बिहार में नीतीश सरकार ने फ्लोर टेस्ट पास कर लिया है। बिहार विधानसभा में 12 फरवरी (सोमवार) को वोटिंग से पहले ही विपक्ष ने वॉकआउट कर दिया था। सत्ता पक्ष की मांग पर हुई वोटिंग में नीतीश कुमार के समर्थन में 129 वोट पड़े। विपक्ष में एक भी वोट नहीं पड़ा।

बता दें, पिछले दिनों वह महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गए थे। बीते कई दशकों से नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे हैं।

दोनों जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले नेता हैं। दोनों अपना राजनीतिक गुरू जेपी, राम मनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर जैसे समाजवादी नेताओं को बताते रहे हैं। हालांकि एक आंदोलन से निकलने और एक तरह के नेताओं को आदर्श मानने के बावजूद दोनों में शुरू से ही कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष तौर पर मत भिन्नता रही।

1990 के दशक में लालू-नीतीश के बीच दरार गहरी हुई थी। वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद केंद्र की राजनीति से ब्रेक लेकर जब नीतीश कुमार पटना रहने पहुंचे थे तो लालू प्रसाद यादव ने उन्हें परेशान करने की कोशिश की थी। उन दिनों की घटनाओं को पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘बंधु बिहारी’ में दर्ज किया है।

लालू यादव के कारण पटना में बेघर हो गए थे नीतीश कुमार

1990 के अंत की बात है। नई दिल्ली में वी.पी. सिंह सरकार का नवंबर 1990 में पतन हो गया था। नीतीश अब केंद्रीय मंत्री नहीं रहे थे। ऐसे में वह पटना लौट गए और स्टेट गेस्ट हाउस में रहने लगे। संकर्षण ठाकुर लिखते हैं, “लालू ने उन्हें स्टेट गेस्ट हाउस में जगह देने से मना कर दिया। फिर उन्हें पश्चिम पटना में पुनाई चौक में अपने इंजीनियर दोस्त अरुण कुमार के घर में जाकर रहना पड़ा। लालू ने नीतीश की वह सुविधा भी छीन ली, अरुण कुमार का तबादला पटना से बाहर कर दिया और पुनाई चौक का वह फ्लैट दूसरे सरकारी कर्मचारी को आबंटित कर दिया।

नीतीश पटना में दोबारा बेघर हो गए। इसके बाद नीतीश अपने पुराने परिचित और कारोबारी, विनय कुमार के घर ठहरे, जिस पर लालू का कोई अधिकार नहीं था। विनय कुमार का अतिथि-सत्कार नीतीश के लिए उस दिन तक उपलब्ध रहा जिस दिन वह मुख्यमंत्री बने और लालू को 1, अणे मार्ग से निकलना पड़ा।” हालांकि इसमें लंबा वक्त लगा।

1990 के दशक का आरंभ और लालू का प्रभुत्व  

लालू यादव ने गांधी मैदान में भाषण देते हुए वादा किया था, “अब कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा, अब कोई बेईमानी नहीं होगी, यह कसम हम खाते हैं, नया लोक राज कायम करना है, जेपी और कर्पूरी के सपनों का बिहार बनाना है, वीपी सिंह के सिद्धांतों का बिहार बनाना है, लोक राज लाना है, एक नए बिहार का निर्माण करना है…”

ठाकुर लिखते हैं, “लालू ने बिहार को एक नए सपने का वचन दिया था और तत्काल उन्होंने एक लंबे बुरे सपने को न्योता देना शुरू कर दिया। कारणों का ढेर लगता गया और एक दिन नीतीश और लालू के बीच दीवार खड़ी हो गई। नई सरकार का संचालन कैसे किया जाना चाहिए, इस बात को लेकर दोनों के बीच मतभेद उत्पन्न हुए और बात बढ़ते- बढ़ते व्यक्तिगत शत्रुता तक पहुंच गई।”

लेकिन जब तक नीतीश ने लालू यादव से उम्मीद नहीं छोड़ी थी, तब तक वह लालू यादव को उनके वादे और लोहिया के समाजवाद की याद दिलाते रहते थे। नीतीश कुमार ऐसा लगातार कर रहे थे। ऐसे में किए गए वादों की याद दिलाते रहने से लालू, नीतीश से थोड़े नाराज रहने लगे।

ठाकुर लिखते हैं, “कभी-कभी तो लालू को वचन की याद दिलाने पर इतना गुस्सा आ जाता कि उन्हें नीतीश की नीयत पर संदेह होने लगता, एक बार तो लालू ने कह दिया था- सरकार हथियाना चाहता है का नीतीशवा?”

