नहीं रह गई है क‍ि वह आरएसएस का हाथ पकड़ कर चले। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था, ‘शुरू में हम थोड़ा कम थे, हमें संघ की जरूरत पड़ती थी, आज हम बढ़ गए हैं, सक्षम हैं तो भाजपा अपने आप को चलाती है।’