आम तौर पर उपचुनाव से दूर रहने वाली बसपा ने ऐलान किया है कि वह उत्तर प्रदेश में होने वाले 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेगी। पार्टी की प्रमुख मायावती ने इसके लिए तैयारी भी तेज कर दी हैं। रविवार को उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और जिला अध्यक्षों के साथ बैठक की और चुनाव की तैयारियों में जुटने के निर्देश दिए।
सवाल यह है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में एक के बाद एक झटके खाने वाली बसपा का यह उपचुनाव वाला दांव क्या पार्टी के लिए कुछ काम कर पाएगा? खास कर तब जब उपचुनाव वाली एक भी सीट बसपा के पास नहीं थी।
इस सवाल का जवाब समझने से पहले जानते हैं, उपचुनाव किन सीटों पर होना है।
इन दस सीटों पर होना है उपचुनाव
विधानसभा सीट का नाम | संबंधित लोकसभा |
कटेहरी | अंबेडकर नगर |
मझवां | मिर्जापुर |
मिल्कीपुर | फैजाबाद |
मीरापुर | मुजफ्फरनगर |
सीसामऊ | कानपुर नगर |
करहल | मैनपुरी |
फूलपुर | प्रयागराज |
खैर | अलीगढ़ |
कुंदरकी | मुरादाबाद |
गाजियाबाद | गाजियाबाद |
2022 के विधानसभा चुनाव में इन 10 सीटों में से सपा ने पांच जबकि भाजपा ने तीन और उसके सहयोगी दलों निषाद पार्टी और आरएलडी ने एक-एक सीट जीती थी।
इंडिया गठबंधन के हौसले बुलंद
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद इंडिया गठबंधन के हौसले बुलंद हैं और वह विधानसभा के उपचुनाव में भी बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को हराने की तैयारी में जुटी हुई है। इसके लिए सीट बंटवारे को लेकर सपा और कांग्रेस भी एक दूसरे के संपर्क में हैं। ऐसी चर्चा है कि मीरापुर, गाजियाबाद और मझवां सीट कांग्रेस को मिल सकती हैं।
उपचुनाव वाली सीटों में से करहल सीट सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई है। अखिलेश यादव कन्नौज से लोकसभा का चुनाव जीते थे। मिल्कीपुर विधानसभा सीट 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां से जीते अवधेश प्रसाद के लोकसभा का सांसद बनने की वजह से खाली हुई है।
2024 में हुआ बीजेपी को बड़ा नुकसान
राजनीतिक दल | 2024 में मिली सीटें | 2019 में मिली सीटें |
बीजेपी | 33 | 62 |
सपा | 37 | 5 |
कांग्रेस | 6 | 1 |
बीएसपी | 0 | 10 |
रालोद | 2 | – |
अपना दल (एस) | 1 | 2 |
आजाद समाज पार्टी(कांशीराम) | 1 | – |
फिर से सक्रिय हो रहीं मायावती
लोकसभा चुनाव के खराब नतीजों के बाद मायावती ने पिछले कुछ दिनों में एक बार फिर से सियासी रूप से सक्रियता बढ़ाने की कोशिश की है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के कोटे में कोटा को लेकर आए फैसले पर मायावती ने खुलकर विरोध जताया और कहा कि संविधान में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया जाना चाहिए।
इसके अलावा उन्होंने उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय की बड़ी आबादी को देखते हुए वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का भी विरोध किया और कहा कि मस्जिद और मदरसों के मामले में जबरन दखलअंदाजी नहीं की जानी चाहिए।
मायावती ने योगी आदित्यनाथ सरकार की बुलडोजर नीति पर भी सवाल उठाया और कहा कि ऐसा करके जातीय व धार्मिक उन्माद और विवाद पैदा करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। हाथरस में हुई भगदड़ को लेकर वह बाबा भोले पर सख्त दिखीं और उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की। तमिलनाडु के बीएसपी अध्यक्ष के. आर्मस्ट्रॉन्ग की हत्या के मामले में वह चेन्नई पहुंचीं और राज्य की डीएमके-कांग्रेस गठबंधन सरकार को निशाने पर लिया।
हरियाणा में मायावती ने हाथ आगे बढ़ाते हुए इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से गठबंधन किया है और अपने भतीजे और पार्टी के कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद को वहां चुनावी मोर्चे पर लगाया है।
किन चुनौतियों से जूझ रही बसपा
यहां यह बात भी करनी जरूरी है कि बसपा के सामने क्या चुनौतियां हैं? बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने लगातार गिर रहे वोट शेयर को बढ़ाने की है। आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट और सीटें लगातार कम होता जा रहा है।
लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर और सीटें
