भारत के पूर्व वित्त मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दिवंगत नेता अरुण जेटली के छात्र राजनीति से वकालत और वहां से सत्ता के शिखर तक पहुंचने की कहानी दिलचस्प है। जेटली का परिवार बंटवारे के बाद लाहौर से आकर दिल्ली में बसा था। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के मशहूर श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के स्टूडेंट थे। वह कॉलेज में वाद-विवाद प्रतियोगिता जीतने, राजनीतिक कार्यक्रमों में सक्रिय रहने और अपनी दोस्ती के लिए जाने जाते थे।
अरुण जेटली के बचपन के दोस्त और अनुभवी पत्रकार हरीश गुप्ता ने Rediff.com से बातचीत में बताया था कि कैसे कॉलेज के दिनों में जेटली और उनकी मंडली को बॉबी फिल्म देखने के लिए जुगाड़ लगाना पड़ा था।
दिल्ली में नहीं रिलीज हुई थी बॉबी
गुप्ता 1973 की एक घटना याद करते हैं। तब जेटली बतौर छात्र नेता चर्चित नहीं हुए थे। उन दिनों बॉबी फिल्म की खूब चर्चा थी। आरके बैनर के तहत बनी उस फिल्म को राज कपूर ने डायरेक्ट किया था। मुख्य भूमिका में ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया थीं। यह दोनों की पहली फिल्म थी। इस फिल्म में बेपरवाह मोहब्बत, मासूमियत, बगावत, जैसी हर वो चीज थी, जिसने युवा दिलों को दीवाना बना दिया था।
लेकिन अरुण जेटली और उनकी मंडली चाहकर भी यह फिल्म नहीं देख पा रही थी क्योंकि किसी कारणवश बॉबी दिल्ली में रिलीज नहीं हो पाई थी। गुप्ता याद करते हैं कि एक दोस्त ने सुझाव दिया कि क्यों न गुड़गांव (जिसे अब पड़ोसी राज्य हरियाणा में गुरुग्राम के नाम से जाना जाता है) जाकर फिल्म देखी जाए। हरियाणा में बॉबी रिलीज हुई थी। यह सुझाव देने वाले शायद अरुण खन्ना थे, जिन्होंने बाद में ‘स्क्रीन मैगजीन’ के लिए काम किया। एक अन्य मित्र ने कहा कि उसके पास एक कार है। लेकिन पेट्रोल का पैसा सभी को मिलकर देना होगा। गुप्ता कहते हैं, “उन दिनों हमारे पास ज्यादा पैसे नहीं हुआ करते थे।”
इंटरव्यू में गुप्ता बताते हैं, “हमारे साथ उनके (जेटली) एक रिश्तेदार जीतेंद्र भार्गव भी फिल्म देखने गए थे, जो बाद में एयर इंडिया के कार्यकारी निदेशक बने।”
छात्र नेता बनने के बाद बदल गई जिंदगी
अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए गुप्ता कहते हैं, “कानून विभाग हमारा अड्डा था। हम हर दिन वहां घंटों बैठते थे। कॉफी पीते थे और गपशप करते थे। हमने एक साथ बहुत सारी फिल्में देखीं। वह (जेटली) गाना गुनगुनाते रहते। उन्हें पुराने हिंदी गाने पसंद थे। लेकिन जब आप एक छात्र नेता बन जाते हैं, तो जीवन बदल जाता है।” हालांकि गुप्ता बताते हैं कि फिर भी वे लोग मनोरंजन के लिए समय निकाल ही लेते थे।
कॉलेज के दिनों में अरुण जेटली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में सक्रिय थे। इंदिरा गांधी ने जब 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगाया, तब वह दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष थे। उन्होंने आपातकाल का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पुतला जलाया था। इसके बाद उन्हें तिहाड़ जेल में डाल दिया गया, जहां उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गजों के साथ 19 महीना बिताया।
जब इंदिरा ने दूरदर्शन पर चलवा दी बॉबी
जिस बॉबी फिल्म को देखने के लिए अरुण जेटली और उनके दोस्तों को गुरुग्राम जाना पड़ा था, उस फिल्म को इंदिरा गांधी ने दूरदर्शन पर चलवा दिया था। वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह मानती हैं कि इस सुपरहिट फिल्म को दूरदर्शन पर प्रसारित करने का मकसद, अटल बिहारी वाजपेयी की एक बड़ी रैली को फ्लॉप करना था।
दरअसल, यह आधिकारिक रूप से आपातकाल खत्म किए जाने से कुछ समय पहले की घटना है। 18 जनवरी को इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा कर दी थी और राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाने लगा था।
इसके बाद जनवरी में ही दिल्ली में रामलीला मैदान में विपक्षी नेताओं की एक जनसभा आयोजित हुई, जिसमें वाजपेयी भी बोलने वाले थे। तवलीन सिंह बतौर पत्रकार इस जनसभा को कवर करने पहुंची थी। उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए याद किया था कि उस दिन कड़कड़ाती ठंड थी। बूंदाबांदी भी हो रही थी। इंदिरा चाहती थीं कि लोग इस रैली में ना जाए, इसलिए उन्होंने सरकारी चैनल दूरदर्शन पर 1973 की सुपरहिट फिल्म बॉबी चलवा दी। लेकिन लोग ने ना ठंड की परवाह की और ना ही बॉबी की। जनसभा में भारी हुई।
तवलीन कहती हैं, “बॉबी और वाजपेयी के बीच लोगों ने वाजपेयी को चुना।”