भारत के 14वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के एक गांव में हुआ था। मनमोहन सिंह लगातार दो बार भारत के प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल 22 मई, 2004 से 22 मई, 2014 तक रहा।
कैसे प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह?
डॉ. मनमोहन सिंह 1998 से प्रधानमंत्री बनने तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। 2004 के आम चुनावों में भाजपा बहुमत से दूर हो गई। तय हो गया कि कांग्रेस अगली सरकार बनाएगी। इसके बाद सोनिया गांधी गठबंधन मजबूत करने में जुटीं। जब गठबंधन हो चुका था और कांग्रेस सत्ता संभालने के लिए तैयार थी, तभी सोनिया गांधी ने सबको आश्चर्यचकित कर दिया। उन्होंने बयान जारी कर कहा कि अंतरात्मा की आवाज सुन कर फैसला किया कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी। अब सवाल था प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
इसके लिए 7 मई, 2004 को दोपहर में 10, जनपथ पर एक बैठक हुई, जिसमें मनमोहन सिंह के पीएम बनने का रास्ता साफ हुआ था। इस बैठक का विवरण द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में दिया है।
चौधरी ने बैठक का विवरण के. नटवर सिंह के हवाले से लिखा है। नटवर सिंह के मुताबिक, “जब वह पहुंचे तो कमरे में सोनिया, प्रियंका गांधी और मनमोहन सिंह मौजूद थे। सोनिया वहां सोफे पर बैठी थीं। मनमोहन सिंह और प्रियंका गांधी भी वहीं थे। सोनिया गांधी परेशान दिख रही थीं… तभी राहुल अंदर आए और हम सबके सामने कहा, मैं आपको प्रधानमंत्री नहीं बनने दूंगा।”
राहुल बहुत नाराज दिख रहे थे। उन्होंने सोनिया गांधी को याद दिलाया, “मेरे पिता की हत्या कर दी गई, मेरी दादी की हत्या कर दी गई। छह माह में आपको मार दिया जायेगा।”
नटवर सिंह नीरजा चौधरी को बताते हैं, “राहुल ने धमकी दी कि अगर सोनिया ने उनकी बात नहीं मानी तो वह कोई भी कदम उठा सकते हैं। नटवर सिंह ने याद करते हुए कहा, ‘यह कोई सामान्य धमकी नहीं थी’ राहुल एक मजबूत इरादों वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने सोनिया को निर्णय लेने के लिए 24 घंटे का समय दिया था।”
किताब में लिखा है, “जब राहुल ने कहा कि वह अपनी मां को प्रधानमंत्री पद संभालने से रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने को तैयार हैं, तो सोनिया की आंखों में आंसू आ गए।”
राजनीतिक हालात
2004 में भारत आर्थिक रूप से ठीक प्रदर्शन कर रहा था। विदेशी कंपनियां भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिए आ रही थीं। केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार लोकप्रिय नजर आ रही थी।
लगभग हर सर्वेक्षण में भविष्यवाणी की गई थी कि अगर चुनाव हुआ तो भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलेगा और पार्टी इस आकलन से सहमत थी। भाजपा कांग्रेस को बिखरा और कमजोर विपक्ष मान रही थी, जिसे वाजपेयी पहले ही दो बार चुनावों में हरा चुके थे।
सोनिया गांधी ने 1998 में राजनीति में आयी थीं और 2004 में पार्टी की कमान संभाल रही थी। हालांकि वाजपेयी सरकार के गौरवशाली दिनों में कांग्रेस लो प्रोफाइल रही, विधानसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं था।
ऐसे में भाजपा ने जब ओपिनियन पोल के नतीजे देखे, जिसमें दो-तिहाई बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की गई थी, तो उसे इतनी खुशी हुई कि उसने आम चुनावों को कुछ महीने पहले करवा लिया। भाजपा को अंत तक जीत का भरोसा रहा। लेकिन जब नतीजे आने शुरू हुए, तो सर्वेक्षणकर्ताओं को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। बीजेपी 182 सीटों से लुढ़ककर 138 सीटों पर आ गई थी। कांग्रेस 114 से बढ़कर 145 सीटों पर पहुंच गई।
1999 में ही प्रधानमंत्री बनने वाले थे मनमोहन सिंह?
हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे एक आर्टिकल में पत्रकार वीर सांघवी ने राष्ट्रपति के हवाले से बताया है सोनिया गांधी 1999 में ही मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं। सांघवी लिखते हैं, “1999 के विश्वास मत में वाजपेयी की हार के बाद हुई उथल-पुथल के दौरान जब सोनिया राष्ट्रपति केआर नारायणन से मिलने गईं, तो उन्होंने उनसे कहा कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहतीं। इसकी पुष्टि मेरे दो अलग-अलग स्रोतों ने की। पहला स्रोत आरडी प्रधान हैं, जो उस समय उनके (सोनिया गांधी) प्रमुख सहयोगी थे। मेरा दूसरा स्रोत राष्ट्रपति केआर नारायणन थे जिन्होंने मुझे बताया कि गठबंधन द्वारा संख्या बल जुटा लेने के बाद उन्होंने उनसे मनमोहन सिंह को शपथ दिलाने के लिए कहा था। हालांकि हम यह जानते हैं कि ऐसा उस वक्त नहीं हुआ था।”