मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष बन गए हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को भाजपा के सामने एक मजबूत संगठन की तरह खड़ा करना उनके लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी। वर्तमान स्थिति में कांग्रेस और भाजपा के बीच कई मोर्चे पर जमीन-आसमान का अंतर है। आइये कुछ आंकड़ों के जरिए समझने की कोशिश करते हैं।

वित्तीय स्थिति

2014 में सत्ता से बेदखल होने बाद से कांग्रेस पार्टी की वित्तीय स्थिति डगमग रही है, जबकि भाजपा ने लगातार बढ़ोतरी हासिल की है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार भाजपा को कांग्रेस से 6 गुना ज़्यादा चंदा मिला था, आंकड़ों के अनुसार भाजपा को 477.54 करोड़ रुपये का योगदान मिला था, जबकि इसी अवधि के दौरान कांग्रेस को 74.5 करोड़ रुपये हासिल हो पाए थे।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013-14 और 2014-15 के बीच केंद्र में सत्ता में आने के एक साल के भीतर बीजेपी की आय 2013-14 में 673.81 करोड़ रुपये से बढ़कर 2014-15 तक 970.43 करोड़ हो गयी, 2013-14 में 598.06 करोड़ रुपये की आय के साथ कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही, जो 2014-15 में घटकर 593.31 करोड़ रुपये रह गई।

1984 के आम चुनाव से 2019 तक की स्थिति: 1984 के चुनावों में भाजपा को केवल दो लोकसभा सीटें हासिल हुई थीं, जबकि कांग्रेस ने 404 सीटों पर जीत हासिल की थी। इन चुनावों के बाद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के भीतर गंभीर आत्मनिरीक्षण हुआ। चुनावी विफलता को इस बात के प्रमाण के रूप में देखा गया कि वाजपेयी की उदारवादी नीति काम नहीं करेगी। लाल कृष्ण आडवाणी अयोध्या में राम-जन्मभूमि मंदिर बनाने के लिए एक देशव्यापी अभियान का चेहरा बन गए। हिन्दुत्व की राजनीति और आडवाणी की यात्रा का असर ये हुआ कि भाजपा ने 1989 के आम चुनावों में 85 लोकसभा सीटें हासिल कर ली। जबकि कांग्रेस को 197 सीटें मिली।

1991 के आम चुनावों में, भाजपा ने अपनी ताकत बढ़ाकर 120 कर दी और वोट शेयर बढ़कर 20.1 प्रतिशत हो गया जबकि कांग्रेस को 244 सीट मिलीं। इसी तरह 1996 के आम चुनावों में भाजपा की झोली में 161 सीट गईं। साथ ही भाजपा ने सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सरकार बनाने का दावा पेश किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार, वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनी, लेकिन यह केवल 13 दिनों तक चली क्योंकि यह अन्य गैर-कांग्रेसी, गैर-वामपंथी राजनीतिक दलों के बहुमत को हासिल करने में विफल रही। वाजपेयी ने संसद में विश्वास मत का सामना करने के बजाय इस्तीफा दे दिया।

1998 में अगले आम चुनावों में, भाजपा ने लोकसभा में 182 सीटें प्राप्त कीं और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) नामक एक गठबंधन सरकार बनाई, जो 19 मार्च 1998 से 17 अप्रैल 1999 तक 13 महीने तक चली, जबकि कांग्रेस इन चुनावों में पिछड़ कर 141 सीटों पर सिमट गई। 1999 में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने आम चुनावों में 270 सीटें जीतीं और कांग्रेस का आंकड़ा गिरकर 114 पर पहुंच गया। वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और उनकी सरकार 2004 में अगले आम चुनावों तक चली।

हालांकि 2004 में भारतीय जनता पार्टी का ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा नहीं चल पाया, इस चुनाव में कांग्रेस को 145 सीटें मिलीं। जबकि भाजपा के खाते में 138 सीटें आई। कांग्रेस ने बसपा, सपा और लेफ्ट फ्रंट के सहयोग से सरकार बनाई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर इनकार करने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस ने 2009 में अपनी बढ़त को बरकरार रखते हुए 15वें आम चुनाव में 206 सीटें जीतीं और भारतीय जनता पार्टी के खाते में सिर्फ 116 सीटें ही आई।

2014 में पलट गई बाजी

लेकिन ये स्थिति 2014 में पूरी तरह बदल गयी। भारतीय जनता पार्टी को 31% वोट मिले और उसने 282 सीटें जीतीं, जबकि उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने कुल 336 सीटें जीतीं। दूसरी तरफ, कांग्रेस को 19.3% वोट मिले और केवल 44 सीटें ही जीत पाई। 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 37.36% वोट मिले, जो 1989 के आम चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल द्वारा सबसे अधिक वोट शेयर था, और 303 सीटें जीती जबकि कांग्रेस के खाते में महज 52 सीटें आई।

किसके पास कितना मजबूत कैडर?

मोदी-शाह के नेतृत्व में भाजपा को कैडर संचालित पार्टी से एक जन-आधारित पार्टी में बदलने का प्रयास किया गया। आंकड़ों के लिहाज से भाजपा, भारत के साथ-साथ दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। बीजेपी ने सदस्यता के मामले में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे छोड़ दिया है। भाजपा के सदस्यों की संख्या 8.8 करोड़ है। वहीं, कांग्रेस ने डिजिटल मेंबरशिप ड्राइव के जरिए 2 करोड़ से ज़्यादा मेंबर जोड़ने का प्रयास किया है।