Bihar Elections 2025: मैं बिहार हूं, राजनीति का खेल समझता भी हूं और उनके मायने भी जानता हूं। यहां मैंने नेताओं को सहुलियत के हिसाब से बदलते हुए देखा है। जिसे एक दिन गले लगाते हैं, अगले ही दिन उनके उनके खिलाफ खड़े हो जाना यहां तो आम बात हो चुकी है। मैंने नीतीश कुमार के सियासी जीवन को भी करीब से देखा है, वहां भी मुझे सहुलियत की राजनीति दिख जाती है, आज तो वे कर्पूरी ठाकुर का इतना सम्मान करते हैं, लेकिन मुझे वो किस्सा अच्छे से याद है जब उन्होंने पहली बार सत्ता पर काबिज होने का सपना देखा था, जानते हैं किससे नाराज थे- इन्हीं कर्पूरी ठाकुर से। मैं बिहार हूं और आज उसी बदलती सियासत की कहानी बताता हूं-

बिहार में 1977 के बाद राजनीतिक फिजा काफी बदल गई थी, पहली बार जनता पार्टी इतनी ताकतवर दिखी थी, कांग्रेस को चुनौती मिली थी और कई दूसरे दल उभरकर सामने आ रहे थे। लेकिन नीतीश कुमार अपना ही चुनाव हार चुके थे, उनके साथी लालू जीत लिए, लेकिन नीतीश के हाथ खाली रहे। उन दिनों पटना के इंडिया कॉफी हाउस में अलग ही सियासी महफिल जमती थी। पत्रकार लोग, नेता लोग, विचारक, सभी एक छत के नीचे जाते थे, खुलकर बातचीत होती थी। लोकतंत्र का सबसे खूबसूरत उदाहरण वहां बनता दिखता था। नीतीश कुमार भी वहां जाते थे, ज्यादा बोलते नहीं थे, लेकिन सुनते सब थे।

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ऐसे ही एक दिन नीतीश इंडिया कॉफी हाउस बैठे थे, उनके साथ पत्रकार सुरेंद्र किशोर भी थे, उस जमाने में दोनों की अच्छी जमती थी। बिहार की सियासत की हर खबर सुरेंद्र रखते थे। नीतीश कुमार के बारे में भी उन्हें वो सब पता होता था जो शायद कोई दूसरा ना जानता हो। उस दिन भी दोनों साथ ही इंडिया कॉफी हाउस में बैठे थे। कर्पूरी ठाकुर को लेकर वहां बहस छिड़ी पड़ी थी। सवाल सिर्फ इतना था- कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाना सही था या गलत। यह सवाल भी इसलिए उठ रहा था क्योंकि कर्पूरी ठाकुर की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लग गए थे। इसके ऊपर जैसी राजनीति उनकी थी, पिछड़े समाज को ज्यादा तवज्जो मिल रही थी। इससे वो वर्ग तो खुश रहा, लेकिन कई दूसरे खुद को दरकिनार महसूस करने लगे।

खुद नीतीश कुमार दूर बैठे ये सब सुन रहे थे, सुरेंद्र किशोर के शब्दों में वे खुद कर्पूरी ठाकुर की सियासत से खुश नहीं थे, उन्हें लगने लगा था कि वे जेपी आंदोलन के उदेश्यों को पूरा नहीं कर रहे। उस दिन अचानक से इसी बात से नाराज होकर नीतीश कुमार ने इंडिया कॉफी हाउस में एक बड़ी बात बोल दी थी। उनके मन में जबरदस्त गुस्सा था, हाथ सीधे टेबल पर मारा, कुर्सी से खड़े हुए और दो टूक बोल दिए- सत्ता प्राप्त करूंगा, फिर चाहे साम-दाम-दंड-भेद के जरिए, लेकिन सत्ता लेके अच्छा काम करूंगा। अब ये सारी बातें आगे चलकर सच होने वाली थीं, इसका अहसास किसी को नहीं था, भविष्य की गर्भ में नीतीश कुमार के लिए काफी कुछ छिपा था।

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शायद पता नहीं था इसी वजह से उस जमाने का कोई भी नेता मानने को तैयार नहीं होता कि आगे चलकर नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बनने वाले थे। सुशील मोदी इस बारे में बताते हैं कि मुझे तो उनके बारे में ऐसा कुछ याद ही नहीं आता है। छात्र राजनीति के दौरान भी वो कोई बड़े नेता नहीं थे, ज्यादा सक्रिय नहीं थे। एक किस्सा याद करते हुए सुशील ने कहा कि एक बार नीतीश कुमार भी यूनिवर्सिटी की उस लिस्ट में शामिल थे जिन्हें प्रीवेंटिग कस्टडी में लेना था। नीतीश हमारे साथ ही थे जब पुलिस वहां पहुंची थी। लेकिन हम सभी कस्टडी में गए और नीतीश बच गए। नीतीश तब इतने लोकप्रिय नहीं थे, उन्हें कोई जानता नहीं था। ये तब के सुशील मोदी के शब्द थे जब नीतीश कुछ नहीं थे, लेकिन ये बिहार की राजनीति है जहां पर आगे चलकर नीतीश तो मुख्यमंत्री बन गए और सुशील मोदी दो बार डिप्टी सीएम बने, उन्हीं की सरकार में मंत्री रहे। ऐसा बिहार में ही हो सकता है क्योंकि यहां राजनीति और किस्मत कभी भी बदल जाती है। नीतीश इसके सबसे बड़े और सटीक उदाहरण हैं।

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(REFERENCE: THE BROTHERS BIHARI, BY- SANKARSHAN THAKUR)