ठाकुर एक शाम की घटना का भी जिक्र करते हैं, जब बातचीत का कोई नतीजा न निकलने पर नीतीश हताश होकर चले गए थे। ठाकुर लिखते हैं, “लालू ने उस शाम नीतीश की सलाह पर नाक-भौं सिकोड़ी थी और झिड़कते हुए यहां तक कह दिया था कि शासक का शिक्षक बनने की कोशिश मत करो। तुम हमको राज-पाट सिखाओगे? गवर्नेस से पॉवर मिलता है का? पावर मिलता है वोट-बैंक से, पावर मिलता है पीपॅल से, क्या गवर्नेस रटते रहते हो?”

बिहार भवन में गाली-गलौज

सन् 1992 के अंतिम महीनों की बात है। दिल्ली स्थित बिहार भवन अचानक गंदी-गंदी गालियों से गूंज उठा। ऐसा क्यों हुआ था? दरअसल नीतीश कुमार, बिहार के कुछ नेताओं के साथ बिहार भवन में लालू यादव से मिलने पहुंचे थे। नीतीश के नेतृत्व में पहुंचे शिवानंद तिवारी, बिशन पटेल और लल्लन सिंह के पास कार्यों की एक सूची थी। ये नेता चाहते थे कि उनके मुख्यमंत्री इस पर ध्यान दें।

बीजेपी के सरयू राय भी गए थे, जो तब नालंदा और सोन क्षेत्र में किसानों की ओर से सिंचाई का मुद्दा उठाते आ रहे थे। वह गेस्ट हाउस मैं बैठे हुए, नीतीश तथा अन्य लोगों का मीटिंग से लौटने का इंतजार कर रहे थे।

ठाकुर लिखते हैं, “मीटिंग में मौजूद लोगों में से किसी को भी याद नहीं कि मुख्यमंत्री के कमरे में दाखिल होने के कुछ मिनट के अंदर ही ऐसा क्या हुआ कि बैठक अचानक गाली-गलौज में बदल गई और मुक्केबाजी होने लगी। लालू की चीख-चिल्लाहट सबसे ऊपर थी, उनका सारा गुस्सा लल्लन सिंह पर फूट रहा था, जिसे उन्होंने बड़े आक्रोश के साथ इशारा करते हुए कहा- “निकल बाहर, बाहर निकल, साला।”

हल्ला-गुल्ला बिहार भवन के ग्राउंड फ्लोर पर वी.वी.आई.पी. गलियारे में किसी विस्फोट की तरह गूंजने लगा। मां-बहन की गालियां गोलियों के माफिक छूट रही थीं। सरयू राय यह देखने के लिए बाहर निकलकर आए कि माजरा क्या है। उन्होंने वी.वी.आई.पी. दरवाजे पर धक्का- मुक्की होते देखी। लालू को अपने सभी सुरक्षाकर्मियों को आवाज लगाते सुना गया- पकड़ के फेंक दो बाहर, ले जाओ घसीट के!

ठाकुर आगे लिखते हैं, “मुख्यमंत्री शायद लल्लन सिंह को ही बाहर कराने के लिए चीख रहे थे; लल्लन सिंह को अपनी जुबान पर नियंत्रण नहीं रहता है, बहुत जल्दी कड़वाहट उगलने लगती है और वह बहुत जल्दी बेइज्जती करने पर उतारू हो जाते हैं। उन्होंने तब या कभी पहले कुछ ऐसा कहा होगा, जिससे लालू भड़क गए। लेकिन इससे पहले कि सिंह को उठाकर बाहर निकाला जाता, नीतीश अपने साथ आए लोगों को लेकर वहां से हट गए और यह कहते हुए बिहार भवन से बाहर हो गए कि अब साथ चल पाना मुश्किल है।