बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा था जब नीतीश आर्थिक समस्याओं से घिर गए थे और कोई राह ही नहीं सूझ रही थी। इसी दौर में नीतीश ने वकालत करने का फैसला किया और तमाम जद्दोजहद के बाद लॉ में एडमिशन भी ले लिया था। लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित ‘नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में उदय कांत यह किस्सा नीतीश के ही शब्दों में लिखते हैं। बकौल नीतीश, ‘मैंने इंजीनियरिंग की परीक्षा तो पास कर ली थी, लेकिन बस बाबूजी का मन रखने के लिए। मेरे अंदर पढ़ने-लिखने और कुछ नया करने की लगन अभी भी बची थी। इसलिये मंजू (पत्नी) से सलाह मांगी। तब वह भी पढ़ ही रही थीं। हम दोनों ने काफी सोच विचार के बाद तय किया कि मुझे लॉ की पढ़ाई करनी चाहिए’।

मुश्किल से मिला था लॉ में एडमिशन

उदय कांत लिखते हैं कि नीतीश कुमार जब लॉ कॉलेज में एडमिशन के लिए गए तो वहां कहा गया कि आपने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, इसलिए लॉ में एडमिशन नहीं ले सकते हैं। इस बेवकूफी भरे उत्तर से नीतीश समझ गए कि उनका कैसे लोगों से पाला पड़ने वाला है।

नीतीश कुमार, पटना यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति डॉ. सचिन दत्त के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे। जब उन्हें बताया कि लॉ डिपार्टमेंट का तर्क है कि मैं इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से हूं इसलिए लॉ में एडमिशन नहीं मिल सकता तो वीसी को भी यह तर्क बेतुका लगा। उन्होंने सारी जानकारी हासिल की और नीतीश के एडमिशन को हरी झंडी दे दी।

परीक्षा हाल से लौट आए थे वापस

नीतीश बताते हैं कि मैं पूरे जोर शोर से पढ़ाई में लग गया और आखिरकार परीक्षा की बारी आई। जब परीक्षा हॉल में पहुंचा तो देखा वहां खुलेआम नकल हो रही है। कई वरिष्ठ शिक्षक ही छात्रों को नकल करा रहे हैं। यह देखकर मेरा मन खट्टा हो गया और परीक्षा हाल से उठ कर चला आया। तय किया कि अब लॉ की पढ़ाई नहीं करूंगा।

खड़ा हो गया रोजी-रोटी का संकट

यही दौर था जब नीतीश कुमार के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुके थे। हॉस्टल खाली कर दिया और अपने गांव बख्तियारपुर से पटना आने-जाने लगे। उदय कांत लिखते हैं कि एक तरफ नीतीश के परिवार में रोजी-रोटी का संकट था तो दूसरी तरफ उनके ससुराल के लोग नौकरीपेशा और जमींदारी पृष्ठभूमि के थे।

नीतीश के ससुराल वालों को भी उनके भविष्य की चिंता होने लगी। हालांकि वे नीतीश से साफ-साफ तो नहीं कहते लेकिन कभी-कभी किसी के जरिए अपनी बात पहुंचा दिया करते थे। नीतीश पर बार-बार दबाव डाला जा रहा था कि कहीं कोई नौकरी कर लें।

नौकरी मांगने गए तो मांग ली थी घूस

यह सब उठापटक चल ही रही थी। इसी दौरान नीतीश कुमार के ससुराल वालों को पता चला कि बिहार सरकार के नलकूप विभाग में 20 इंजीनियरों की भर्ती है और यह पद चेयरमैन द्वारा भरे जाने हैं। चेयरमैन खांटी कांग्रेसी थे और पैसे लेने के लिए बदनाम थे। लेकिन नीतीश के बाबूजी को कांग्रेसी सद्भाव पर भरोसा था। उदय कांत लिखते हैं कि नीतीश के बाबूजी जब चेयरमैन से मिलने पहुंचे तो उन्होंने सलाह दी कि आपका लड़का राजनीति से परहेज करे और कोई लड़कपन न दिखाए तो निश्चित ही आगे जाएगा।

चेयरमैन ने बातों ही बातों में 50000 रुपये एडवांस मांग लिए। उसकी बात सुनकर नीतीश के बाबूजी पर आसमान टूट पड़ा। बिना एक गिलास पानी पीये वहां से उल्टे पैर लौट आए।