साल | बसपा को मिली सीट | बसपा को मिले वोट (प्रतिशत में) |
1989 | 3 | 2.1 |
1991 | 3 | 1.8 |
1996 | 11 | 4.0 |
1998 | 5 | 4.7 |
1999 | 14 | 4.2 |
2004 | 19 | 5.3 |
2009 | 21 | 6.2 |
2014 | 0 | 4.2 |
2019 | 10 | 3.7 |
2024 | 0 | 2.04 |
यूपी चुनाव में बसपा का वोट शेयर
साल | वोट शेयर (प्रतिशत में) |
2007 विधानसभा चुनाव | 30.43 |
2012 विधानसभा चुनाव | 25.91 |
2014 लोकसभा चुनाव | 19.60 |
2017 विधानसभा चुनाव | 22.23 |
2019 लोकसभा चुनाव | 19.43 |
2022 विधानसभा चुनाव | 12.8 |
2024 लोकसभा चुनाव | 9.39 |
चंद्रशेखर से मिल रही बड़ी चुनौती
आज सियासी रूप से कमजोर हालत में दिख रहीं मायावती उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। इसके अलावा वह लोकसभा और राज्यसभा की सदस्य भी रही हैं लेकिन ताजा हालात में उन्हें सबसे बड़ी चुनौती नगीना के सांसद और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर से मिल रही है।
चंद्रशेखर के सियासी फलक पर आने से पहले मायावती दलित राजनीति में निश्चित रूप से अकेला बड़ा नाम थीं। उत्तर प्रदेश ही नहीं उत्तर भारत में दलित समाज के बड़े तबके की पसंद बसपा हुआ करती थी लेकिन चंद्रशेखर ने जिस तरह पिछले कुछ सालों में दलित समुदाय के साथ ही मुस्लिम और पिछड़े समाज के बीच अपनी जगह बनाई है, उससे निश्चित रूप से बसपा के लिए चुनौतियां बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं।
चंद्रशेखर यह ऐलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी भी सभी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ेगी। चंद्रशेखर के सांसद बनने के बाद उनके समर्थकों में जबरदस्त उत्साह है ऐसे में बसपा को अपने कोर वोट बैंक दलित और मुस्लिम समुदाय का भरोसा फिर से जीतना होगा।
आज की स्थिति में बसपा वजूद के संकट से जूझ रही है। ऐसे में लगातार हार के बावजूद चुनावी मुकाबले में उतरना उसकी मजबूरी है।
बसपा के साथ नहीं है कोई सहयोगी
बसपा की एक बड़ी मुश्किल यह है कि उसके साथ कोई भी सहयोगी दल नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और तब उसे इसका काफी फायदा मिला था। 2014 में जहां वह कोई सीट नहीं जीत सकी थी वहीं 2019 में उसने उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 10 सीटें जीती थी।
लेकिन अब चूंकि मायावती पूरी तरह अकेली हैं और चुनाव में उनका प्रदर्शन भी बेहद खराब रहा है इसलिए बसपा को निश्चित रूप से एक मजबूत सहयोगी की जरूरत है। लेकिन क्या कांग्रेस और सपा मायावती के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार होंगे?
बीजेपी की बी टीम का टैग कैसे हटेगा?
सपा, कांग्रेस यह आरोप लगाते हैं कि बसपा बीजेपी की बी टीम है। मायावती पर यह आरोप लगता है कि वह बीजेपी के खिलाफ खुलकर नहीं बोलतीं और वह अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी का सहयोग कर रही हैं। उनका आरोप है कि बसपा चुनावों में इस तरह उम्मीदवार उतारती है जिससे बीजेपी को सीधा फायदा हो और विपक्ष को मिलने वाले वोटों का बंटवारा हो जाए।
हालांकि, बसपा ने इस तरह के आरोपों को बार-बार खारिज किया है। बसपा के सामने चुनौती यह है कि वह बीजेपी की बी टीम होने का टैग किस तरह हटाएगी?
राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर है संकट
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे के बाद बसपा के राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर भी संकट आ खड़ा हुआ है। राष्ट्रीय पार्टी होने के लिए चुनाव आयोग का जो पैमाना है उसमें बसपा खरी नहीं उतर पाई है। इस बार लोकसभा चुनाव में बसपा कोई भी सीट जीतने में फेल रही और कुल 2.04% वोट ही हासिल कर पाई। क्या बसपा अपने राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे को बचा पाएगी?
उत्तर प्रदेश में 10 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव को जीतने के लिए इंडिया गठबंधन भी पूरी कोशिश करेगा। ऐसे में बसपा के लिए चुनौतियां ज्यादा हैं।
राज्य में ढाई साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले यह उपचुनाव सभी राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ी परीक्षा है। देखना होगा कि क्या मायावती बसपा को फिर से जिंदा करने में कामयाब होंगी?